Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 427
________________ -जीवन अवसर है - उस सम्राट ने कहा, नहीं; जिस दिन मौत प्रतिपल दिखाई पड़ने | | बस, इतने में ही मूढ़ बुद्धिमान हो जाता है। इतनी-सी घटना से मूढ़ लगे, जिस ,जिस दिन शरीर बद्धिमान हो जाता है। जड़ता गिर जाती है. और चैतन्य का जन्म हो का सब कुछ मरेगा, यह दिखाई पड़ने लगे; जिस दिन पदार्थ के जाता है। पर्दे हट जाते हैं, और रहस्य के द्वार खुल जाते हैं। जगत में सब विनष्ट होगा, यह दिखाई पड़ने लगे-उस दिन | __ लेकिन हम हिप्नोटाइज्ड हैं, हम बिलकुल सम्मोहित हैं चीजों उसका स्मरण शुरू हो जाता है, जो विनष्ट नहीं होता, जो अमृत से। हम इस बुरी तरह से सम्मोहित हैं, जिसका कोई हिसाब नहीं! है। मौत तो तलवार की तरह लटकी है, लेकिन मेरे हृदय में अब | हाथ कुछ नहीं लगता; अनुभव तक नहीं लगता हाथ। जिंदगीभर मौत का स्मरण नहीं है, क्योंकि मौत तो है। अब मेरे मन में उसका | | इस उपद्रव के बाद अनुभव भी हाथ नहीं लगता। स्मरण है, जो मौत के भी पार है, और जो मौत से भी नष्ट नहीं | सुना है मैंने कि एक आदमी ने नई-नई किसी के साथ साझेदारी होता; जो मौत के बीच से भी गुजर जाता है, अस्पर्शित। की। कोई पूछता था कि फिर कोई साझेदार मिल गया तुम्हें? क्योंकि प्रभु-स्मरण का अर्थ है, अमृतत्व का स्मरण, चैतन्य का स्मरण, | वह आदमी कई साझेदारों को धोखा दे चुका है। फिर कोई साझेदार परम सत्ता का स्मरण। मिल गया तुम्हें ? उसने कहा, फिर कोई साझेदार मिल गया। जमीन और वह स्मरण ऐसा नहीं है कि आप पांच क्षण को घर में | | पर नासमझों की कोई कमी नहीं है। लेकिन कोई भी साझेदार मेरे बैठकर दोहरा लें और हो गया। वह स्मरण ऐसा है कि आपके साथ रहकर नुकसान में कभी नहीं पड़ता। उस आदमी ने कहा, यह रोएं-रोएं में, श्वास-श्वास में, हृदय की धड़कन-धड़कन में प्रवेश | तुम क्या कह रहे हो! हमने तो अब तक यही सुना कि जो भी तुम्हारे कर जाए। उठे, तो उस भजन में; सोएं, तो उस भजन में; चलें, तो | साथ रहता है, नुकसान में पड़ता है। उस भजन में तो बुद्धिमत्ता है। उसने कहा, तुम समझो, फिर तुम कभी ऐसा न कहोगे। अब यह · कृष्ण कहते हैं, दो तरह के लोग हैं इस जगत में। मूढजन हैं, जो | जो नया साझीदार है, पूरी पूंजी लगा रहा है। पूरी पूंजी वह लगा रहा मेरी तरफ आंख नहीं उठाते, जब कि मैं उन्हें निहाल कर दूं। | है, पूरा अनुभव मैं लगा रहा हूं। फिफ्टी-फिफ्टी समझो। आधा मेरा बुद्धिमान हैं, जो मेरे अतिरिक्त और कहीं नजर नहीं ले जाते। | है, आधा उसका। अनुभव मेरा, धन उसका। और तुमसे मैं कहता क्योंकि मेरी तरफ नजर उठी कि फिर और कोई जगह देखने योग्य हूं कि पांच साल में अनुभव उसके पास होगा और धन मेरे पास। नहीं रह जाती। मेरी तरफ नजर उठी कि फिर और कुछ पाने योग्य | | लेकिन तुम समझते हो कि मैं ही फायदे में रहूंगा, वह फायदे में नहीं नहीं रह जाता। मझे जिन्होंने पा लिया. उन्होंने सब पा लिया है। रहेगा? अनभव। यह कृष्ण कह रहे हैं अर्जुन से कि अर्जुन समझे, कि मूढ़ के | लेकिन हम जिंदगी में कई बार जीवन का धन गंवा चुके और जगत से यात्रा करे बुद्धिमान के जगत की तरफ। अब तक उस अनुभव को उपलब्ध नहीं हुए, जो वह साझीदार कह कोई मूढ़ ऐसा नहीं है कि बुद्धिमान न हो सके; और कोई | रहा था कि पांच साल में मेरा मित्र हो जाएगा। हमने न मालूम जीवन बुद्धिमान ऐसा नहीं है कि कभी न कभी मूढ़ न रहा हो। सब संतों | के धन को कितनी बार गंवाया है। हम किसी अनुभव को उपलब्ध का अतीत है, और सब पापियों का भविष्य है। और पाप से गुजरे | | नहीं हुए। हम फिर वही करते हैं। हम फिर वही करते हैं। हम फिर बिना कोई संतत्व तक नहीं पहुंचा है। और संतत्व तक जो भी पहुंचा | वही करते चले जाते हैं। जैसे अनुभव जैसी कोई चीज हमारे जीवन है, पाप की अग्नि से निकला है। | में पैदा ही नहीं होती। कल भी वही किया, परसों भी वही किया। इसलिए कभी ऐसा मन में सोचकर मत बैठ जाना कि मैं तो मूढ़ पिछले वर्ष भी वही किया था। आने वाले वर्षों में भी आप वही हूं। दुनिया में कोई मेधा नहीं है, जो मूढ़ता से न गुजरी हो। वह करेंगे। क्या मतलब है इसका? कहीं कोई चीज है, जैसे बिलकुल अनिवार्य शिक्षा है। और दुनिया में कोई ऐसा मूढ़ नहीं है, जिसके हम विक्षिप्त की तरह सम्मोहित हैं संसार के साथ। बिलकुल बंधे भीतर वह बीज न छिपा हो, जो मेधा बन जाए, प्रतिभा बन जाए; हैं पागल की तरह; आब्सेस्ड हैं। नजर नहीं हटती, जैसे किसी ने खिल जाए और बुद्धिमानी हो जाए। फर्क सिर्फ रूपांतरण का है, एक नजर बांध दी हो; वशीकरण हो गया हो। छलांग का। एक अबाउट टर्न, एक पूरा घूम जाना। जिस तरफ मुंह इसलिए कृष्ण कहते हैं कि मेरी माया में डूबे हुए, मेरे सम्मोहन है, उस तरफ पीठ; और जिस तरफ पीठ है, उस तरफ मुंह हो जाना। में डूबे हुए; प्रकृति की दुस्तर माया में डूबे हुए मूढजन, मेरा भजन 401

Loading...

Page Navigation
1 ... 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488