Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 432
________________ गीता दर्शन भाग-3 जाएं, और हाथ-पैर हिलने लगें, और मौत धक्के देने लगे, तब | | बरस रहे हैं; लेकिन वह भरेगा नहीं। सीधे घड़े रखे होंगे, वे भर आखिरी वक्त राम-राम कह लेना। | जाएंगे। फिर मेघ कह सकते हैं कि जो सीधे घड़े हैं, उन्हें मैं भर देता इसलिए तो हम, जब आदमी मर जाता है, तो राम-राम कहकर हूं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उलटे घड़ों पर बरसता नहीं उसको मरघट तक ले जाते हैं। बेचारा खुद नहीं कह पाया; हम कह | पानी। लेकिन उलटे घड़े खुद ही उलटे बैठे हैं; उसमें कोई क्या कर रहे हैं! उनको तो मौका नहीं मिला। अब हम तो कम से कम इतना | सकता है! और पक्की जिद्द करके बैठे हैं कि हम तो उलटे ही बैठे तो उनको साथ दें, कि उनको मरघट तक पहुंचा आएं राम-राम | रहेंगे; हम कभी सीधे न होंगे! कहकर। जिंदगी उनकी चूक गई; उन्होंने कभी राम-राम न कहा। | प्रभु को जो प्रेम करता है, उसे प्रेम मिलता है, उसका कुल अब मर गए हैं, तो अब हम उनको राम-राम कहने जा रहे हैं! | मतलब इतना ही है कि उसे ही पता चलता है कि मिल रहा है। जो मगर एक लिहाज से अच्छा है, क्योंकि आप भी जब मरेंगे, तो | प्रेम ही नहीं करता, उसे कभी पता नहीं चलता कि मिल रहा है। दूसरे आपको भी...! एक म्युचुअल कांसपिरेसी चल रही है, इसलिए जब हम कहते हैं, प्रभु की कृपा, तो ऐसा मत सोचना पारस्परिक षड्यंत्र, कि हम तुम्हें भेज आएंगे, तुम हमें भेज आना। कि किसी पर होती है और किसी पर नहीं होती है। प्रभु की कृपा तो राम-राम कह देना आखिरी वक्त। अगर कहीं कोई परमात्मा होगा, | ऐसे ही बरस रही है, जैसे सूरज निकला हो, और सभी घरों पर तो सुन लेगा कि बड़ा भक्त मर गया। देखो, राम-राम की आवाज | किरणें बरस रही हैं। लेकिन कुछ लोग अपने दरवाजे बंद किए बैठे आ रही है! जिंदगीभर जिनके हृदय से राम नहीं निकला, मरी-मराई | हैं। किन्हीं के दरवाजे भी खुले हैं, तो वे इतने होशियार हैं कि आंख लाश के चारों तरफ राम-राम कर रहे हैं! बंद किए बैठे हैं! क्या करिएगा? सूरज क्या करे? इनकी आंखों मरते दम तक धर्म का खयाल आना शुरू होता है-भय के | की पलकें खोले? खोले, तो ये नाराज होंगे। पुलिस में रिपोर्ट कारण, तत्व की समझ से नहीं। क्योंकि तत्व की समझ का फिर | लिखवाएंगे कि हम सो रहे थे, नाहक सूरज ने हमारी आंखें खोल जवानी, बुढ़ापे और बचपन से कोई संबंध नहीं है। तत्व की समझ दीं। क्या करे सूरज, इनके दरवाजे तोड़े? पुलिस में रिपोर्ट लिखवा बड़ी और बात है, उसका उम्र से कोई लेना-देना नहीं है। देंगे कि सूरज चोर हो गया; हमारे दरवाजे खोलकर भीतर घुसने इसलिए कृष्ण कहते हैं, वे हैं मेरे प्यारे, जो तत्व को समझकर लगा। सूरज बाहर खड़ा रहेगा; जब आप दरवाजा खोलेंगे, आ मेरी ओर आते हैं। उन्हें मैं ज्ञानी कहता हूं। भय से, लोभ इत्यादि से जाएगा। जब आप आंख खोलेंगे, तो किरण भीतर पहुंच जाएगी। जो आ जाते हैं, उनका कुछ मतलब नहीं है। और वे मुझे प्रेम करते परमात्मा का प्रेम तो सब पर बरस रहा है समान। लेकिन इसका हैं, मैं भी उन्हें बहुत प्रेम करता हूं। यह मतलब नहीं कि आपको समान मिलता है। समान आपको इसका क्या मतलब होगा? क्या कृष्ण का प्रेम भी सशर्त है, | मिलता नहीं, क्योंकि आप लेते ही नहीं। बरसता समान है, मिलता कंडीशनल है, कि जब आप उनको प्रेम करेंगे, तभी वे आपको प्रेम | अलग-अलग है। मिलता अपनी-अपनी पात्रता से है। मिलता करेंगे? क्या परमात्मा भी कोई शर्तबंदी करता है कि तुम मेरा नाम अपनी-अपनी उन्मुखता से है। प्रेम करूंगा? तुम तत्व को समझकर आओगे, अब जो आदमी लोभ के कारण परमात्मा की तरफ गया, उसका तो मैं तुम्हें प्रेम करूंगा? क्या परमात्मा भी इस तरह की शर्त रखता | घड़ा उलटा रहेगा। वह कितनी ही प्रार्थना करे, कितनी ही प्रार्थना है? तब तो प्रेम बड़ा छोटा हो जाएगा। करे, उसे प्रेम परमात्मा का मिलेगा नहीं। जो भय के कारण परमात्मा नहीं, कृष्ण का यह मतलब नहीं है कि जो मुझे प्रेम करते हैं, मैं की तरफ गया, उसका घड़ा उलटा रहेगा। वह कितना ही उन्हें प्रेम करता हूं। मतलब यह है कि परमात्मा का प्रेम तो सबके चीखे-चिल्लाए, उसकी चीख-चिल्लाहट परमात्मा के लिए नहीं ऊपर बरसता है। लेकिन जो परमात्मा को प्रेम नहीं करते, उन्हें उस है, भय की वजह से है। प्रेम से कभी संबंध नहीं हो पाता, मिलन नहीं हो पाता। लेकिन जो जीवन के तत्व को समझकर गया कि ठीक है। यह जैसे एक उलटा घड़ा रखा है और बरस रही है वर्षा आकाश से। जीवन, यह सारा खेल, यह सारा नाटक दो कौडी का है, इसका बादल घनघोर बरस रहे हैं, उलटा घड़ा रखा है। रखा रहे। कोई | कोई मूल्य नहीं है। अब मैं उसकी तलाश में चलूं, जो इस जीवन ऐसा नहीं है कि उलटे घड़े पर बादल नहीं बरस रहे हैं। उस पर भी के पार है। इस जीवन के किसी प्रलोभन की वजह से नहीं; यह 406

Loading...

Page Navigation
1 ... 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488