Book Title: Gunsthan Kramaroh
Author(s): Tilakvijaymuni
Publisher: Aatmtilak Granth Society

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Page 11
________________ प्रस्तावना. कर सकता । सर्वज्ञ दशासें अर्वाक् दशामें विचरनेवाला प्राणिगण निज बोधमें षट् स्थानको स्पर्शता हुआ तारतम्यताको धारण करता है। एक ही पुस्तकको दश व्यक्ति पढ़ जायें और दशों ही व्यक्तियोंका बोध विशेषज्ञ द्वारा अवलोकन किया जाय तो विशेष विशेषतर न्यून न्यूनतर ही भासेगा। चतुर्दश पूर्वधारकोंमें भी षद् स्थानका पतन होता है । जितना श्रुत ज्ञान है षट् स्थानका अविनाभावी है। जब तक क्षायिक ज्ञान प्राप्त नहीं होता, तब तक वस्तुके पूर्ण ज्ञानमें न्यूनता ही रहती है। चाहे कैसा ही क्षायोपशमिक ज्ञान क्यों न हो पर वह क्षायिक ज्ञानकी तुलना नहीं कर सकता। क्षायोपशमिक ज्ञानके अनेक प्रकार हैं, पर क्षायिक ज्ञानका एक ही प्रकार है। इस ज्ञानकी भिन्नतासे भी जीवात्मामें भेद पड़ सकता है और वह भेद संसारी और सिद्धके नामसे सुप्रसिद्ध है । प्रस्तुत ग्रन्थमें यह क्षायिक ज्ञान बारहवें गुणस्थानके. अंतमें जब आत्म गुण की सर्व घातिनी प्रकृतिका क्षय हो जाता है तव प्रगट होता है । यह क्षायिक ज्ञान निर्विवाद और निःशंक है । इस ज्ञानमें विवाद तथा शंकाका स्पर्श नहीं होता है। और क्षायोपशमिक ज्ञानमें विवाद तथा शंका शिर उठा सकती है। इस लिए क्षायोपशमिक ज्ञानवाले व्यक्तियोंको क्षायिक ज्ञानीके अनुयायी हो कर चलना पड़ता है । जिस क्षायोपशमिक व्यक्तिने क्षायिक ज्ञानीका अनादर किया है, वह व्यक्ति तत्व ज्ञानसे सदा सर्वदा वंचित ही रहती है। केवल ज्ञानीको छोडकर सभी संसार क्षायोपशमिक ज्ञानसे आश्रित है । इस न्यायसे सिद्ध होता है कि श्रुत ज्ञान क्षायोपशमिक है । और ऐसा होनेसे न्यूनाधिक रूप तारतम्यता भी इसमें रहती है। वर्तमानकालीन जीवोंको श्रुत ज्ञान ही अतीव उपयोगी हो सकता है । यावत् धार्मिक व्यवहार श्रुत ज्ञानके ही आश्रित है । इस लिए विशेषज्ञ पूर्वर्षियोंने

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