Book Title: Gommatasara Karma kanad Part 1
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गो० कर्मकाण्डे जंतेण कोदवं वा पढमुवसमसम्मभावजंतेण ।
मिच्छं दव्वं तु तिहा असंखगुणहीणदव्वकमा ।।२६।। यंत्रेण कोद्रववत् प्रथमोपशमसम्यक्त्वभावरांत्रेण । मिथ्यात्वद्रव्यं तु त्रिधा असंख्यातगुणहीनद्रव्यक्रमात् ॥
यंत्रेण कोद्रववत् हारक्किन कल्लिदं हारपब धान्य तु बोसिदोडे हारक्कुमक्कियं नुच्चुगलम दि तु त्रिप्रकारमप्पुदंते। तु मत्ते। प्रथमोपशमसम्यक्त्वभावयंत्रदिदं मिथ्यात्वद्रव्यं मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व सम्यक्त्वप्रकृतिस्वरूपदिदमसंख्यातगुणहीनद्रव्यक्रमर्दिव । त्रिधा स्यात् त्रिःप्रकारभप्युददे ते दोडे-दर्शनमोहनीयं बंधविवर्तयिदं मिथ्यात्वमेकप्रकारमेयक्कुमप्पुरिदमायु
बज्जितज्ञानावरणादिसप्तप्रकृतिद्रव्यं किंचिदूनद्वयर्द्धगुणहानिमात्रसमयप्रबद्धं सत्वमक्कुं। स ० १२-1 १० इदनेछं कमंगळ्गे पसुगयं माडिदोडे मोहनीयक्के त्रैराशिकसिद्धमिनितु द्रव्यमक्कु स . १२
मिदरो देशघातिसर्वघातिविभागनिमित्तमनन्त भागहारदिदं भागिसिदोडे बहुभागं देशघाति गळ्गक्कुमकभागं सर्वघातिसंबंधिद्रव्यमिनितक्कु स . १२- मी द्रव्यमं मिथ्यात्वमुं षोडशकषायंगळं सर्वघातिगळप्पुरिदं पदिनेळक्कं पसलोडमोदु मिथ्यात्वकर्मसंबंधिद्रव्यमिनितक्कु स० १२- मिदं प्रथमोपशमसम्यक्त्वकालमंतमहत्तमदर प्रथमसमयं मोदल्गोंडु चरमसमय७। ख १७
७।
ख
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यन्त्रेण घरट्रेन कोद्रवो दलितो यथा तुषतंडुलकणिकारूपेण त्रिधा भवति तथा प्रथमोपशमसम्यक्त्वभावयंत्रण मिथ्यात्वसम्यग्मिथ्यात्वसम्यक्त्वप्रकृतिस्वरूपेण असंख्यातगुणहीनद्रव्यक्रमेण त्रिधा भवति । तद्यथा
___आयुर्वजितसप्तकर्मद्रव्यं किंचिदूनद्वयर्धगुणहानिमात्रसमय प्रबद्धं स . १२-तत्सप्तभिर्मक्तं मोहनीयस्य स्यात् स ० १२-। तत्रानन्तबहुभागो देशघातिनः इत्येकभागः सर्ववातिनः स . १२-तच्च मिथ्यात्व
षोडशकषायेभ्यो दातुं सप्तदशभिर्भक्तं मिथ्यात्वस्यैतावत् स ० १२- 1 इदं प्रथमोपशमसम्यक्त्वकालांतर्मुहूर्तस्य
७ख १७
२० मिथ्यात्व है। किन्तु उदय और सत्त्वकी अपेक्षा मिथ्यात्व, सम्य ग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्व प्रकृति तीन भेद हैं ।।२५।।
ये तीन भेद कैसे होते हैं इसकी उपपत्ति कहते हैं
जैसे चाकीसे दलनेपर कोदोंके भूसी, चावल और कनरूपसे तीन भेद होते हैं उसी प्रकार प्रथमोपशम सम्यक्त्वरूप भावयन्त्रसे एक मिथ्यात्वप्रकृतिका द्रव्य (परमाणु समूह ) २५ क्रमसे असंख्यातगुण हीन द्रव्यरूपसे मिथ्यात्व, सम्यमिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृतिरूप
तीनमें विभाजित हो जाता है । उसका विवरण इस प्रकार है-आयुको छोड़ सातकर्मोका द्रव्य कुछ कम डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण है। उसमें सातसे भाग देनेपर मोहनीयका द्रव्य होता है। उसमें अनन्तसे भाग देनेपर बहुभाग देशघाती द्रव्य है और एक
भाग सर्वघाती द्रव्य है। उस सर्व घातीद्रव्यको मिथ्यात्व और सोलह कषायोंमें देने के लिए ३० सतरहसे भाग देनेपर मिथ्यात्वका द्रव्य होता है। प्रथमोपशम सम्यक्त्वके काल अन्तर्मुहूर्तके
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