Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 443
________________ < मुखौटों से मुक्ति - झुकना पड़ेगा, अब तो वह ब्रह्म होकर लौट रहा है, अनुचित हो मुश्किल है। यहां तो बन जाएगा। और आप चाहो, तो एकाध-दो जाएगा। या तो में उसके पैर पडूं, तो वह पड़ने न देगा; और या वह और आपके मित्रों का भी बनवा दूं। मेरे पैर पड़े, जो कि उचित नहीं है। अब मैं भाग जाऊं। अब तो मैं वह जो हमारे भीतर नशा है, बहुत तरह का है। पद का भी होता तभी उसके सामने आऊं, जब मैं भी जान लूं। है, ज्ञान का भी होता है, त्याग का भी होता है। सब शराब बन जाती वह जो ज्ञान की किरण है, जब उतरती है, तो भीतर ज्ञानी नहीं | है, भीतर आदमी अकड़कर खड़ा हो जाता है। वह अकड़ अगर है, बचता, ज्ञान ही बचता है। वह जब परमात्मा का साक्षात्कार होता तो परमात्मा से मिलन न होगा। और परमात्मा से मिलन हुआ, तो है, तो साक्षात्कार करने वाला नहीं बचता, परमात्मा ही बचता है। | वह अकड़ तो बह जाती है। उस अकड़ की जगह, परमात्मा ही शेष मिट जाता है वह, जो खोजने निकला था। वही बचता है, जिसे | रह जाता है। लहरें खो जाती हैं और सागर ही बचता है। खोजा है। लेकिन शास्त्र, जानकारी, परिचय, इनसे कुछ भी नहीं मिटता; बल्कि आप और घने हो जाते हैं, और मजबूत हो जाते हैं। प्रश्न : भगवान श्री, पिछले श्लोक में कृष्ण चार प्रकार सुना है मैंने कि एक रात एक घर में कुछ मित्र बैठकर शराब पीते | के भक्तों की बात कहते हैं। अर्थार्थी-सांसारिक रहे। और कुछ शराब फर्श पर पड़ी छूट गई। रात एक चूहा बाहर पदार्थों के लिए भजने वाला। आर्त-संकट निवारण आया; शराब की सुगंध उसको पकड़ी। थोड़ा उसने शराब को के लिए भजने वाला। जिज्ञासु और ज्ञानी भक्त। चखकर देखा। फिर रस आया। फिर और चखा। थोड़ी देर में नशे इनके अर्थ संक्षिप्त में कहें। और पहले दो लोगों को से भर गया। दोनों पिछले पैरों पर खड़ा हो गया और चिल्लाकर भक्त कैसे कहा, इस पर भी कुछ कहें। 'उसने कहा कि लाओ उस बिल्ली की बच्ची को, कहां है? चूहा। लेकिन शराब! कई दिन से दिल में रहा होगा कि एक दफा बिल्ली की बच्ची को मजा दिखाया जाए। आज मौका आ गया। ष्ण चार विभाजन करते हैं भक्तों के। आज चूहे ने अपने को समझा होगा कि न मालूम वह क्या है! वह qp अर्थार्थी—जो अर्थ के लिए, सांसारिक वस्तुओं के नशा है। ८ लिए प्रार्थना में रत होते हैं। अधिक लोग। अधिक मैंने सुना है कि खुश्चेव को किसी ने कुछ कोई कीमती कपड़ा लोग लोभ से, कुछ पाने के लिए प्रार्थना में रत होते हैं। भेंट किया था; जब प्रधान मंत्री था खुश्चेव। उसने मास्को में | | फिर आर्त-दुख से, पीड़ा से, भय से, कठिनाइयों से परेशान बड़े-बड़े दर्जियों को बुला भेजा। उन्होंने कहा कि नहीं, पूरा सूट न | | होकर अधिक लोग परमात्मा की प्रार्थना में रत होते हैं। बन सकेगा। या तो पैंट बनवा लो, या कोट बनवा लो, लेकिन पूरा तीसरे जिज्ञासु-जो जानना चाहते हैं; कुतूहल है जिन्हें; सूट नहीं बनता। पर जिसने भेजा था, सोच-समझकर भेजा था। | उत्सुकता है, क्यूरिआसिटी है। जैसे कि दार्शनिक, सारी दुनिया के खुश्चेव ने उसे सम्हालकर रख लिया। कीमती कपड़ा था, सूट बने | दार्शनिक, पता लगाना चाहते हैं कि क्या है? अल्टिमेट काज क्या तो ही मतलब का था, नहीं तो बेजोड़ हो जाए। है दुनिया का? यह दुनिया कहां से आई, कहां जा रही है ? क्यों चल फिर खुश्चेव इंगलैंड घूमने आया था, तो कपड़ा साथ ले आया। | रही है, क्यों नहीं चल रही है? प्रश्न जिनके मन में भारी हैं, लेकिन और लंदन के एक दर्जी को उसने बुलाकर कहा कि तुम कपड़ा | जिज्ञासा मात्र है। स्वयं को बदलने का सवाल नहीं है। जानने भर बनवा दो। उसने कहा कि तैयार हो जाएगा आठ दिन बाद पूरा सूट। का सवाल है। खुश्चेव ने कहा, लेकिन आश्चर्य! मास्को में कोई भी दर्जी पूरा सूट और चौथे ज्ञानी–जो सिर्फ जानने के लिए नहीं, बल्कि होने के बनाने को तैयार न हुआ। कहते थे, या तो पैंट बनेगा या कोट। तुम लिए आतुर हैं। परमात्मा को जानने की जिनकी उत्सुकता सिर्फ कैसे बना सकोगे? उस दर्जी ने कहा, मास्को में आप जितने बड़े | कुतूहल नहीं है। ऐसा कुतूहल नहीं, जैसा बच्चों में होता है, कि आदमी हैं, उतने बडे आदमी आप लंदन में नहीं हैं। साइज। मास्को दरवाजा लगा है. तो उसे खोलकर देख लें कि में आपकी साइज बहुत ज्यादा है। उधर पैंट भी बन जाता, तो बहुत | कोई और प्रयोजन नहीं है। बस, दरवाजा लगा है, तो मन होता है है। 417

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