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एक महिला प्रोफेसर का रुका हुआ रुदन / हमारी कोशिश: सुख को पकड़ना और दुख से बचना / दोनों छोड़ देना - संन्यासी के लिए मार्ग / दोनों पकड़ लेना - गृहस्थ के लिए मार्ग / मन आधे के साथ ही जी सकता है / मन का खेल — दो में तोड़ना / बेशर्त स्वीकार का चौबीस घंटे प्रयोग कर के देखें / शांत होना जीवन-दृष्टि है / मन की तरकीब प्रयत्न भी— स्वीकार भी / दोनों हाथ लड्डु – दो नावों पर एक साथ सवारी / सब समझौते झूठे / कर्ता की चिंता विक्षिप्तता लाएगा / सब मिट्टी हो जाता है / कर्ता छोड़ना है - कर्म नहीं / कर्ता का बोझ हटते ही विराट कर्म फलित / कर्तारहित कर्म / पशु की तरह चलना भय से या लोभ से / अहंकार पशु है / सहज स्फूर्त कर्म / जो उसकी मर्जी / क्या आप भगवान हैं? / तुम भी भगवान हो / भगवान के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है / सृष्टि और स्रष्टा एक हैं / नृत्य और नर्तक एक हैं / बुद्ध, महावीर, कृष्ण की घोषणाएं / कृष्ण ने अर्जुन को विराट का दर्शन कराया / मैं भी विराट का दर्शन करवा सकता हूं तुम्हें अर्जुन बनना होगा / स्वयं की भगवत्ता को पहचानने में लगें / भविष्य दिखता नहीं, अन्यथा हम उसे सह न सकेंगे / अतीत भूले न, और भविष्य दिखाई पड़ने लगे, तो मुश्किल हो जाए / मृत्यु-बोध का धक्का / भविष्य और विराट को देखकर अर्जुन का कंपना और गदगद भी होना / भविष्य ज्ञात हो, तो खेल का मजा चला जाता है / जीत सुनिश्चित हो, तो अहंकार का रस-भंग / निमित्त मात्र होने में अहंकार को रस नहीं है / परमात्मा के साक्षात्कार से भय भी, हर्ष भी / मन है द्वंद्व / कुछ है जो नष्ट होगा, कुछ है जो पुष्ट होगा / परमात्मा का नाम सुन कर ही रामकृष्ण का समाधिस्थ हो जाना / संसार के प्रति बेहोश, परमात्मा के प्रति होश / यही कीर्तन का अर्थ है / कई मित्रों को यहां हो रहे कीर्तन से अड़चन है / शरीर का होश नहीं / स्त्री-पुरुष साथ-साथ नाच रहे हैं / कीर्तन तो पागलों का रास्ता है / अपने को धारा में छोड़ना - फिर जो हो / कीर्तन बुद्धिमानों का काम नहीं है / कीर्तन की कला खो गई है / हम अति बुद्धिमान हो गए हैं। बुद्धि को छोड़ने की क्षमता चाहिए / विराट के दर्शन से लड़खड़ाती अर्जुन की वाणी / धन्यभाव के वचन / नमस्कार – नमस्कार - नमस्कार / गुरु से उऋण होना शिष्य के लिए असंभव है / शिष्य क्या करे / सिर्फ नमन रह जाता है / नमन की अदभुत धारणा - भारत में विकसित / गुरु चरणों में सब भांति समर्पित हो जाना / धर्म हैकला / कृष्ण के झरोखे से अर्जुन ने विराट में झांका।
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- झुकने की
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चरण-स्पर्श का विज्ञान 377
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प्रभु से हम क्या मांगें ? क्या प्रार्थना करें ? / प्रार्थना है धन्यवाद, अनुग्रह भाव - मांग नहीं / असीम जीवन हमें मिला है / बोध कथा : मांगने में असमर्थ विवेकानंद / मांग संसार है / मांगने वाले मन में प्रार्थना असंभव / प्रार्थना कृत्य नहीं - अंतर्दशा है / वासना का भिखमंगापन / वासना है दौड़ / प्रार्थना है रुक जाना / प्राणों में पुलकन, थिरकन / मीरा के गीत और नृत्य / नर्तकियां और कवि / बुद्ध की निष्कंप शांति / विश्राम के क्षण में ठहर जाना / परमात्मा तो निराकार है, फिर आप बुद्ध, महावीर और कृष्ण को भगवान क्यों कहते हैं? / सभी कुछ निराकार है/ देखने की सीमित क्षमता से आकार निर्मित / कहां आपका शरीर समाप्त होता है / सूर्य शरीर का हिस्सा है आपका प्रारंभ क्या है और आपका अंत कहां है / अरबों-खरबों वर्षों से चल रहे आपके जीवाणु / सूर्य पर उठे तूफानों से पृथ्वी पर विक्षिप्तता की लहरें / वैज्ञानिक अध्ययन / आप भी असीम हैं / मुक्त और शून्य दृष्टि में विराट की प्रतीति / एक में परमात्मा दिखे तो सब में परमात्मा / बुद्ध पुरुष सदा उपलब्ध हैं हमारे पास आंख नहीं है / बोधकथा बुद्ध जब अज्ञानी थे / भगवान को देखने की आंख / बोधकथा नानक जब मक्का गए / देखने की कला / कोर्तन के समय किस छवि पर मन को केंद्रित करें? / मन को केंद्रित नहीं - विसर्जित करना है / एकाग्रता तनाव है / डूबना, पिघलना, लीन होना / जगत का विस्मरण और परमात्मा का स्मरण / व्यक्ति विराट हो जाता है / छवि को न लाने की चेष्टा करें, न हटाने की / साकार से निराकार में छलांग / कीर्तन से व्यवस्था का कोई संबंध नहीं है / पहले शरीर को छोड़ना फिर मन को / रूसी अंतरिक्षयात्री के भारहीनता के अनुभव / शरीर से अलग साक्षी का बोध / अंतरिक्ष यात्रा का ध्यान के लिए उपयोग / दरवेश नृत्य - व्हिलिंग / गोल घूमने में बच्चों का रस / विराट के दर्शन के बाद अर्जुन की कृष्ण से क्षमायाचना / सब में परमात्मा दिखने से व्यवहार का बदल जाना / रवींद्रनाथ का संस्मरणः बिना अनुभव के गीतांजलि लिखना / एक वृद्ध पुरुष द्वारा पीछा / समाधि की पहली झलक / वृद्ध के प्रति अनुग्रह भाव / अज्ञानी का व्यवहार / अनुभव के बाद पूरे जगत से माफी मांगने का भाव / अर्जुन ने कृष्ण को एक मित्र माना था / चरणों में सिर रखने का भाव / शरीर और मन जुड़े हुए हैं / जेम्स लेंगे का सिद्धांत / मन दुखी हो तो शरीर में ज्यादा रोग / मन प्रसन्न हो तो शरीर में बीमारी का प्रवेश कठिन / क्रोध में दांत और मुट्ठी का भंचना / प्रेम में शरीर और मन शिथिल हो जाता है / सारी दुनिया में अपमान करने के लिए सिर पर जूता मारना / श्रद्धा के क्षणों में किसी चरणों पर सिर रखने की भारतीय परंपरा / चरण-स्पर्श का ऊर्जा - विज्ञान / देह - विद्युत के संबंध में वैज्ञानिक प्रयोग / धन और ऋण विद्युत