Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 426
________________ गीता दर्शन भाग-3 के आलिंगन को उपलब्ध हो सकते हैं। बड़ी संपदा हमारी हो सकती | | पास। नाच-गान चल रहा है। यह सब क्या उपद्रव है! मैं संन्यासी, है, जिसका कोई अंत नहीं। कुबेर के खजाने चुक-चुक जाएं और मैं ब्रह्मचारी। मुझे यहां कहां भेज दिया! आपके पास किसलिए सोलोमन के खजाने छोटे पड़ जाएं। सीपियां सिद्ध होते हैं। नदी के भेजा है? और आप मुझे क्या खाक सिखाएंगे? अभी खुद ही तो किनारे बीने गए कंकड़-पत्थर रंगीन, बच्चों के खिलौने! लेकिन | सीखे नहीं! एक और संपदा है, जिसे पाते ही जीवन उस रौनक को उपलब्ध उस सम्राट ने कहा कि मैं तो भजन करता रहता हूं। उसने कहा, होता है, जिसका कोई अंत नहीं है; जिसे मृत्यु नहीं बुझाती; जिसे | क्या खाक भजन होता होगा! यह भजन हो रहा है ? शराब ढल रही अंधेरा नहीं मिटाता; जिसे दुख नहीं मिटाता; जिसे पीड़ा नहीं छूती; | है; प्याले सरक रहे हैं; स्त्रियां नाच रही हैं—यह भजन हो रहा है? जो अस्पर्शित रह जाती है। उस संपदा को पाया जा सकता है इसी तुम मुझे अभी चले जाने दो। ऐसा भजन मुझे नहीं सीखना। सम्राट जीवन में। ने कहा कि यह तो भजन नहीं है। लेकिन भजन जारी है। खैर, कल निश्चित ही, जो उस दिशा में न चले, उसे कृष्ण कैसे बुद्धिमान | सुबह हम बात कर लेंगे। कहें? वे कहेंगे, बुद्धिमान हैं वे, वे ही हैं बुद्धिमान, जो मुझे भजते | बहुत सुंदर बिस्तर पर उसे सुलाया, जैसे पर वह कभी न सोया हो। बहत सखद इंतजाम किया। सब सविधा की: जो सम्राट के यह भजने का, प्रभु को स्मरण करने का इतना आग्रह! क्या पास श्रेष्ठतम था। चाहते हैं? क्या इशारा है उनका? एक छोटी-सी कहानी से समझाने | सुबह जब उठा संन्यासी, सम्राट ने पूछा, प्रसन्न तो हैं। कोई की कोशिश करूं। | अड़चन, कोई तकलीफ तो न थी? उस संन्यासी ने कहा, तकलीफ सुना है मैंने, एक संन्यासी को उसके गुरु ने कहा कि तू अब यहां | तो कोई न थी, आराम तो पूरा था। लेकिन नींद नहीं लगी। नींद क्यों न सीख पाएगा। हम जो सिखा सकते थे, सिखाया; लेकिन उसके | | नहीं लगी? कहा कि आप भी अजीब आदमी हैं। अच्छा बिस्तर लिए तू बहरा है। तू यहां से जा और देश की राजधानी में सम्राट के दिया। सब दिया। यह ऊपर एक नंगी तलवार एक धागे से काहे के पास पहुंच जा। अगर कुछ सीख सकता है, तो अब वहीं। | लिए बांधकर लटका दी? तो रातभर प्राण संकट में रहे। आंख बंद वह संन्यासी यात्रा करके सम्राट के द्वार पर पहुंचा। बड़ी | करूं, तो तलवार दिखाई पड़े। पता नहीं धागा कब टूट जाए! और मश्किल में पड़ा। सम्राट को देखा। रात हो गई थी। दरबार भरा था। पतला धागा! करवट लू, तो प्राण संकट में, कि पता नहा, वह नर्तकियां नाचती थीं। अर्धनग्न स्त्रियां नाचती थीं। शराब ढाली जा तलवार कब टूट जाए। रातभर एक पल सो नहीं सका। रही थी। सम्राट बीच में बैठा था। उस संन्यासी ने कहा, यहां मुझे सम्राट ने कहा, मैं तुझे कहता हूं कि इसे ऐसा कह कि रातभर सीखने भेजा है! अपने मन में सोचा, अच्छा फंसा! अब कहां तूने तलवार का भजन किया। बिस्तर लुभा न सके। चारों तरफ इत्र भागकर जाऊं? अब इस रात कहां ठहरूंगा? की खुशबुएं थीं, वे सुला न सकीं। कुछ सुला न सका। तलवार का सम्राट ने कहा, इतने चिंतित मत होओ। इतने बेचैन मत होओ। भजन जारी रहा। तुझसे मैं कहता हूं, स्त्रियां नाचती थीं, माना कि ठीक जगह ही भेजे गए हो। आओ, विश्राम करो रात। जल्दी क्या वे अर्धनग्न थीं; शराब ढलकाई जाती थी, माना कि लोग शराब पी है लौट जाने की? दो दिन बाद लौट जाना। वह बहुत घबड़ाया। | रहे थे; लेकिन तुझे मैं कहता हूं, ठीक तलवार की तरह मौत मेरे उसने कहा, मैंने तो आपसे कुछ कहा नहीं! सम्राट ने कहा कि कहने ऊपर लटकी है। तेरे ऊपर ही कल रात लटकी थी, ऐसा नहीं; से ही कुछ सुनाई पड़ता हो, ऐसा कहां! तेरे गुरु ने कितना तुझसे सबके ऊपर लटकी है; कच्चे धागे में ही लटकी है। तुझे दिखाई कहा, तूने कुछ न सुना। जब कहने से सुनाई न पड़े, तो न कहने से | | पड़ रही थी, क्योंकि मैंने प्रत्यक्ष लटका दी थी। मौत की तलवार भी सुनाई पड़ सकता है। तू बैठ। तू जल्दी मत कर। | दिखाई नहीं पड़ती; सबके ऊपर लटकी है। . रात भोजन करवाया। भोजन के बाद फिर उस संन्यासी ने कहा, पर, उसने कहा, इससे भगवान के भजन का क्या मतलब? एक बात तो कम से कम बता दें! सम्राट ने कहा, जल्दी क्या है? | | | जिस तरह मैं तलवार का भजन करता रहा रातभर, अगर आपको कल सुबह पूछ लेना। उसने कहा कि नहीं; रातभर नींद न आएगी। मौत इस तरह लटकी हुई दिखाई पड़ती है, तो आप मौत का भजन यह क्या मजा है! मेरे गुरु ने आपके पास भेज दिया; शराबी के | | कर रहे होंगे?

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