Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 448
________________ गीता दर्शन भाग-3> जाता है। हम जानते हैं, हम कौन थे। और हम जानते हैं कि हम सिर्फ इसलिए कि वे देवताओं की मूर्तियां थीं। मोहम्मद कोई किस तरह च्युत होते रहे, किस तरह भटकते रहे। किस कीमत पर परमात्मा की प्रतिमा को मनुष्य के हृदय से नहीं हटाना चाहते थे। हमने अपने को गंवाया और क्षुद्र चीजों को इकट्ठा किया। लेकिन बड़ी गलत-समझी पैदा हो गई। मोहम्मद कोई परमात्मा की कंकड़-पत्थर बीने और आत्मा बेची। प्रतिमा को नहीं हटाना चाहते थे। परमात्मा की प्रतिमा मनुष्य के तो एक बात तो कृष्ण यह कहते हैं। दूसरी बात यह कहते हैं कि | हृदय में स्थापित हो, इसलिए देवताओं की जो तथाकथित प्रतिमाएं वे जो और अर्थार्थी, और आर्त, और जिज्ञासु, उस तरह के जो लोग थीं काबा के मंदिर में हर दिन के लिए अलग देवता था, तीन सौ हैं, वे मेरी नहीं, और देवताओं की पूजा में संलग्न होते हैं। क्यों? पैंसठ देवता थे एक-एक दिन के लिए, हर दिन अलग देवता पर ठीक परमात्मा की प्रार्थना में वे लोग संलग्न नहीं होते, क्योंकि | | पूजा होती थी-मोहम्मद ने हटवा दिया, फिंकवा दिया, कि हटा परमात्मा की प्रार्थना की शर्त ही वे लोग पूरी नहीं करते। शर्त ही यह है कि सब वासनाएं छोड़कर आओ। ब्रह्म को पाने की शर्त तो यही __ क्योंकि इन देवताओं की वजह से जो लोग आते हैं, वे कृष्ण है कि सब वासनाएं छोड़कर आओ, तब प्रार्थना पूरी होगी। वे वहां | के तीन वर्ग पहले जो हैं, वही लोग होंगे-आर्त, अर्थार्थी, कैसे जाएंगे? | जिज्ञासु–वही आएंगे। वह जो चौथा है, वह तो उस परम एक की तो वे छोटे-मोटे अपने देवी-देवता निर्मित कर लेते हैं, जो उनसे तरफ ही जाता है। लेकिन उस एक की तरफ जाने की शर्त पूरी करनी शर्त नहीं बांधते। बल्कि शर्त ऐसी बांधते हैं, जो सस्ती होती हैं; पूरी | पड़ती है। वह शर्त महंगी है, कठिन है, दुर्धर्ष है, दुस्तर है। क्योंकि कर देते हैं। कोई देवता मांगता है कि नारियल चढ़ा दो। कोई देवता स्वयं को ही दांव पर लगाना पड़ता है, नारियल को नहीं। , मांगता है कि फूल-पत्ती रख दो। कोई देवता मांगता है कि ऐसा कर । हालांकि आपने कभी खयाल किया हो या न किया हो, आदमी दो. बलि चढ़ा दो, या यज्ञ कर दो, या हवन कर दो। सस्ती मांग बड़ा होशियार है। नारियल, आपने कभी खयाल किया, आदमी की वाले भी देवता हैं। सस्ती दुकानें भी हैं। खोपड़ी की शक्ल की चीज है। आंख भी होती है, नाक भी होती तो कृष्ण कहते हैं, फिर उस तरह के लोग मेरी तरफ नहीं आते, | है, खोपड़ी भी होती है। जोर से पटको, तो खोपड़ी की तरह फूटता क्योंकि मेरी शर्त उनसे पूरी नहीं होती। वे खुद ही अपने देवता गढ़ भी है। आपने कभी खयाल किया कि नारियल किन लोगों ने लेते हैं। खोजा? आदमी की खोपड़ी की शक्ल में खोजा गया है। यह बहुत मजे की बात है। हमने बहुत देवता हमारे गढ़े हुए हैं। अपने को चढ़ाना पड़ता है परमात्मा के दरवाजे पर; अपनी गर्दन अपनी जरूरतों के अनुसार हमने उन्हें गढ़ा है। जिस चीज की काटनी पड़ती है। प्रतीकात्मक अर्थों में, सिंबालिकली, अपनी ही जरूरत होती है, हम गढ़ लेते हैं। गर्दन काटकर चढ़ानी पड़ती है। अपने को नहीं काटेगा, वह क्या सारा आविष्कार तो जरूरत से होता है न। देवताओं का चढाएगा। वह क्या परमात्मा को पाएगा। आविष्कार भी जरूरत से होता है। आवश्यकता कोई वैज्ञानिक - पर होशियार है आदमी; उसने सोचा, गर्दन वगैरह तो बहुत खोजों की ही जननी नहीं है, देवताओं की भी जननी है। इसलिए तो महंगी पड़ती है। पांच आने में नारियल मिलता है; बिलकुल आदमी इतने देवता! हिंदुस्तान में तैंतीस करोड़ आदमी थे, तो तैंतीस करोड़ की खोपड़ी जैसा लगता है। आंख भी हैं; सब हिसाब-किताब पूरा देवता। अब आदमी तो थोड़े ज्यादा बढ़ गए हैं, देवता भी हमें बढ़ाने | है। फिर असली भी खरीदने की जरूरत नहीं है, सड़ा-सड़ाया भी चाहिए। नहीं तो बहुत मुश्किल पड़ जाएगी; कुछ लोग बिना मिल जाता है। देवताओं के पड़ जाएंगे। __ हर मंदिर के सामने दुकान होती है। और करीब-करीब मैंने सुना हरेक अपना देवता खड़ा कर लेता है, जो उसकी जरूरत है, है कि मंदिर के पास जो दुकान होती है, जो नारियल उन्होंने पहली उसके मुताबिक। और फिर उस देवता से प्रार्थना करने लगता है। दफे खरीदे थे, उनसे ही काम चलता चला जाता है। क्योंकि अंदर कृष्ण कहते हैं, वे दूसरे देवताओं के पास चले जाते हैं। जाकर चढ़ जाते हैं, पुजारी रात को बेच जाता है। सुबह फिर मंदिर परमात्मा तो एक है और हम उसे गढ़ नहीं सकते। में चढ़ने लगते हैं, रात फिर लौट आते हैं। इसलिए दुनियाभर में मोहम्मद ने अगर काबा की तीन सौ पैंसठ मूर्तियां हटवाईं, तो नारियल के दाम बढ़ जाएं, मंदिर की दुकान वाला नारियल पुराने

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