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< अनन्य निष्ठा
भी वह आंख वही रहेगी, जो आदमी की थी। कृष्ण को जो आंख विश्वास के साथ। जब प्रयोग करता है, तो एक विश्वास को लेकर मिली है, वह तो मां-बाप से मिली है। लेकिन आंख के पीछे से जो प्रयोग करता है, लेकिन पूरे संशय के साथ। संशय रखता है कायम देख रहा है, वह परमात्मा है। अगर आप आंख पर रुक गए, तो अपने भीतर, ताकि जांच कर सके कि बात सही निकली या नहीं समझेंगे कि मां-बाप से मिली हुई आंख है। कृष्ण को जो गला निकली। अपने को खो नहीं देता; अपने को कायम रखता है। मिला है, वह तो मां-बाप से मिला है। लेकिन जो वाणी है, वह संशय को भी कायम रखता है। डाउट को मौजूद रखता है। और परमात्मा की है। अगर आप गले पर रुक गए, तो वाणी को न | फिर भी प्रयोग करता है। प्रयोग करेगा, तो निष्ठा जरूरी है। प्रयोग पहचान पाएंगे।
तो बिना निष्ठा के न हो सकेगा। एक कदम भी बिना निष्ठा के नहीं ___ इसलिए कृष्ण जिस सहज मन से कहते हैं कि मेरी शरण आः उठाया जा सकता। ध्यान रखें, कोई अहंकारी इतने सहज भाव से नहीं कह सकता कि अगर आप यहां से घर वापस लौटेंगे, तो आप इस निष्ठा से ही मेरी शरण आ।
लौट रहे हैं कि घर उसी जगह होगा, जहां आप छोड़ आए थे। पता __ अगर अहंकारी को आपको अपनी शरण बुलाना है, तो बड़ी आपको हो या न हो, लेकिन यह निष्ठा अंदर खड़ी है कि घर वहीं तरकीबों से बुलाएगा। अहंकार कभी भी इतना सीधा-साफ नहीं | मिलेगा, जहां छोड़ आए थे। यह निष्ठा पीछे काम कर रही है। कल होता। अहंकार बहुत चालाक है। अहंकारी कभी न कहेगा कि मेरी | सुबह जब आप उठेंगे, तो इसी निष्ठा से कि सूरज निकल आया शरण आ, क्योंकि अहंकारी भलीभांति जानता है कि अगर किसी होगा, जैसा कि कल निकला था। से यह कहा कि मेरी शरण आ. तो उस आदमी के अहंकार को चोट | जरूरी नहीं है। किसी दिन तो ऐसा होगा कि सूरज नहीं लगेगी और वह शरण न आ सकेगा। बल्कि वह आदमी आपको | निकलेगा। एक दिन तो ऐसा जरूर होगा कि सूरज नहीं निकलेगा। अपनी शरण में लाने की कोशिश करेगा।
वैज्ञानिक कहते हैं, कोई चार हजार साल में ठंडा हो जाएगा। चार इसलिए अहंकारी आदमी दूसरे के अहंकार को जरा भी चोट | हजार साल बाद किसी शरीर में आप जरूर होंगे कहीं, और किसी नहीं पहुंचाता; परसुएड करता है, फुसलाता है, राजी करता है, | दिन सुबह उठेगे और सूरज नहीं निकलेगा। खुशामद करता है। उसके अहंकार को इस तरह राजी करता है कि वैज्ञानिक निष्ठा तो रखता है कि सूरज निकलेगा, लेकिन वह शरण में भी आ जाए और अहंकार को चोट भी न लगे। ससंशय। संशय कायम रखता है कि हो सकता है कि वह दिन आज
लेकिन कृष्ण जितनी सरलता से और सहजता से कहते हैं, अगर ही हो, कि न निकले। वह दिन कभी भी हो सकता है। प्रयोगशाला ऐसा कहें तो पैराडाक्सिकल मालूम पड़ेगा, उलटबांसी मालूम में प्रवेश करता है, तो निष्ठा तो रखता है कि प्रकृति अपने पुराने पड़ेगी कि कृष्ण जितनी विनम्रता से घोषणा करते हैं कि मेरी शरण नियम से ही चलती होगी। कल भी आग ने जलाया था, आज भी
आ, वह खबर दे रही है कि पीछे कोई अहंकार नहीं है। जलाएगी। लेकिन जरूरी नहीं है। क्योंकि कोई पक्का कैसे हो ___ अहंकार कभी भी इतना सरल नहीं होता। अहंकार हमेशा सकता है कि कल आग ने जलाया था, तो आज भी जलाएगी! तो दांव-पेंच करता है, जटिल होता है। तिरछे रास्तों से यात्रा करता है; वैज्ञानिक एक हाइपोथेटिकल बिलीफ, एक ससंशय निष्ठा के साथ सीधा रास्ता अहंकार नहीं लेता। क्योंकि अहंकार को अनुभव है कि प्रयोगशाला में प्रवेश करता है। सीधे रास्ते से दूसरे के अहंकार को कभी भी झुकाया नहीं जा सकता। विज्ञान में प्रवेश करना हो, तो ससंशय निष्ठा ही मार्ग है। लेकिन
लेकिन कृष्ण बड़ी सरलता से कहते हैं कि मुझे जो अनन्य भाव | | धर्म में अगर प्रवेश करना हो, तो निःसंशय निष्ठा मार्ग है। निःसंशय से समर्पित है अर्जुन, वही योग को उपलब्ध होता है। जिसकी निष्ठा | | निष्ठा बड़ी और बात है। उसे थोड़ा समझ लेना जरूरी है। मुझमें पूरी है, असंशय, वह असंदिग्ध ज्ञान को उपलब्ध होता है। निःसंशय निष्ठा का अर्थ यह है कि अगर विपरीत भी हो, अगर
असंशय निष्ठा को भी थोड़ा-सा खयाल में ले लेना चाहिए। आज सरजन भी निकले, तो भी जो निष्ठावान, जिसकी कृष्ण बात निष्ठा भी दो तरह की हो सकती है। ससंशय निष्ठा होती है। कर रहे हैं, वैसा निष्ठावान व्यक्ति समझेगा कि मेरी आंख में कोई जिसको विज्ञान में हाइपोथीसिस कहते हैं, वह ससंशय निष्ठा है।। खराबी है; सूरज तो निकला ही होगा। आप फर्क समझ लेना। एक वैज्ञानिक प्रयोग करता है एक हाइपोथेटिकल भरोसे, एक अगर कल सुबह ऐसा हो कि सूरज न निकले, तो निष्ठावान व्यक्ति
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