Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 409
________________ < प्रकृति और परमात्मा > लगी, बहुत जोर से चलने लगीं। धन इकट्ठा होने लगा, तिजोड़ी | कि ठीक! काफी लोग जा रहे हैं अपनी दुकान में। वह दूसरे की भरने लगी। लेकिन दोनों का दुख भी बड़ा होने लगा, जैसा कि | दुकान अपनी हो गई अब। अक्सर होता है। सफलता के साथ न मालूम कैसी गहरी उदासी जिस दिन कोई परमात्मा को झांक लेता है, उस दिन सब दुकानें आने लगती है। क्योंकि आप अकेले ही सफल नहीं होते, दूसरा भी | | अपनी हो जाती हैं, सब कुछ अपना हो जाता है। उस दिन भीतर की सफल हो रहा होता है। प्रफुल्लता का कोई अंत नहीं है। उस दिन फूल खिलते हैं भीतर के। दोनों परेशान हो गए। दोनों की दुकान अच्छी चलती है। सहस्र पंखुड़ियों वाला फूल उस दिन खिलता है भीतर का, क्योंकि भीड़-भड़क्का होता है। ग्राहक काफी आते हैं। लेकिन दोनों उस दिन हम परम आनंद में विराजमान हो जाते हैं। सब अपने हैं। परेशान हो गए। दोनों का हृदय-चाप बढ़ गया। दोनों की नींद हराम | सब अपना है। सारा विराट अपना है। हो गई। अनिद्रा पकड़ गई। दोनों चिकित्सकों का चक्कर लगाने । लेकिन जो प्रकृति में खोजने जाएगा, वह न खोज पाएगा इसे। लगे, लेकिन कोई रास्ता न सूझे। धन बढ़ता गया और बेचैनी बढ़ती | इसे तो परमात्मा में कोई खोजने जाएगा, तो प्रकृति में भी पा लेगा। चली गई। बेचैनी यह थी कि दोनों अपने-अपने काउंटर पर बैठकर टेनिसन ने कहा है, एक वृक्ष के पास से निकलते हुए, एक देखते थे कि दूसरे की दुकान में कितने ग्राहक जा रहे हैं, उनकी दीवाल के पास से निकलते हुए, जिसमें एक छोटा-सा घास का गिनती करते थे। रात परेशान होते थे कि इतने ग्राहक चूक गए; | फूल खिला है; निकलते वक्त उसने कहा है कि अगर मैं इस अपने पास भी आ सकते थे। छोटे-से फूल के राज को समझ लूं, तो मुझे सारी दुनिया का राज चिकित्सकों ने कहा कि हम तुम्हारा इलाज न कर पाएंगे, क्योंकि | | समझ में आ जाए। यह बीमारी शारीरिक नहीं है। तुम कनफ्यूसियस के पास चले लेकिन अगर वह कृष्ण से पूछे, तो कृष्ण कहेंगे, तू कभी इस जाओ। उन्होंने कहा, कनफ्यूसियस इसमें क्या करेगा? वह उपदेश फूल के राज को न समझ पाएगा। अगर तुझे सारी दुनिया का राज देगा। उपदेश से कुछ होने वाला नहीं है। सवाल असल यह है कि | समझ में आ जाए, तो इस फूल का राज समझ में आ सकता है। दूसरे की दुकान पर ग्राहक बहुत जा रहे हैं, और उन्हें हम देखते हैं। । धर्म की दृष्टि पूर्ण से नीचे की तरफ यात्रा करती है। अधर्म की आंख बंद कर नहीं सकते हैं। सामने ही दुकान है। छाती पर चोट | दृष्टि खंड से ऊपर की तरफ यात्रा करती है। धर्म अवतरण है पूर्ण लगती है। हर बार एक आदमी भीतर प्रवेश करता है, फिर छाती | से नीचे की ओर। और हमारी सब सोच-समझ, हमारी तथाकथित पर चोट लगती है। नींद न जाएगी, तो होगा क्या! सांसारिक समझ, नीचे से ऊपर की तरफ चढ़ाव है-एक-एक फिर भी, चिकित्सकों ने कहा, तुम कनफ्यूसियस के पास कदम, एक-एक सीढ़ी। जाओ। वह आदमी होशियार है, और वह आदमी की गहरी ध्यान रहे, पर्वत से उतरना सदा आसान है; पर्वत पर चढ़ना बीमारियों को जानता है। बहुत कठिन है। सबसे बड़ी कठिनाई तो यही होती है पर्वत पर वे दोनों गए। कनफ्यूसियस ने तरकीब बताई और वह काम कर चढ़ने में कि जिस कदम पर आप खड़े होते हैं, वहां आपने जो गई और दोनों स्वस्थ हो गए। बड़ी मजेदार तरकीब थी। शायद ही | | इकट्ठा कर लिया होता है, वही अगले कदम उठाने में बाधा बनता इस जमीन पर किसी और होशियार आदमी ने ऐसी तरकीब कभी है। और हर कदम पर आप कुछ इकट्ठा करते चले जाते हैं। यश, बताई हो। धन, मान, सम्मान, मित्र, प्रियजन इकट्ठा करते हैं हर कदम पर। कनफ्यूसियस ने कहा, पागलो। बड़ा सरल-सा इलाज है। फिर हर अगले कदम पर यही फांसी बन जाते हैं; यही बोझ की तरह दुकानें चलने दो, तुम एक-दूसरे के काउंटर पर बैठने लगो। यिन चारों तरफ लटक जाते हैं। ये कहते हैं, कहां जाते हो? हमें छोड़कर यांग के काउंटर पर बैठे, यांग यिन के काउंटर पर बैठे, तब तुम कहां जाते हो? ये सब तिजोड़ियां छाती से अटक जाती हैं। दोनों का चित्त बड़ा प्रसन्न होगा। दूसरे की दुकान में जो घुस रहे हैं, ऊपर से नीचे की तरफ उतरना बड़ा ही सुगम है, जैसे सूरज की वे अपनी ही दुकान में जा रहे हैं! तुम ऐसा कर लो। | किरण उतरती है। नीचे से ऊपर की तरफ जाना बहुत कठिन है। और कहते हैं, उन दोनों ने ऐसा कर लिया और उस दिन से कृष्ण यह कह रहे हैं कि प्रकृति की तरफ अगर तूने ध्यान दिया, उनकी सब बीमारियां समाप्त हो गईं। वे दिनभर बैठे मजा लेते रहते तो तू मुझ तक न आ पाएगा। यद्यपि प्रकृति मुझमें है, फिर भी तू | 383|

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