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< श्रद्धावान योगी श्रेष्ठ है -
योग है।
शरीर पर है। योगी का सारा प्रयोग अंतसचेतना पर है। क्योंकि ध्यान पारे की तरह हाथ से छिटक-छिटक जाता है। पकड़ा
तप दिखाई पड़ने से क्या प्रयोजन है? तपस्वी को बाजार में खड़ा नहीं, कि छूट जाता है। पकड़ भी नहीं पाए, कि छूट जाता है। एक होने की जरूरत ही क्या है? यह प्रश्न तो अपना और परमात्मा के | क्षण भी नहीं रुकता एक जगह। इस ध्यान को एक जगह ठहरा लेना बीच है; यह मेरे और आपके बीच नहीं है। आप मेरे संबंध में क्या कहते हैं, यह सवाल नहीं है। मैं आपके संबंध में क्या कहता हूं, तपस्वी दिखाई पड़ता है; बहुत गहरी बात नहीं है। इसका यह यह सवाल नहीं है। मेरे संबंध में परमात्मा क्या कहता है, वह मतलब नहीं है कि जो आदमी योग को उपलब्ध हो, उसके जीवन सवाल है। मेरे संबंध में मैं क्या जानता हूं, वह सवाल है। में तपश्चर्या न होगी। जो आदमी योग को उपलब्ध हो, उसके योगी की समस्त साधना, अंतधिना है।
जीवन में तपश्चर्या होगी। लेकिन जो आदमी तपश्चर्या कर रहा है, इसलिए कृष्ण कहते हैं, तपस्वी से महान है योगी, अर्जुन। ऐसा उसके जीवन में योग होगा, यह जरा कठिन मामला है। इसको कहने की जरूरत पड़ी होगी, क्योंकि तपस्वी सदा ही महान दिखाई | खयाल में ले लें। पड़ता है। जो आदमी रास्तों पर कांटे बिछाकर उन पर लेट जाए, | जो आदमी योग करता है, उसके जीवन में एक तरह की वह स्वभावतः महान दिखाई पड़ेगा उस आदमी से, जो अपनी | आस्टेरिटी, एक तरह की तपश्चर्या आ जाती है। वह तपश्चर्या भी आरामकुर्सी में लेटकर ध्यान करता हो। महान दिखाई पड़ेगा। | सूक्ष्म होती है। वह तपश्चर्या बड़ी सूक्ष्म होती है। वह आदमी एक आरामकुर्सी में बैठना कौन-सी महानता है ?
गहरे अर्थों में सरल हो जाता है। वह आदमी गहरे अर्थों में दुख को लेकिन मैं आपसे कहता हूं, कांटों पर लेटना बड़ी साधारण | | झेलने के लिए सदा तत्पर हो जाता है। वह आदमी सुख की मांग सर्कस की बात है, बड़ा काम नहीं है। कांटों पर, कोई भी थोड़ा-सा नहीं करता। उस आदमी पर दुख आ जाएं, तो वह चुपचाप उनको अभ्यास करे, तो लेट जाएगा। और अगर आपको लेटना हो, तो । | संतोष से वहन करता है। उसके जीवन में तपश्चर्या होती है। लेकिन थोड़ी-सी बात समझने की जरूरत है, ज्यादा नहीं!
| तपश्चर्या कल्टिवेटेड नहीं होती. इतना फर्क होता है। आदमी की पीठ पर ऐसे बिंदु हैं, जिनमें पीड़ा नहीं होती। अगर दुख आ जाए, तो योगी दुख को ऐसे झेलता है, जैसे वह दुख न आपकी पीठ पर कोई कांटा चुभाए, तो कई, पच्चीस जगह ऐसी हो। सुख आ जाए, तो ऐसे झेलता है, जैसे वह सुख न हो। योगी निकल आएंगी, जब आपको कांटा चुभेगा, और आप न बता | सुख और दुख में सम होता है। सकेंगे कि कांटा चुभ रहा है। आपकी पीठ पर पच्चीस-तीस तपस्वी? तपस्वी दुख आ जाए, इसकी प्रतीक्षा नहीं करता; अपनी ब्लाइंड स्पाट्स हैं, हरेक आदमी की पीठ पर। आप घर जाकर बच्चे | तरफ से दुख का इंतजाम करता है, आयोजन करता है। अगर एक
से कहना कि जरा पीठ में कांटा चुभाओ! आपको पता चल जाएगा दिन भूख लगी हो और खाना न मिले, तो योगी विक्षुब्ध नहीं हो · कि आपकी पीठ पर ब्लाइंड स्पाट्स हैं, जहां कांटा चुभेगा, लेकिन जाता; भूख को शांति से देखता है; सम रहता है। लेकिन तपस्वी?
आपको पता नहीं चलेगा। बस, उन्हीं ब्लाइंड स्पाट्स का थोड़ा-सा तपस्वी को भूख भी लगी हो, भोजन भी मौजूद हो, शरीर की जरूरत अभ्यास करना पड़ता है। व्यवस्थित कांटे रखने पड़ते हैं, जो भी हो, भोजन भी मिलता हो, तो भी रोककर, हठ बांधकर बैठ जाता ब्लाइंड स्पाट्स में लग जाएं। फिर पीठ पर लेटे हुए आदमी को है कि भोजन नहीं करूंगा। यह आयोजित दुख है। कांटे का पता नहीं चलता है। यह तो फिजियोलाजी की सीधी-सी ___ ध्यान रहे, भोगी सुख की आयोजना करता है, तपस्वी दुख की ट्रिक है, इसमें कुछ मामला नहीं है।
| आयोजना करता है। अगर भोगी सिर सीधा करके खड़ा है, तो लेकिन कांटे पर कोई आदमी लेटा हो, तो चमत्कार हो जाएगा, | | तपस्वी शीर्षासन लगाकर खड़ा हो जाता है। लेकिन दोनों आयोजन भीड़ इकट्ठी हो जाएगी। लेकिन कोई आदमी अगर आरामकुर्सी पर करते हैं। बैठकर ध्यान को शांत कर रहा हो, तो कोई भीड़ इकट्ठी नहीं होगी, | योगी आयोजन नहीं करता। वह कहता है, प्रभु जो देता है, उसे किसी को पता भी नहीं चलेगा। यद्यपि ध्यान को एकाग्र करना | | सम भाव से मैं लेता हूं। वह आयोजन नहीं करता। वह अपनी तरफ कांटों पर लेटने से बहुत कठिन काम है। ध्यान को एकाग्र करना से न सुख का आयोजन करता, न दुख का आयोजन करता। जो कांटों पर लेटने से बहुत कठिन काम है, अति कठिन काम है। मिल जाता है, उस मिल गए में शांति से ऐसे गुजर जाता है, जैसे
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