Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 461
________________ निराकार का बोध - है वह। जब कोई जीतकर प्रसन्न होकर लौटे, तो समझना कि वह युद्ध के एक अनुभव ने उसे मन का पूरा रहस्य समझा दिया। अल्पबुद्धि है। और जब कोई हारकर प्रसन्न लौट आए, तो समझना | ___ आपने कितनी बार क्रोध किया है, लेकिन क्रोध का रहस्य आप कि वह अल्पबुद्धि नहीं है। जीतकर कोई उदास लौटे, तो समझना | समझ पाए? कितनी बार कामवासना में उतरे हैं, कामवासना का कि वह अल्पबुद्धि नहीं है। और जीतकर कोई हंसता हुआ लौटे, रहस्य समझ पाए? कितनी बार प्रेम किया है, प्रेम का रहस्य समझ तो समझना कि वह अल्पबुद्धि है। पाए? कितनी बार घृणा की है, घृणा का रहस्य समझ पाए? अशोक उदास लौट आया। उसे नाम ही उसके माता-पिता ने | नहीं, रोज वही करते रहे हैं, लेकिन हाथ में कोई भी निष्पत्ति. अशोक इसलिए दिया था कि वह कभी उदास नहीं होता था; सदा | | कोई भी कनक्लूजन नहीं है। हाथ खाली का खाली है, और कल प्रफुल्लित था, चियरफुल था। उसे नाम ही इसलिए दिया था कि आप फिर बच्चे जैसा ही व्यवहार करेंगे। अल्पबुद्धि है चित्त। वह सदा आनंदित और प्रफुल्लित रहता था। लेकिन इतने बड़े राज्य __कृष्ण कहते हैं, अल्पबुद्धि लोग सुख की मांग करते हैं देवताओं को जीतकर लौटा है, कलिंग की विजय करके लौटा है, और उदास | से। देवताओं से ही की जा सकती है मांग सुख की। सुख भी उन्हें लौटा आया है। चिंता फैल गई है। उसके मित्रों ने पूछा, इतने उदास | मिल जाते हैं, लेकिन क्षणभंगुर सिद्ध होते हैं। हां, जो मेरे पास हो जीतकर! हार जाते तो क्या होता? स्वभावतः, अल्पबुद्धि के | आता है, परम ऊर्जा के द्वार पर जो आता है, वह अनंत आनंद का लिए यह सवाल उठा होगा। जीतकर इतने उदास हो, हार जाते तो मालिक हो जाता है। क्या होता! अगर प्रभु के द्वार पर ही जाना हो, तो क्षुद्र वासना लेकर मत अशोक ने कहा, युद्ध अब असंभव है, एक अनुभव काफी | जाना। वासना पूरी भी हो जाए, तो भी कुछ हाथ नहीं लगने वाला सिद्ध हुआ। अब नहीं युद्ध कर सकूँगा, अब नहीं जीतने जा है। प्रभु के द्वार पर तो खाली होकर जाना, बिना कोई वासना लिए। 'सकूँगा। क्योंकि कितनी कामना की थी कि कलिंग को जीत लूंगा, । प्रभु से तो यही कहते जाना कि जो तूने दिया है, वह जरूरत से तो इतना आनंद मिलेगा। लेकिन कलिंग हाथ में आ गया, आनंद ज्यादा है। तो हाथ में नहीं आया। हालांकि मेरा मन फिर धोखा दे रहा है कि सुना है मैंने कि एक भिखारी एक वृद्ध महिला के सामने हाथ अभी और भी जीतने को जगह पड़ी है, उनको भी जीत लो। लेकिन फैलाकर भीख मांग रहा है। लंगड़ा है, घसिट रहा है। उस वृद्ध इस मन की अब दुबारा नहीं मानूंगा। मानकर देख लिया एक बार; | महिला को बहुत दया आ गई है और उसने कहा कि दुख होता है एक लाख आदमियों की लाशें बिछा दीं। सिर्फ खून बहा; हाथ में | तुम्हें देखकर; पीड़ा होती है तुम्हें देखकर। परमात्मा न करे, कोई खून के दाग लगे। करुण चीत्कारें सुनाई पड़ीं; रोना; और न मालूम | लंगड़ा हो। लेकिन फिर भी मैं तुमसे कहती हूं कि लंगड़े ही हो न, कितने घरों के दीए बुझ गए। और इस मन ने मुझे कहा था, आनंद | | परमात्मा को धन्यवाद दो, क्योंकि अंधे होते तो और मुसीबत होती। मिलेगा; वह मैं भीतर खोज रहा है, वह मझे कहीं मिला नहीं। उस आदमी ने कहा कि आप ठीक कहती हैं। जब मैं अंधा होता लाखों लोग मर गए, लाखों परिवार उजड़ गए, और जिस सुख के हूं, तो लोग नकली सिक्का मेरे हाथ में पकड़ा देते हैं! लिए इस मन ने मुझे कहा था, उसकी रेखा भी मुझे दिखाई नहीं | ___ लंगड़ा होना भी उसके लिए एक काम था, अंधा होना भी एक पड़ती। युद्ध समाप्त हो गया; मेरे लिए अब कोई युद्ध नहीं है। काम था। उसने कहा, आप बिलकुल ठीक कहती हैं। अंधे होने में और उसी दिन से अशोक ने भिक्षु की तरह रहना शुरू कर दिया। बड़ी मुसीबत होती है, लोग नकली सिक्के पकड़ा देते हैं। इसीलिए उसने कहा कि जब युद्ध मेरे लिए नहीं है, तो अब सम्राट होने का तो मैंने अंधा होना बिलकुल बंद कर दिया। अब मैं लंगड़े होने से कोई अर्थ नहीं रहा। वह तो युद्ध के साथ जुड़ा हुआ भाव ही काम चलाता हूं। था-सम्राट होने का। उस वृद्ध स्त्री को खयाल भी न रहा होगा, कल्पना भी न रही एच.जी.वेल्स ने विश्व इतिहास में लिखा है कि दुनिया में बहुत होगी। उसने तो कहा था इस खयाल से कि वह आदमी शायद अपने सम्राट हुए, लेकिन अशोक जैसा चमकता हुआ तारा विश्व के लंगड़ेपन में भी प्रभु को धन्यवाद दे पाए। लंगड़ा भी प्रभु को इतिहास में दूसरा नहीं है। कारण है उसका। महाबुद्धि है। और धन्यवाद दे सकता है। काश, जो उसे मिला है, वह दिखाई पड़ जाए। उसके महाबुद्धि होने की बात क्या है ? राज क्या है ? राज यह है कि लेकिन हम सब उस भिखारी जैसे ही हैं। जो हमें मिला है, उसके 435

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