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गीता दर्शन भाग-3
कहां तक बचाए रखोगे? इसको छोड़ो ! बुद्ध के पिता ने फिर भी नहीं समझा। बुद्ध के पिता ने कहा कि नासमझ, तुझे पता नहीं है।
उस बुद्ध को बुद्ध के पिता नासमझ कह रहे हैं, जिससे समझदार आदमी इस जमीन पर मुश्किल से कभी कोई होता है! लेकिन बाप का अहंकार बेटे को समझदार कैसे माने! लाखों लोग उसको समझदार मान रहे हैं। लाखों लोग उसके चरणों में सिर रख रहे हैं। लेकिन बुद्ध के बाप अकड़कर खड़े हैं।
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बाप नहीं समझ पाए; पत्नी नहीं समझ पाई; पर बारह साल का राहुल भिक्षा पात्र लेकर भिक्षुओं में सम्मिलित हो गया। बहुत मां | ने बुलाया; बहुत पिता ने कहा कि बेटे, तू लौट आ । इस बात में मत पड़ । पर राहुल ने कहा, बात पूरी हो गई। मेरी दीक्षा हो गई। साधन का अर्थ है, वह जो सात्विक होने का भी अहंकार बच | रहेगा, उसे भी काटना पड़ता है।
अगर कोई सिर्फ शुद्ध होने की कोशिश करे, सिर्फ नैतिक होने की, तो उसको साधन की जरूरत पड़ेगी। लेकिन अगर कोई योग के साथ शुद्ध होने की कोशिश करे, तो फिर साधन की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि योग का साधन साथ ही साथ विकसित होता चला | जाता है।
कहा, नासमझ, हमारे परिवार में, हमारी कुल-परंपरा में कभी किसी ने भीख नहीं मांगी। बुद्ध ने कहा, आपकी कुल परंपरा में न मांगी होगी। लेकिन जहां तक मैं याद करता हूं अपने पिछले जन्मों को, मैं सदा का भिखारी हूं। मैं सदा ही भीख मांगता रहा हूं। उसी भीख मांगने की वजह से तुम्हारे घर में पैदा हो गया था; और कोई कारण न था। मगर पुरानी आदत, मैंने फिर अपना भिक्षा पात्र उठा लिया।
जब बुद्ध अपने घर पहली बार गए बारह वर्ष के बाद, तो उनकी पत्नी ने बहुत क्रोध से अपने बेटे को कहा कि मांग ले बुद्ध से ! ये तेरे पिता हैं। देख तेरे बेशर्म पिता को, ये सब छोड़कर भाग गए हैं।
मुझे छोड़कर भाग गए हैं। ये मुझसे बिना पूछे भाग गए हैं। तू एक दिन का था, तब ये भाग गए हैं। ये तेरे पिता हैं, इनसे अपनी वसीयत मांग ले। गहरा व्यंग्य कर रही थी पत्नी । पत्नी को पता नहीं कि किससे व्यंग्य कर रही है। वह आदमी अब मौजूद ही नहीं है। शून्य में यह व्यंग्य खो जाएगा। लेकिन पत्नी को तो अभी भी पुराना पत्नी का भाव मौजूद था। उसे बुद्ध दिखाई नहीं पड़ रहे थे। वह जो सामने खड़ा था सूर्य की भांति, वह उसकी अंधी आंखों में नहीं दिखाई पड़ सकता था।
राग अंधा कर देता है; सूर्य भी नहीं दिखाई पड़ता है । बुद्ध भी बुद्ध की पत्नी को नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। पत्नी अपने बेटे से व्यंग्य करवा रही है कि मांग। हाथ फैला। बुद्ध से मांग ले कि संपत्ति क्या है ? मेरे लिए क्या छोड़े जा रहे हैं ? गहरा व्यंग्य था । बुद्ध के पास तो कुछ भी न था ।
लेकिन उसे पता नहीं। बुद्ध के बेटे ने, राहुल ने, हाथ फैला दिए। बुद्ध ने अपना भिक्षा पात्र उसके हाथ में रख दिया, और कहा, मैं तुझे भिक्षा मांगने की वसीयत देता हूं, तू भिक्षा मांग।
पत्नी रोने-चिल्लाने लगी कि आप यह क्या करते हैं? बाप घबड़ा गए और कहा कि तू गया, अब घर का एक ही दीया बचा, उसे भी बुझाए देता है! बुद्ध ने कहा, मैं इसी के लिए आया हूं इतनी
दूर। इसकी संभावनाओं का मुझे पता है। इसकी पिछली यात्राओं | का मुझे अनुभव है। तुम इसे जानते हो कि छोटा-सा बच्चा है, मैं नहीं जानता। मैं जानता हूं कि इसकी अपनी यात्रा है, जो काफी आगे निकल गई है। जरा-सी चोट की जरूरत है।
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आज इतना ही। फिर शेष हम सांझ बात करेंगे। अब थोड़ी देर साधन में प्रवेश करें।
कीर्तन भी एक साधन है। कर पाते हैं, उनके भीतर का | अहंकार गिरेगा, टूटेगा । और आप नहीं कर पाते हैं, तो और कोई | कारण नहीं; वह अहंकार भीतर बैठा है। वह कहता है, मैं पढ़ा-लिखा आदमी, युनिवर्सिटी से शिक्षित हूं, बड़ी नौकरी पर हूं, मैं ताली बजाऊं, मैं नाचूं ! यह ग्रामीणों जैसा काम, मैं करूं!
वह बैठा है, साधन से टूटेगा। नहीं तो वह बड़ा होता जाएगा। सम्मिलित हों कीर्तन में। जब सारे संन्यासी नाच रहे हैं, गीत गा रहे हैं, तब उनके साथ जुड़ें; आनंदित हों; सम्मिलित हों; गीत | दोहराएं।