Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 425
________________ जीवन अवसर है >> हो ? उसने कहा, संतुष्ट तो बहुत हूं। हाथ-पैर टूट गए। पर, उसने कहा कि देखा, घोड़ा डाक्टर को बुलाकर लाया । उसने कहा कि बिलकुल लाया। लेकिन एक ही गलती हो गई । वेटरनरी डाक्टर बुला लाया। उसने कहा, घोड़ा तो घोड़ा ही है। उसको आदमियों डाक्टर का कोई भी पता नहीं है। वह घोड़ों के डाक्टर को लिवा लाया। तो यह तो तुम्हें पहले ही समझ लेना था। उस बेचने वाले ने कहा, यह तो साफ ही है। वह जो हम सबकी भाषाएं हैं। घोड़ा ठीक ही है कि वेटरनरी डाक्टर को बुला लाए। वह हमारा जो चित्त है, वह जब प्रार्थना करने जाएगा, तो उसकी अपनी भाषा है; वह वेटरनरी डाक्टर को बुला लाएगा। वह परमात्मा तक नहीं पहुंचेगा। वह उन चीजों तक पहुंच जाएगा, जिन चीजों से उसके संबंध रहे हैं, जिन चीजों से उसका परिचय है, जिन चीजों को उसने चाहा है। हम अगर परमात्मा भी मिल जाए अचानक हमारे चित्त को, वही चीजें मांगेंगे, जो हम मांगते रहे हैं। उस मौके को भी हम खो देंगे। अगर ठीक परमात्मा...। सोचें जरा अपने मन में कि आज रात परमात्मा आपके बिस्तर के पास आकर खड़ा होकर जगाए कि उठिए । क्या चाहिए? तो जरा सोचें अपने मन में। आपको फौरन पता चल जाएगा कि आप क्या मांगेंगे। परमात्मा को कोई मांगेगा, इसमें बहुत संदेह है। क्योंकि जिसने कभी नहीं मांगा उसे, वह अचानक आज रात नहीं मांग पाएगा। कृष्ण कहते हैं, मूढ़ है वह व्यक्ति । मूढ़ मुझे नहीं भजते हैं। फिर मुझे कौन भजता है? जिज्ञासु, मुमुक्षु, वे सात्विक लोग, वे सदाचरण वाले लोग, बुद्धिमान मुझे भजते हैं। सच में ही, वही आदमी बुद्धिमान है, जो इस जगत के अवसर का उपयोग प्रभु की झलक पाने में कर ले। उसके अलावा कोई भी बुद्धिमान नहीं है। वही आदमी बुद्धिमान है, जो इस जीवन के अवसर का उपयोग जीवन के परम सत्य की खोज में कर ले। बाकी कोई आदमी बुद्धिमान नहीं है। बाकी सभी बुद्धिहीन हैं। जीवन उन चीजों को इकट्ठा करने में भी गंवाया जा सकता है, जिन चीजों को पाकर कुछ भी नहीं मिलता। और हम सब वैसा ही गंवाते हैं। जीवन उन चीजों की खोज में नष्ट किया जा सकता है, जिन्हें हम न पाएंगे, तो भी दुखी होंगे; और पा लेंगे, तो भी दुखी होंगे। सिकंदर जीत ले सारी दुनिया, तो भी सुखी नहीं हो पाया। क्योंकि सारी दुनिया को जीतने से सुख का कोई भी संबंध नहीं है। न जीते, तो दुखी हो। जीतने की कोशिश करे, तो परेशान हो । और फिर जीत ले, तो जीत से कुछ न पाए। सब मिल जाए- जो हमारा मन चाहता है, सब मिल जाए - तो भी हम अचानक पाएंगे कि भीतर सब कुछ खाली रह गया है। कुछ मिला नहीं। जीवन के गहरे मूल्य तृप्त नहीं हुए। और जीवन की गहरी प्यास, प्यास ही रह गई; और जीवन की असली भूख, भूख ही रह गई, और प्राण अब भी पुकार रहे हैं किसी वर्षा के लिए। बादल बहुत बरसे, बहुत गर्जन हुआ, बिजलियां चमकीं, सागर भर गए नीचे। लेकिन वह अमृत नहीं बरसा, जिसकी तलाश थी। परमात्मा के अतिरिक्त वह अमृत कहीं और नहीं है। परमात्मा से क्या मतलब? परमात्मा से मतलब है, जीवन का जो गहनतम सत्य है, वही । जन्म के पहले भी जो मेरे भीतर था, और मृत्यु के बाद भी जो मेरे भीतर होगा, वही । जब मैं जागता हूं, तब भी जो मेरे भीतर है; और जब मैं सो जाता हूं, तब भी मेरे भीतर होता है - वही । जब मैं बच्चा हूं तब, और जब मैं जवान हूं तब, और जब बूढ़ा हो जाऊंगा तब, तब भी जो नहीं बदलता मेरे भीतर - वही । वह जो सारे परिवर्तन | के बीच शाश्वत है; वह जो सारी उथल-पुथल के बीच स्थिर है; | वह जो सारी गतियों के बीच, सारी आंधियों के बीच अडिग है; वह जो सब जीवन और मृत्यु के बीच सदा एक-सा है— उस एक की | खोज परमात्मा की खोज है। 399 निश्चित ही, बुद्धिमान वही है, वाइज वही है, मेधावी वही है, जो इस जीवन से उसे पा ले। 1 हम करीब-करीब ऐसे लोग हैं कि सागर के तट पर गए हों, अवसर मिला हो, और सागर में हीरे पड़े हों, लेकिन हम किनारे पर रेत में जो सीप और चमकदार पत्थर पड़े रहते हैं, उनको बीनने में बिता रहे हैं। वह हम सब बीनकर इकट्ठा ढेर कर लेंगे। जीवन हाथ से जाएगा! ढेर वहीं पड़ा रह जाएगा। क्या खोज रहे हैं हम ? हमारी खोज वैसी है, रामकृष्ण कहा करते थे कि चील अगर आकाश में भी उड़ रही हो, तब भी तुम | यह मत सोचना कि वह आकाश में उड़ती है। उसकी नजर तो नीचे कचरेघरों में कोई मांस का टुकड़ा पड़ा हो, कोई हड्डी पड़ी हो, उस पर लगी रहती है। आकाश में उड़ती चील के धोखे में मत आ | जाना कि वह आकाश में उड़ रही है, इसलिए आकाश में उड़ रही होगी । उसका चित्त तो किसी हड्डी पर लगा रहता है, जो किसी कचरेघर पर पड़ी होगी। जीवन का विराट आकाश मिलता है हमें, जिसमें हम परमात्मा

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