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<प्रकृति और परमात्मा >
होना चाहता हूं। मुझे हट जाने दो। यह सब बात बड़ी गड़बड़ | वह अपने साथ भी चोरी कर जाएगा। मालूम पड़ती है। यह लोगों को मारना-यश के लिए, धन के ___ एक आदमी क्रोधी है और वह कह रहा है, मैं क्रोध नहीं करूंगा। लिए, राज्य के लिए क्षुद्र मालूम पड़ता है। यह मेरे सात्विक मन | | लेकिन उसे पता नहीं है कि जो यह कह रहा है, नहीं करूंगा, यह को प्रीतिकर नहीं लगता; यह श्रेयस्कर नहीं है। मुझे जाने दो कृष्ण, | | भी उसका क्रोधी स्वभाव है, जो कसम ले रहा है, जो संकल्प बांध मुझे हट जाने दो, इस युद्ध से। इससे तो बेहतर भीख मांगकर जी | रहा है कि मैं क्रोध नहीं करूंगा। सौ में सौ ही मौके इस बात के हैं लेना होगा। इससे तो बेहतर भिखारी हो जाना होगा। इससे तो कि यह क्रोध ही बोल रहा हो कि मैं क्रोध नहीं करूंगा। अब वह बेहतर किसी वृक्ष के नीचे, किसी अरण्य में बैठ जाऊंगा, प्रार्थना | दिक्कत में पड़ेगा। में डूब जाऊंगा। यह सब मैं नहीं करना चाहता हूं। यह बड़ा | जैसे कभी-कभी कुत्ते को आपने देखा हो कि अपनी पूंछ पकड़ने तामसिक मालूम पड़ता है।
की दिक्कत में पड़ जाता है। जोर से छलांग लगाता है। पूंछ कृष्ण कहते हैं, सत्व, रज, तम, सब मुझमें हैं, लेकिन मैं उनमें बिलकुल पास मालूम पड़ती है। जरा सा मुंह पास पहुंच जाए, तो नहीं हूं। इसलिए अगर तू सात्विक भी हो जाए मेरे बिना, मुझे | पूंछ पकड़ में आ जाए। लेकिन बेचारे कुत्ते को पता नहीं; कुत्ते को समर्पित हुए बिना, तो तेरे सत्व से भी कुछ हल न होगा। अगर तू क्या, हमारे तथाकथित तपस्वियों, नैतिक साधकों को भी पता नहीं, अपने ही हाथ से स्वर्ग में भी पहुंच जाए, तो तेरा अहंकार साथ होगा तो कुत्ते का तो कोई कसूर नहीं है। और सब स्वर्ग नर्क हो जाएंगे। क्योंकि असली नर्क तेरे पीछे ही जब पूंछ बिलकुल करीब दिखाई पड़ती है, तो कुत्ता सोचता है चलता रहेगा; तेरे साथ ही चलता रहेगा। तू पहले मुझे पा ले और कि जरा ही मुंह बढ़ा लूं, तो पूंछ पकड़ में आ जाए। मुंह बढ़ाता है, फिर तू बात करना सत्व, रज और तम की; फिर तू बात करना लेकिन तब तक पूंछ हट जाती है। क्योंकि वह मुंह से ही पीछे जुड़ी प्रकृति की। पहले तू मुझे पा ले।
| है, यह उसे पता नहीं है। जब छूटती है, तो और जोर से कूदता है। - धर्म की और नीति की यही बुनियादी दूरी है। नीति कहती है, सोचता है कि शायद थोड़ा कम कूदा, इसलिए पूंछ पकड़ में नहीं सात्विक हो जाओ। धर्म कहता है, धार्मिक हो जाओ। नीति कहती | | आ सकी। पर जितने जोर से कूदता है, पूंछ भी उतने ही जोर से है, पहले अपने कर्म बदलो, आचरण बदलो। धर्म कहता है, पहले | कूदती है। अब एक विसियस सर्किल, एक दुष्टचक्र पैदा होता है, प्रभु में प्रवेश कर जाओ। क्योंकि तुम क्या आचरण बदलोगे और | जिसमें कुत्ता दिक्कत में पड़ेगा, थकेगा, परेशान होगा; कभी पूंछ तुम्हारा बदला हुआ आचरण तुम्हारा ही बदला हुआ होगा। वह | | पकड़ में आएगी नहीं। तुमसे बड़ा नहीं हो सकता। तुम क्या सदाचरण करोगे? वह तुमसे जब कोई हिंसक आदमी कहता है कि अब मैं अहिंसक होने की ही निकलेगा। वह तुमसे महत्वपूर्ण नहीं हो सकता। जैसे कोई कोशिश करूंगा, तब वह आदमी कुत्ते के तर्क पर चल रहा है। आदमी अपने जूते के बंद पकड़कर खुद को नहीं उठा सकता, ऐसे | | नहीं; आप अपने में बदलाहट न ला सकेंगे। क्योंकि लाएगा कौन ही कोई आदमी अपने ही द्वारा सदाचरण को उपलब्ध नहीं हो | बदलाहट? आप ही! सकता। आप ही तो सदाचरण करेंगे-आप ही। यह थोडा समझने - इसलिए कृष्ण कहते हैं, या क्राइस्ट कहते हैं, कि परमात्मा की जैसा है।
| तरफ पहले नजर उठा लो, फिर बदलाहट आ जाएगी। क्योंकि तब एक आदमी चोर है। और वह चोर कहता है कि मैं कोशिश कर | | तुम परमात्मा के हाथ में होओगे, और उसके हाथ में पड़ते ही रहा हूं कि अचोर हो जाऊं, चोरी छोड़ दूं। अब चोर ही तो चोरी | बदलाहट शुरू हो जाती है। उसकी तरफ आंख उठाते ही बदलाहट छोड़ने की कोशिश करेगा! चोर ही कोशिश करेगा चोरी छोड़ने शुरू हो जाती है, क्योंकि आप दूसरे ही आदमी हो जाते हैं। उसकी की। यह जूते के बंद पकड़कर अपने को उठाने से भी कठिन काम तरफ नजर पड़ते ही सब कुछ बदल जाता है। क्योंकि जैसे ही विराट है। यह होने वाला नहीं है। क्योंकि अगर चोर इस योग्य होता कि दिखाई पड़ता है, वैसे ही हमारी क्षुद्रताएं गिर जाती हैं, कि हम भी चोरी उससे न होती होती, तब तो बात ही और थी, लेकिन यह बात कैसे पागल थे! हम खोज क्या रहे थे? हम पाने की कोशिश क्या नहीं है।
कर रहे थे? चोर चोर है। और कसम खा रहा है कि मैं चोरी नहीं करूंगा। बुद्ध के पास एक स्त्री सुबह-सुबह आई है। उसका लड़का मर
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