Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 465
________________ < निराकार का बोध लेकिन ऐसा तथ्य है; जीवन का ऐसा तथ्य है। यहां सभी चीजें जब कि यह बुद्ध नाम का आदमी कभी हुआ ही नहीं। चौंके वे। समझे भी प्रकट होंगी, रूप लेंगी। रूप लेते ही रूप दिखाई पड़ेगा, अरूप | कि कुछ मस्तिष्क में खराबी तो नहीं आ गई! तीस साल से देखते छिप जाएगा। वह अरूप नहीं दिखाई पड़े, तो हमारे जीवन में हैं इस आदमी को बुद्ध के चरणों में सिर रखते; आज अचानक भागवत चैतन्य का कोई संस्पर्श नहीं हो पाता है। इसको क्या हो गया। उन्होंने कहा, क्या कहते हैं आप? कृष्ण कहते हैं, मुझ सच्चिदानंद को जानना हो, तो रूप से आंखें रिझाई ने कहा, बुद्ध नाम का आदमी न कभी हुआ, न इस जमीन उठानी पड़ें, आकार से ऊपर उठना पड़े, शरीर के पार झांकने की पर कभी चला, न कभी बोला। ये सब शास्त्र झूठे हैं। उन्होंने कहा, कोशिश करनी पड़े। यह कहीं से भी शुरू की जा सकती है। जरूरी | हमें थोड़ा समझाएं, अन्यथा हम मुश्किल में पड़ गए हैं। रिझाई ने नहीं है कि कोई कृष्ण के पास ही जाए, क्योंकि अब कैसे जाएंगे| कहा कि मैं तुमसे कहता हूं, मैं भी कभी नहीं हुआ। मैं भी कभी नहीं कृष्ण के पास! कहीं से भी शुरू कर सकते हैं। एक गेस्टाल्ट है बोला। मैं भी कभी नहीं चला। ये सब बातें झूठी हैं। तब उन्हें मस्तिष्क में। हम जिस ढंग की देखने की आदत से बंध गए हैं, उसी | | थोड़ा-सा भरोसा आया कि वह आदमी क्या कह रहा है। तो उन्होंने तरह देखे चले जाते हैं। हमें दूसरी चीज दिखाई नहीं पड़ती। पूछा कि आप कहना क्या चाहते हैं? __ हम सब कंडीशंड हैं। एक मजबूत यंत्र की तरह हमारा मन काम _ रिझाई ने कहा कि आज मुझे पता चला कि चलना केवल शरीर करता है। कृष्ण इस यंत्र को तोड़ने के लिए कह रहे हैं। वे कह रहे | का है, बोलना केवल शरीर का है। भूख, प्यास, नींद शरीर की है। हैं कि कोई भी प्रेमी, कोई भी भक्त, जो मुझे जानना चाहता हो, उसे | वह जो भीतर है, उसे कभी भूख नहीं लगती, नींद नहीं आती। वह मेरे सच्चिदानंद रूप की, अरूप की, निराकार की दिशा में खोज कभी चलता नहीं, बैठता नहीं, उठता नहीं। वह कभी जन्म नहीं करनी चाहिए। मेरे रूप पर मत रुक जाना। मेरे शब्द पर मत रुक लेता, वह कभी मरता नहीं। वह इन सारी घटनाओं के पार है। ये जाना। मेरे शरीर पर मत ठहर जाना। थोड़ा हटना, ट्रांसेंड करना, | सारी घटनाएं आकार के भीतर हैं और वह निराकार है। पार, थोड़े ऊपर उठकर जाने की कोशिश करना। दूसरे दिन सुबह वह फिर बुद्ध के चरणों में सिर रखे पड़ा था। तो बुद्ध मर रहे हैं; आखिरी क्षण है। कोई उनसे पूछता है कि आप उन भिक्षुओं ने पूछा कि अब आप यह क्या कर रहे हैं? जो कभी मरने के बाद कहां जाएंगे? तो बुद्ध कहते हैं, तो फिर तुम मुझे समझ हुआ ही नहीं, उसके चरणों में सिर क्यों रखे हुए हैं? रिझाई ने कहा नहीं पाए। क्योंकि में जीते जी ही कहीं नहीं गया। निश्चित ही, कि कहां का सिर? कोन रखे हुए है? वह भी नहीं हुआ कभी, जो कठिनाई हो गई होगी पूछने वाले को। उसने कहा, कैसी आप बात सामने है; और यह जो सामने पड़ा हुआ है, यह भी कभी नहीं हुआ। करते हैं। कई गांव तो मैं आपके पीछे गया हूं! कई यात्राओं पर तो अरूप की खोज करनी पड़ेगी। और सबसे सरल है कि अपने मैं सम्मिलित रहा हूं। बुद्ध ने कहा, तू भला गया हो, लेकिन मैं भीतर शुरू करें। दूसरे के पास जाकर अरूप को खोजना बहुत तुझसे कहता हूं कि मैं अपने जीवन में कहीं नहीं गया। यात्रा मैंने कठिन होगा। अपने भीतर आसानी से खोज हो सकती है। कभी कभी की ही नहीं। आंख बंद करके भीतर देखने की कोशिश किया करें कि क्या मैं मजाक समझी होगी, कि बुद्ध मजाक कर रहे हैं। उनके चेहरे की शरीर के रूप में बंधा हूं? कभी आंख बंद करके कोशिश करें कि तरफ देखा होगा। लेकिन वे मजाक नहीं कर रहे हैं। बुद्ध ने कहा, | मेरी सीमा क्या है? और आप बहुत हैरान हो जाएंगे। अगर आप मैं हंसता नहीं। मजाक नहीं करता। मैं अपने जीवन में कहीं गया तीन महीने एक छोटा-सा प्रयोग करें, तो यह सूत्र आपको खुल नहीं। और जो गया, वह मैं नहीं हूं। यह शरीर चलता था; तूने इसी जाएगा। तीन महीने आधा घंटा रोज आंख बंद करके यही केवल को देखा है। इसके भीतर एक अचल भी बैठा हुआ है; जो सोचें कि मेरी सीमा कहां है? बिलकुल नहीं चलता, वह तूने नहीं देखा है। आज सोचेंगे तो आपको शरीर ही अपनी सीमा मालूम पड़ेगी। जापान में एक फकीर हुआ, रिझाई। उसने एक दिन | | लेकिन पंद्रह दिन से ज्यादा नहीं लगेगा कि आपको एक अदभुत सुबह-बुद्ध का भक्त है, रोज बुद्ध की प्रार्थना करता है, पूजा | | अनुभव होना शुरू हो जाएगा। कभी शरीर बहुत बड़ा होता हुआ करता है, फूल चढ़ाता है, मूर्ति के सामने सिर टेकता है-एक दिन मालूम पड़ेगा, कभी बहुत छोटा होता हुआ मालूम पड़ेगा, सिर्फ सुबह अपने भिक्षुओं को इकट्ठा करके कहा कि मैं तुमसे कहता हूं पंद्रह दिन के भीतर। कभी लगेगा, शरीर पहाड़ जैसा हो गया और 439

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