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अदृश्य की खोज
दिखाई ही तब पड़ती है, जब आकार खो जाता है।
हो, वह ठीक; लेकिन अभी तपस्वी नहीं हुए। क्या मापदंड है तो तपस्वियों में मैं तेज!
जानने का? तपश्चर्या नहीं उन्होंने कहा। महात्माओं के साथ बड़ी ज्यादती | ___ जानने का एक ही मापदंड है, बुद्ध जैसे आदमी, जैसे ही आंख कर दी। कहना चाहिए था, तपस्वियों में तपश्चर्या। लेकिन कहा, | किसी पर डालते हैं वे, तत्काल दिखाई पड़ता है कि तेज है या नहीं। तपस्वियों में तेज। कितनी ही तपश्चर्या करो, अगर वह अनुभव की | वही तेज, जानने का माध्यम है। और कोई जानने का माध्यम नहीं स्थिति नहीं आती, जहां कि मैं बिलकुल खो जाता है और सिर्फ | है। और कोई मेजरमेंट का उपाय भी नहीं है कि किस आदमी को प्रकाश का पुंज रह जाता है। आपसे मैंने कहा, आप देखो महावीर | ज्ञान उपलब्ध हो गया। को, यह तो आपकी बात है। आप तो कभी देखोगे, बहुत मेहनत बुद्ध कह देते हैं, फलां आदमी को ज्ञान उपलब्ध हो गया; फलां करोगे, तब दिखाई पड़ेगा।
आदमी को ज्ञान उपलब्ध हो गया। लोग उनसे आकर पूछते हैं कि लेकिन जहां तक महावीर का संबंध है, जिस दिन से ज्ञान हुआ, | आपने उस आदमी को ज्ञान-उपलब्ध कह दिया! वह तो अभी छ: कोई चालीस साल की उम्र में, उसके बाद वे चालीस साल और दिन पहले आया था। मैं तो छः साल से तपश्चर्या कर रहा हूं। आपने जिंदा थे। फिर चालीस साल वे जो जिंदा थे, उसमें वे शरीर नहीं | मेरी अभी तक घोषणा नहीं की! तो बुद्ध कहते हैं, अभी तुम ठहरो, थे। उसमें वे सिर्फ एक प्रकाशपुंज थे, जो चल रहा था, डोल रहा अभी तुम तपश्चर्या ही कर रहे हो। अभी तेज पैदा नहीं हुआ है। था; आ रहा था, जा रहा था; बोल रहा था, सो रहा था; उठ रहा उस तेज की बात है। कृष्ण कहते हैं, तपस्वियों में तेज। था, बैठ रहा था। लेकिन उसमें फिर कोई शरीर नहीं था। एक-एक चीज में वे अदृश्य का इशारा करते हैं। कहते हैं,
जिस दिन बुद्ध मरे, किसी ने उनसे पूछा कि मरने के बाद आप | आकाश में शब्द। कहां होंगे? तो बुद्ध ने कहा कि चालीस साल से मैं जहां था, वहीं। आकाश दिखाई पड़ता है, आकाश में सब चीजें दिखाई पड़ती पर उन्होंने कहा कि नहीं, हम कैसे मानें। क्योंकि शरीर तो आपका | हैं, सिर्फ एक शब्द दिखाई नहीं पड़ता। खयाल किया आपने! खो जाएगा। और इस देह को तो हमें जला देना पड़ेगा, गड़ा देना आकाश दिखाई पड़ता है, विस्तार, एक्सपैंशन। और आकाश में पड़ेगा। यह तो मिट्टी हो जाएगी। तो बुद्ध ने कहा, मेरे लिए तो यह | सब चीजें दिखाई पड़ती हैं, शब्द दिखाई नहीं पड़ता। फिर भी चालीस साल पहले खो चुकी है। चालीस साल से तो मैं सिर्फ एक आकाश शब्दों से भरा हुआ है; शब्द से भरा हुआ है। शब्द की शून्य की भांति, एक बातीरहित दीए की भांति, एक प्रकाश की | तरंगों से भरा हुआ है। भांति जी रहा हूं। और अब मेरे मिटने का कोई उपाय नहीं, क्योंकि । अब तो वैज्ञानिक कहते हैं कि आज नहीं कल, कृष्ण ने जो गीता
जो भी मिट सकता था, वह मिट चुका है। और अब तो मौत आए कही है, वह हम फिर पकड़ लेंगे यंत्रों के द्वारा। क्योंकि अगर वह . कि महामृत्यु, जो है, वह रहेगा।
कभी भी कही गई है, तो शब्द कभी मरता नहीं; वह मौजूद है। हम तेज अमृतत्व है; शरीर मरणधर्मा है। तपस्वियों में तेज, उसका | | उसको पकड़ लेंगे। जरा वक्त लगेगा। अर्थ है, तपस्वियों में वह, जो कभी नहीं मरता। लेकिन आपने | ___ अगर दिल्ली से एक शब्द बोला जाता है रेडियो स्टेशन पर, और अगर चेहरे पर रौनक देखी, वह तो मर जाएगी तपस्वी के साथ। | आठ सेकेंड या दस सेकेंड बाद बंबई में पकड़ा जा सकता है। अगर अगर शरीर में थोड़ी लाली दिखाई पड़ी है, तो वह तो जरा इंजेक्शन दस सेकेंड बाद पकड़ा जा सकता है, तो दस साल बाद पकड़ने में लगाकर खून बाहर निकाल लो, तो निकल जाएगी। उससे तेज का | | कोई वैज्ञानिक बाधा नहीं है, दस करोड़ साल बाद पकड़ने में कोई कोई संबंध नहीं है।
वैज्ञानिक बाधा नहीं है। चाहे हम अभी जल्दी यंत्र बना पाएं या न तेज एक बहुत आकल्ट, एक गुप्त रहस्य है। और उसको देखने बना पाएं। दिल्ली में बोला गया शब्द या लंदन में बोला गया शब्द की विधियां हैं। और जब तक वह न दिखाई पड़े, तब तक कोई | अगर एक क्षण के बाद भी बंबई में पकड़ा जाता है, तो उसका तपस्वी नहीं है। तप कितना ही करे कोई।
मतलब यह है कि शब्द जब पैदा होता है, उसके बाद मर नहीं महावीर के पास भिक्षु आएंगे, साधक आएंगे; बुद्ध के पास | | जाता; होता है। और जब वह आपके बंबई से गुजर गया, तब भी आएंगे। बुद्ध उनको देखेंगे और कहेंगे कि तुम तपश्चर्या कर रहे मर नहीं जाता; तब भी मौजूद होता है। सूक्ष्म होता चला जाता है;
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