Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 464
________________ __ + गीता दर्शन भाग-3 - है और जादूगर के घर के सामने का ही है। जब भी वह जादूगर कुछ दिखता है, मेरी पत्नी में मुझे शरीर दिखता है, मेरे पिता में मुझे शरीर दिखाता है, तो वह तोता जोर से चिल्लाता है, फोनी फोनी; सब दिखता है और राम में मुझे भगवान दिखते हैं, तो गलत कहता है। झूठ है, सब झूठ है; सब तरकीब है, सब हाथ की सफाई है। जब | यह नहीं हो सकता। यह संभव नहीं है। क्योंकि एक बार राम के भी जादूगर कभी कुछ दिखाता है, वह तोता जरूर चिल्लाता है कि शरीर में अगर निराकार दिखाई पड़ जाए, तो सभी शरीरों में दिखाई सब हाथ की सफाई है, सब धोखा है। सावधान! पड़ना शुरू हो जाएगा। फिर जहाज डूब जाता है। एक बड़ा तूफान आया और जहाज दिखाई पड़ जाए, तो बात खुल गई। वह हमारा पुराना तर्क टूट डूब गया। संयोग की बात, एक लकड़ी के पटिए को जादूगर गया। वह हमारे पुराने देखने का ढांचा, व्यवस्था मिट गई। अब पकड़कर अपने को बचाने की कोशिश करता है। वह तोता भी उसी हमने नए ढंग से चीजों को देखा। अब हमें आकार दिखाई पड़ेगा, लकड़ी के पटिए पर आकर बैठ गया है। अब वे दोनों ही समुद्र में लेकिन आकार के पीछे निराकार सदा ही छिपा हुआ मालूम चलते हैं। दो दिन तक जादूगर भी गुस्से में उससे नहीं बोला, पड़ेगा। उसका एहसास होगा, उसकी एक छाया हर आकार का क्योंकि वह उससे दुश्मनी कर रहा था रोज। और तोता भी दो दिन | पीछा करेगी। तक नहीं बोला। क्योंकि उसकी भी हिम्मत न पड़ी कहने की। किसी व्यक्ति को हम गले मिलाएं, हड्डियां ही गले मिलेंगी, लेकिन दो दिन बाद उसने कहा जादूगर से, अच्छी बात है। माना | | लेकिन फिर हम भीतर से जानेंगे कि कुछ और निराकार भी मिल कि तुम बड़े बुद्धिमान हो। लेकिन जरा यह तो बताओ कि उस | रहा है। तब वह आत्मा का मिलन बन जाएगा। जहाज का तुमने क्या किया? कृष्ण कहते हैं, बुद्धिहीन जो हैं, वे मेरे शरीर को ही देख पाते, ___ वह समझा कि कोई ट्रिक की है; इसी की शरारत है। उस तोते रूप को ही देख पाते, आकार को ही देख पाते। वे मेरी निराकार ने समझा कि इसी की कोई शरारत है, हरकत है। लेकिन दो दिन विभूति का अनुभव नहीं कर पाते। और उस निराकार में ही मैं छिपा तक उसने देखा कि ऐसी कैसी ट्रिक कि दो दिन हो गए, अभी तक हूं; वही मैं हूं। वह जहाज नहीं लौटा। उसने कहा कि माना कि तुम बड़े बुद्धिमान ___ अब यह कठिनाई है। अभिव्यक्त होने की कठिनाइयां हैं। सबसे हो, लेकिन कृपा करके अब इतना तो बता दो कि उस जहाज का बड़ी कठिनाई यह है कि अभिव्यक्त होते ही आकार लेना पड़ेगा। क्या किया? आकार के बिना कोई अभिव्यक्ति संभव नहीं है। चौबीस घंटे, वर्षों से वह तोता जादूगर के घर के सामने उसके अगर मुझे बोलना है, तो शब्द का उपयोग करना पड़ेगा। लेकिन हाथ की सफाइयां देख रहा था। उसके सोचने का एक ढंग बना। शब्द का उपयोग करते ही डर यह है कि अर्थ आपके पास पहुंचे ही फिर जहाज पर भी वह हाथ की सफाइयां देख रहा था। उसके नहीं, सिर्फ शब्द पहुंच जाए। जैसा कि रोज होता है; शब्द ही पहुंच सोचने का एक ढंग निश्चित हो गया था। वह यह सोच ही नहीं | जाते हैं, अर्थ नहीं पहुंचता। अर्थ तो पीछे पड़ा रह जाता है। अर्थ पाया तोता कि जहाज डूब गया। उसने समझा कि इसी की शरारत निराकार है; शब्द साकार है। है। इसी ने कोई ट्रिक, कोई हाथ की सफाई दिखलाई है। इसलिए । जब मैं एक शब्द बोलता हूं, आपके पास शब्द जाकर आपकी दो दिन तक वह चुप रहा कि कब तक यह हाथ की सफाई दिखलाता मेमोरी में, आपकी स्मृति के बैंक में जमा हो जाता है। आप समझे रहेगा। आखिर थोड़ी-बहुत देर में जहाज प्रकट होगा, तब मैं | कि समझ गए; शब्द पास आ गया; अब आप उसका उपयोग कर चिल्लाऊंगा, फोनी! फोनी! सब झूठा है। लेकिन वह मौका आया | सकते हैं। कोई चाहे तो आप बता सकते हैं कि मैं क्या-क्या बोला। नहीं दो दिन में। आप बता भी दें कि मैं क्या-क्या बोला, तब भी जरूरी नहीं है हम सब के भी मन की आदतें हैं, सोचने के ढंग हैं। बंध जाते | कि आप वह समझ गए हों, जो मैंने बोला है। क्योंकि वह अर्थ है, हैं। जब पत्थर में नहीं दिखता कुछ, तो मूर्ति में नहीं दिखेगा। पत्थर | | वह पीछे छिपा पड़ा है। उस अर्थ को जानने के लिए निराकार की में दिखे, तो मूर्ति में भी दिख जाएगा। कोई कहता हो कि पत्थर में पकड़ चाहिए। तो मुझे पत्थर ही दिखता है और मूर्ति में भगवान दिखते हैं, तो झूठ । अब बोलना है, तो शब्द का उपयोग करना पड़ेगा; और जो कहता है। कोई अगर कहता हो कि मेरे बेटे में तो मुझे शरीर ही | | | बोलना है, वह निःशब्द है। कठिनाई है, अड़चन है, मुसीबत है। 438

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