Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 413
________________ प्रकृति और परमात्मा को कहता हूं। मैंने कहा, एक बड़ा वर्तुल खींचें, वह परमात्मा है। उसमें एक छोटा वर्तुल खींचें, वह प्रकृति है । उसमें और एक छोटा-सा वर्तुल खींचें, वह आदमी है। मैंने आपसे कहा कि प्रकृति परमात्मा में है, लेकिन परमात्मा प्रकृति में नहीं है। अब मैं आपसे दूसरी बात कहता हूं। आदमी प्रकृति में है, लेकिन प्रकृति आदमी में नहीं है। वह आदमी और छोटा वर्तुल है। तो आदमी प्रकृति के खिलाफ लड़ेगा अगर, तो हारेगा। प्रकृति लड़ नहीं सकता; वह बड़ी है, उससे विराट है। प्रकृति आदमी में है, छिपी पूरी भीतर, गहरे में । आदमी उसका छोटा-सा हिस्सा दबाए हुए है। इसलिए आप रोज प्रकृति से हारते हैं, लेकिन आपको खयाल नहीं आता कि आप अपने से बड़ी शक्ति से लड़ रहे हैं; हारेंगे ही। जब आप क्रोध से हारते हैं, तो आपको पता है, आप किससे लड़ रहे हैं? आप सोचते हैं कि क्रोध छोटी-मोटी चीज है। क्रोध छोटी-मोटी चीज़ नहीं है; प्रकृति का हिस्सा है। उसकी जड़ें गहरी हैं; आपके खून से ज्यादा गहरी; आपकी हड्डियों से ज्यादा गहरी; आपकी बुद्धि से ज्यादा गहरी | इसलिए आप हजार दफे तय कर ते हैं बुद्धि से कि अब क्रोध नहीं करूंगा, और जब क्रोध आता है, तो पता नहीं बुद्धि कहां फिंक जाती है, और क्रोध आ जाता है। क्रोध गहरा है। आप ऊपर-ऊपर निर्णय करते रहते हैं, भीतर प्रकृति आपकी फिक्र नहीं करती। अगर प्रकृति से आपने अपने ही भरोसे जीतने की कोशिश की, तो आप रोज हारेंगे। कभी-कभी साधु मालूम पड़ेंगे, फिर असाधुता प्रकट हो जाएगी। फिर साधु बनेंगे, फिर असाधुता प्रकट हो गी। प्रकृति आपको हराती ही रहेगी। अगर प्रकृति को हराना है, तो आदमी के भरोसे नहीं, बड़े वर्तुल, परमात्मा के भरोसे हराया जा सकता है। आदमी के भरोसे नहीं। तब सहारा उसका लें; उस बड़े वर्तुल के साथ सहारा लें। उसके साथ तत्काल जीत हो जाती है। उसके साथ प्रकृति उसी तरह हार जाती है, जैसे आपके साथ प्रकृति से आप हार जाते हैं। प्रकृति से आप लड़ेंगे, तो आप हारेंगे। अगर परमात्मा को लड़ाएंगे, तो प्रकृति हारी ही हुई है; कोई सवाल नहीं है । कोई सवाल नहीं है, क्योंकि परमात्मा और भी प्रकृति के गहरे में है । आप, जैसा मैंने कहा, सागर, सागर पर उठी लहरें, लहरों पर तैरता हुआ एक तिनका, ऐसा समझ लें। सागर परमात्मा, लहरें प्रकृति, और आप एक छोटे-से तिनके हैं लहरों के ऊपर। आप लहरों से भी नहीं लड़ सकते हैं । लहर से भी हार जाएंगे। आप कितना ही निर्णय करें कि हम तो लहर के ऊपर रहेंगे; लहर की | मर्जी कि कब नीचे गिरा दे। लेकिन सागर का सहारा ले लें, तो फिर | लहर कुछ भी नहीं है। क्योंकि सागर के सामने लहर की क्या औकात! क्या वश ! परमात्मा में निष्ठा का अर्थ, या परमात्मा के प्रति परायण होने का अर्थ, या परमात्मा में समर्पित होने का इतना ही अर्थ है कि प्रकृति से मनुष्य की सीधी लड़ाई असंभव है। हम परमात्मा में समर्पित होते हैं, समर्पित होते ही लड़ाई समाप्त हो जाती है । | परमात्मा को देखते ही प्रकृति शांत हो जाती है— देखते ही । यह करीब-करीब ऐसा ही घटित होता है, जैसे कि स्कूल के | क्लास के बच्चे खेल रहे हैं, शोरगुल कर रहे हैं, और शिक्षक भीतर आया, और सब शांति हो गई। बच्चे अपनी जगह बैठ गए हैं; उन्होंने किताबें खोल लीं; अपना काम करने लगे। अभी शोरगुल था, अब सब शांत हो गया। ठीक ऐसे ही परमात्मा की तरफ आंख उठते ही प्रकृति एकदम शांत हो जाती है। मालिक आ गया। प्रकृति का कोई उपाय नहीं रह | जाता। लेकिन आप ! आप तो प्रकृति के एक छोटे-से टुकड़े हैं, तिनके, और प्रकृति से लड़ने की कोशिश कर रहे हैं। | सात्विक होने की चेष्टा बिना धार्मिक हुए, बिना परमात्मा में समर्पित हुए, प्रकृति से लड़ने की चेष्टा है। इन तीनों के पार है प्रभु । जब आपके चित्त में तीन चीजें न हों, तब आपका चित्त परमात्मा की तरफ उठेगा; सत्व न हो, तम न हो, रजस न हो। इनको थोड़ा-सा समझ लें कि कैसी स्थिति होगी, जब ये तीनों न होंगे। बुरा करने की भावना न हो, भला करने की भावना न हो, जब | ये दोनों भावनाएं नहीं होतीं, तो वह जो करने वाली ऊर्जा है, वह जो रजस है, वह जो शक्ति है...। ये दो काम करने के केंद्र बिंदु हैं। वह जो शक्ति है, जो करती है, जब ये दोनों नहीं रहते - बुरा करने का भाव नहीं, भला करने का भाव नहीं - तब वह जो शक्ति | है, वह कहां जाए? और शक्ति तो कहीं जाएगी ही। अगर आप मार्ग न देंगे, तो भी जाएगी। अब न बुरे की तरफ जा सकती है, न भले की तरफ जा सकती है, तो अब कहां जाए? जब दोनों दिशाएं बंद हो जाती हैं, तो शक्ति ऊपर की तरफ, तीसरे, थर्ड डायमेंशन में, तीसरी यात्रा पर उठने लगती है। और वह तीसरी यात्रा पर परमात्मा है, जहां न शुभ है, न अशुभ है। जहां 387

Loading...

Page Navigation
1 ... 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488