Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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कर्मकाण्डे नोयममदितवरोळ कषायवेदनीयं षोडशविधमक्कुं। क्षपणेयं कुरुत्तु अनंतानुबंधि क्रोधमानमायालोभमप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानक्रोधमानमायालोभं । क्रोधसंज्वलनं मानसंज्वलनं मायासंज्वलनं लोभसंज्वलनमें दि]प्रक्रमद्रव्यमं कुरुत्तु प्रक्रमद्रव्यमें बुदु विभंजनद्रव्यम बुदत्यमदं कुरुत्तु अनंतानु
बंधिलोभमायाक्रोधमानं। संज्वलनलोभमायाक्रोधमानं । प्रत्याख्यानलोभमायाक्रोधमानं । अप्रत्या५ स्थानलोभमायाक्रोधमानमें दितु ॥ नोकषायवेदनीयं नवविधमक्कुं:-पुरुषस्त्रीनपुंसकवेदं रत्यरतिहास्यशोकभयजुगुप्सय दिन्तु ॥
____ आयुष्यं चतुम्विधमक्कं । नरकायुष्यं तिर्यग्मनुष्यदेवायुष्यमै दिन्तु । नामकर्म द्वाचत्वारिशद्विधमक्कं । पिंडापिडभेददिदं । गति जाति शरीर बंधन संघातसंस्थान अंगोपांग संहनन वन
गंध रस स्पर्श आनुपूर्व्यगुरुलघुक उपघात परघात उच्छ्वास आतप उद्योत विहायोगति त्रस १० स्थावर बादर सूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्त प्रत्येक साधारणशरीर स्थिर अस्थिर शुभ अशुभ सुभग दुर्भग सुस्वर दुस्वर आदेय अनादेय यशस्कोत्ति अयशस्कोत्ति निर्माण तोत्थंकरनाम दितल्लि
चारित्रमोहनीयं द्विविध-कषायवेदनीयं नोकषायवेदनीयं चेति । तत्र कषायवेदनीयं षोडशविधं क्षपणां प्रतीत्य अनन्तानुबन्धिक्रोधमानमायालोभ, अप्रत्याख्यानक्रोधमानमायालोभ, प्रत्याख्यानक्रोधमानमायालोभं, क्रोधसंज्वलनं मानसंज्वलनं मायासंज्वलनं लोभसंज्वलनं चेति । प्रक्रमद्रव्यं विभजनद्व्यं प्रतीत्य अनन्तानुबन्धिलोभमायाक्रोधमानं संज्वलनलोभमायाक्रोधमानं प्रत्याख्यानलोभमायाक्रोधमानं अप्रत्याख्यानलोभमायाको मानं चेति । नोकषायवेदनीयं नवविधं पुरुषस्त्रीनपुंसकवेदं रत्यरतिहास्यशोकभयजुगुप्साश्चेति । आयुष्यं चतुर्विधं नरकायुष्यं तिर्यग्मनुष्यदेवायुष्कं चेति । नामकर्म द्वाचत्वारिंशद्विधं पिण्डापिण्डप्रकृतिभेदेन गतिजातिशरीरबन्धनसंघातसंस्थानाङ्गोपाङ्गसंहननवर्णगन्धरसस्पर्शानुपूागुरुलघुकोपघातपरपातोच्छ्वासातपो
द्योतविहायोगतित्रसस्थावरबादरसूक्ष्म पर्याप्तापर्याप्त-प्रत्येकसाधारणशरीर स्थिरास्थिर-शुभाशुभसुभगदुर्भगसुस्वर१. दुःस्वरादेयानादेयशोऽयशस्कीतिनिर्माणतीर्थकरनामेति ।
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जो पूर्व स्थिति थी उसमें-से अति स्थापनावली प्रमाण कम कर दिया। यह विधान मनमें रखकर आचायने असंख्यातगुणाहीन क्रमसे मिथ्यात्व द्रव्य तीन रूप किया ऐसा कहा है।
चारित्रमोहनीयके दो भेद हैं-कषायवेदनीय और अकषायवेदनीय। उनमें से कषायवेदनीयके सोलह भेद हैं। जिस क्रमसे उनका क्षय होता है उस क्रम के अनुसार वे भेद इस प्रकार हैं-अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान माया लोभ, अप्रत्याख्यान क्रोध मान माया लोभ, प्रत्याख्यान क्रोध मान माया लोभ, क्रोधसंज्वलन, मानसंज्वलन मायासंज्वलन और लोभसंज्वलन । प्रदेशबन्धके अन्तर्गत होनेवाले विभाजनके क्रमानुसार लें तो अनन्तानुबन्धी लोभ माया क्रोध मान, संज्वलन लोभ माया क्रोध मान, प्रत्याख्यान लोभ माया क्रोध मान, अप्रत्याख्यान लोभ माया क्रोध मान, यह क्रम है। इसी क्रमसे इनमें विभाग दिया जाता है। नोकषाय वेदनीयके नौ भेद हैं-पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, रति, अरति, हास्य, शोक, भय, जुगुप्सा। आयुकर्मके चार भेद हैं-नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु, देवायु । नामकर्म पिण्ड प्रकृति और अपिण्ड प्रकृतिके भेदसे बयालीस भेदवाला है-गति, जाति, शरीर, बन्धन, संघात, संस्थान, अंगोपांग, संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, आनुपूर्व्य, अगुरुलघुक, उपघात, परघात, उच्छवास, आतप, उद्योत, विहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, - सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुःस्वर, आदेय, अनादेय, यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति, निर्माण, तीर्थकर
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