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गीता दर्शन भाग-3>
गा
आप किसी को मित्र बना रहे हैं, तब आपके मन का एक हिस्सा | सुख नहीं मिला, तो फिर उलटे को चुन लो। और मन निरंतर, उसमें शत्रुता खोजने में लग जाता है, फौरन लग जाता है! आपने | | जिसको हम अनुभव कर लेते हैं, उससे ऊब जाता है और उससे किसी को प्रेम किया और मन का दूसरा हिस्सा तत्काल उसमें घृणा | विपरीत, जिसका हम अनुभव नहीं करते, उसके लिए लालायित के आधार खोजने में लग जाता है। आपने किसी को सुंदर कहा और बना रहता है। मन का दूसरा हिस्सा तत्काल तलाश करने लगता है कि कुरूप और स्मृति हमारी बड़ी कमजोर है। ऐसा नहीं है कि जिसे हम क्या-क्या है! आपने किसी के प्रति श्रद्धा प्रकट की और मन का आज ऊबकर छोड़ रहे हैं, उसे हम फिर पुनः कल न चुन लेंगे। दूसरा हिस्सा फौरन खोजने लगता है कि अश्रद्धा कैसे प्रकट करूं! स्मृति हमारी बड़ी कमजोर है। कल फिर हम उसे चुन सकते हैं।
मन का दूसरा पलड़ा मौजूद है, भला ऊपर उठ गया हो, अभी जिसे हमने आज ऊबकर छोड़ दिया है और विपरीत को पकड़ लिया वजन उस पर न हो। लेकिन वह भी वजन की तलाश शुरू कर है, कल हम विपरीत से भी ऊब जाएंगे और फिर इसे पकड़ लेंगे। देगा। और ज्यादा देर नहीं लगेगी कि नीचे का पलड़ा थक जाएगा, स्मृति बड़ी कमजोर है। हल्का होना चाहेगा। ऊपर का उठा पलड़ा भी थक जाएगा और असल में अतियों से भरे हुए चित्त में स्मृति होती ही नहीं। भारी होना चाहेगा। और हम एक पलड़े से दूसरे पलड़े पर वजन अतियों से भरे चित्त में तो विपरीत का आकर्षण ही होता है। कभी रखते हुए जिंदगी गुजार देंगे। इस पलड़े से वजन उठाएंगे, उस लौटकर जिंदगी को देखें। आपकी जिंदगी में आप उन्हीं-उन्हीं चीजों पलड़े पर रख देंगे। उस पलड़े से वजन उठाएंगे, इस पलड़े पर रख को बार-बार चुनते हुए मालूम पड़ेंगे। देंगे। पूरी जिंदगी, मन के एक अति से दूसरी अति पर बदलने में | आज सांझ किया है क्रोध; मन पछताया। क्रोध करते ही मन बीत जाती है।
पछताना शुरू कर देता है। वह विपरीत है। वह दूसरी अति है। इधर कृष्ण कहते हैं, उसे कहता हूं मैं योगी, जो समत्वबुद्धि को क्रोध जारी हुआ, उधर मन ने पछताने की तैयारी शुरू की। क्रोध उपलब्ध हो। जो पलड़ों पर वजन रखना बंद कर दे। इस बचकानी, | हुआ, आग जली, उत्तेजित हुए, पीड़ित-परेशान हुए। फिर मन नासमझ हरकत को बंद कर दे और कहे कि मैं इस किस जाल में | | दुखी हुआ, रोया, पराजित हुआ, पछताया। पछताने में दूसरी अति पड़ गया! जो तराजू के पलड़ों से अपनी आइडेंटिटी, अपना छू ली। लेकिन ध्यान रखना, पछताकर फिर आप क्रोध करने की तादात्म्य तोड़ दे। और तराजू जहां ठहर जाता है, जहां समतुल हो तैयारी में पड़ेंगे। कल सांझ तक आप फिर तैयारी कर लेंगे क्रोध जाता है, वहां आ जाए, मध्य में। दो अतियों के बीच, ठीक मध्य की। वह कल जो पछताए थे, उसकी स्मृति नहीं रह जाएगी। को जो खोज ले; न मित्र, न शत्रु; जो बीच में रुक जाए। कितनी बार पछताए हैं! पश्चात्ताप कोई नई घटना नहीं है। वही
यह बड़ा अदभुत क्षण है, बीच में रुक जाने का। और एक बार किया है रोज-रोज; फिर पछताए हैं। फिर वही करेंगे, फिर इस बीच में रुकने का जिसे आनंद आ गया और इस बीच में | पछताएंगे। और कभी यह खयाल न आएगा कि इतनी बार रुकने के अतिरिक्त कहीं कोई आनंद नहीं है। क्योंकि जब भी एक पश्चात्ताप किया, कोई परिणाम तो होता नहीं। पलड़े पर भार होता है, तभी चित्त में तनाव हो जाता है।
तो अगर आप इतना भी कर लें कि अब क्रोध तो करूंगा, लेकिन __जब भी आप कुछ चुनते हैं, चित्त में उत्तेजना शुरू हो जाती है। | पश्चात्ताप नहीं करूंगा, तो भी आप बड़ी मुश्किल में पड़ जाएंगे।
च तो यह है कि उत्तेजना के बिना चन ही नहीं सकते। उत्तेजना से क्योंकि अगर आपने पश्चात्ताप नहीं किया. तो फिर मन फिर से ही चुनते हैं; उद्विग्न हो जाते हैं। और जब भी उत्तेजना से चुनते हैं, क्रोध की तैयारी नहीं कर पाएगा। यह आपको उलटा लगेगा। तभी मन के लिए पीड़ा के लिए निमंत्रण दे दिया, दुख को बुलावा लेकिन जीवन की धारा ऐसी है। दे दिया। फिर थोड़ी देर में ऊब होगी, फिर थोड़ी देर में परेशान __ आपसे मैं कहता हूं, क्रोध मत छोड़ें, पश्चात्ताप ही छोड़ दें होंगे। फिर इससे विपरीत चुनेंगे, यह सोचकर कि जब इसमें कुछ सिर्फ। फिर आप क्रोध नहीं कर पाएंगे, क्योंकि पश्चात्ताप पुनः क्रोध सुख न मिला, तो शायद विपरीत में मिल जाए।
की तैयारी है। क्रोध छोड दें. तो पश्चात्ताप नहीं कर पाएंगे. क्योंकि मन का गणित ऐसा है। वह कहता है, इसमें सुख नहीं मिला, पश्चात्ताप की कोई जरूरत न रह जाएगी। पश्चात्ताप छोड़ दें, तो तो इससे उलटे को चुन लो। शायद उसमें सुख मिल जाए! उसमें क्रोध नहीं कर पाएंगे, क्योंकि पश्चात्ताप के बिना क्रोध को भूलना
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