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- गीता दर्शन भाग-3
लिए हम धन्यवाद नहीं दे पाते। जो नहीं मिला है, उसकी शिकायत | | आदमी, क्योंकि थोड़ी ही देर में वह फिर पाएगा कि वे सब सुख कर पाते हैं। उस आदमी ने कहा कि ठीक कहती है तू; क्योंकि जब जो पाए थे, खो गए। मैं अंधा होता हूं, तो लोग नकली सिक्के हाथ में रख देते हैं! | प्रार्थना तो वही सार्थक है, जो वहां पहुंचा दे, जिसे मिलने पर
नकली भी कोई हाथ में रखता है, इसका भी धन्यवाद हो सकता फिर खोना नहीं है; जिसके मिलन में फिर विछोह नहीं है। पर वह है। पर उसके लिए बड़ी दूर-दृष्टि, उसके लिए बड़ी महाबुद्धि देवताओं की पूजा से नहीं, वह तो परम सत्ता की तरफ समर्पण से चाहिए। इतना भी क्या कम है कि किसी ने नकली सिक्का भी | | संभव है। आपके हाथ में रखा! यह भी कहां जरूरी था? इसकी भी शिकायत करने कहां जा सकते हैं? उसने हाथ पर खाली हाथ भी रखा, तो भी क्या कम है! क्योंकि वह न रखता तो कोई सवाल तो न था।
अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः । लेकिन जिंदगी हमारी ऐसी ही है। जो हमें मिला है, उसका हमें परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम् ।। २४ ।। कोई भी स्मरण नहीं है। जो हमें नहीं मिला है, उसका हमें बहुत तीव्र नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः। बोध है। वह कांटे की तरह छाती में चभता रहता है। धार्मिक आदमी मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् । । २५ ।। ऐसी प्रार्थना करने नहीं जाता मंदिर में, जिसमें कुछ मांगता हो। इस बुद्धिहीन पुरुष मेरे अनुत्तम अर्थात जिससे उत्तम और कुछ बात का धन्यवाद देने जाता है कि जो तूने दिया है, वह मेरी सामर्थ्य भी नहीं है, ऐसे अविनाशी परम भाव को अर्थात अजन्मा से भी ज्यादा है।
अविनाशी हुआ भी अपनी माया से प्रकट होता हूं, ऐसे और जो उसने दिया है, उसका हमने उपयोग क्या किया है? प्रभाव को तत्व से न जानते हुए मन-इंद्रियों से परे मुझ कभी आपने सोचा? आपको आंखें दी हैं, आंखों से आपने ऐसा सच्चिदानंदघन परमात्मा को मनुष्य की भांति जन्म कर क्या देखा है, जो आप न देखते तो कुछ हर्जा हो जाता? कभी इस व्यक्तिभाव को प्राप्त हुआ मानते हैं। पर सोचा है! परमात्मा ने आपको आंखें दी हैं। आपने इन आंखों | तथा अपनी योगमाया से छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं से ऐसा क्या देखा है, जो न देखते तो कुछ हर्जा हो जाता? शायद होता हूं। इसलिए ये अज्ञानी मनुष्य मुझ जन्मरहित ही आपको याद आए। उसने आपको कान दिए हैं। ऐसा क्या सुना अविनाशी परमात्मा को तत्व से नहीं जानते हैं। है, जो न सुनते तो कोई हर्जा हो जाता? उसने आपको हाथ दिए हैं। ऐसा आपने क्या स्पर्श किया है, जो स्पर्श न किया होता तो कुछ आप खो देते? उसने आपको पैर दिए हैं। आपने ऐसी कौन सी ना बातें इस सूत्र में कृष्ण कह रहे हैं। एक, साकार शरीर तीर्थयात्रा की है, जो कि अगर पैर न होते और आप न कर पाते, तो ५। में मैं खड़ा हूं, आकार लिया है। जो नहीं जानते हैं, वे प्राणों में कसक रह जाती?
सोचते हैं, मेरा आकार ही मैं हूं। वे मेरे भीतर छिपे नहीं, पैर किसी तीर्थ तक नहीं पहुंचे, आंखें किसी दृश्य को नहीं निराकार को नहीं देख पाते हैं। रूप लिया है मैंने। जिनके पास देखने देख पाईं, कान ने कोई अमृत नहीं सुना। और ऐसा नहीं है कि अमृत | की आंखें नहीं हैं, सोचने के लिए मेधा नहीं है, वे मेरे रूप को ही चारों तरफ मौजूद नहीं है, और ऐसा भी नहीं है कि तीर्थ बहुत दूर देख पाते हैं। उस अरूप को, जो भीतर छिपा है, उससे अपरिचित है, और ऐसा भी नहीं है कि वह दृश्य दिखाई न पड़ जाए, जिसे | | रह जाते हैं। मेरा वह सच्चिदानंद रूप है जो, मेरा वह जो देख लेने पर आंखें सार्थक हो जाती हैं; वह भी निकट है। | सच्चिदानंद स्वभाव है, वह उनकी आंखों से ओझल रह जाता है।
पर जो हमें मिला है, हम उसकी तरफ ध्यान ही नहीं देते, उपयोग ___ इसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। की तो बात दूर है। उपयोग का तो कोई सवाल नहीं है। हम उस पर | ___ पहली बात, परमात्मा जब भी प्रकट होगा, तब रूप में प्रकट ध्यान ही नहीं देते। हम उसे मांगते चले जाते हैं, जो नहीं मिला है। होगा, आकार में प्रकट होगा। प्रकट होने का अर्थ है, रूपायित हमारी सारी प्रार्थनाएं, जो नहीं मिला है, उसकी मांग है। पूरी हो । होना, टु बी इन दि फार्म। प्रकट होने का अर्थ ही होता है, रूप जाएंगी वे मांग, कृष्ण कहते हैं, लेकिन फिर भी वह अल्पबुद्धि है | लेना। प्रकट होने का अर्थ ही होता है, आकार लेना। प्रकट होने
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