Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 397
________________ आध्यात्मिक बल > अपने नाटाहता था। वक्षक ग परमात्मा सनातन कारण है, ऐसा बोध आपके कर्तापन को गिरा | हमारे पास न दाना है इसको देने को, न अनाज है। उस आदमी ने जाएगा, मिटा जाएगा, धूल में डाल जाएगा। और कर्तापन का बोध | | कहा, रुको। अगर तुम मेरी मानो, तो मैं सालभर के लिए अनाज गिर जाए, तो ही हम परमात्मा की दिशा में एक कदम ऊपर उठते इसको दिए देता हूं। तुम इसे छोड़ दो। हैं। और ध्यान रहे, आलसी हम ऐसे हैं कि परमात्मा अगर कहे कि - इसके पहले कि गांव के लोग कुछ बोलते, अर्थी से आवाज आई एक कदम जरा-सा उठा लो, तो भी हम कदम नहीं उठाते। कि पहले बात साफ हो जानी चाहिए। अनाज साफ-सुथरा है न? सुना है मैंने, एक गांव में एक आदमी से गांव परेशान हो गया | नहीं तो पीछे कौन झंझट करेगा! पहले कुछ निर्णय करें गांव के था। परेशान इसलिए हो गया था कि न तो वह कमाता, न कुछ पैदा | लोग, अर्थी से आवाज आई, साफ कर लेना। अनाज साफ-सुथरा करता। फिर गांव यह भी नहीं देख सकता था कि वह भूखा मरता | है? एक, और दूसरी बात कि ये लोग मुझे यहीं छोड़कर चले रहे। तो गांव को उसे देना पड़ता था। वह अपने वक्ष के नीचे, या जाएंगे, तो मुझे घर कौन पहुंचाएगा? | जिस आदमी के बाबत यह कहानी है, वह एक सूफी फकीर था। उसे ले आते थे, तो आ जाता था। और वृक्ष के पास से, बाहर से वह कोई साधारण आदमी नहीं था। जब उसकी अर्थी नीचे उतारी उसको झोपड़े के भीतर लोग ले जाते थे, तो चला जाता था। अगर और अजनबी आदमी ने जब उसकी यह बात सुनी, तो उसने सोचा किसी दिन पड़ोस के लोग उसको झोपड़े के बाहर न निकालते, तो | कि आदमी तो असाधारण है, उसके दर्शन करने चाहिए। उसको वह झोपड़े के भीतर से ही नाराजगियां जाहिर करता था। देखा तो उस अजनबी ने कहा, हैरान करते हो तुम मुझे! फिर गांव परेशान हो गया, और गांव ने सोचा कि इस आदमी तो उस आदमी ने कहा कि तुम थोड़ा मेरी आंखों में झांककर को कब तक ढोएंगे? फिर अकाल पड़ा और गांव ने सोचा कि अब समझ पा रहे हो, इसलिए मैं तुमसे राज की बात कहता हूं। ये सारे तो इसको जिंदा या मुर्दा दफना देना चाहिए। वैसे इसके जीने से कोई लोग समझते हैं कि मैं आलसी हूं। लेकिन मैं उस यात्रा पर निकल फर्क भी नहीं पड़ता। पर उन्होंने सोचा, क्या वह राजी होगा? उन्होंने गया, जो कठिनतम है। और ये सारे लोग समझते हैं कि बड़े श्रमी कहा, चलकर हम देख लें। हैं। लेकिन ये जो भी कर रहे हैं, दो कौड़ी का कर रहे हैं। तुम सोचते वे गांव के लोग उसके पास गए और उससे पूछा कि हमने यह होगे कि मैं एक कदम घर जाने को राजी नहीं। मैं तुमसे कहता हूं, तय किया है कि हम तुम्हें दफना दें। क्योंकि तुम्हारे होने, न होने से ये भी कोई अपने असली घर जाने को एक कदम राजी नहीं। और कोई फर्क नहीं पड़ता। एक दिन तो दफनाना ही पड़ेगा, जब तुम जिस घर तुम मुझे ले जा रहे हो, वह मेरा कोई असली घर नहीं है। मरोगे। लेकिन हमारे लिए तुम मरे ही जैसे हो। और तुम्हारे लिए इसलिए मैं कब्र में भी जाने को राजी हूं। क्योंकि मेरे लिए कब्र और भी, जीते हुए हो, ऐसा हमारा अनुभव नहीं। क्या तुम राजी हो? | वह घर बराबर है। और जिस शरीर को बचाने की तुम बात कर रहे उसने कहा, मैं राजी हो सकता हूं। लेकिन मरघट तक ले कौन | हो, इसलिए मैंने पूछा कि अनाज साफ-सुथरा है न! क्योंकि इसको कत नहीं है। बाकी ले जाना तुम्हीं को पड़ेगा। बचाने के लिए इतनी मेहनत करने की मैं कोई जरूरत नहीं समझता। उन्होंने कहा, हमने तो यह सोचा भी नहीं था कि तुम इतने जल्दी | लेकिन मैं एक और घर को बचाने में लगा हूं। और मैं तुमसे कहता राजी हो जाओगे! हूं कि तुम सब अलाल हो। और तुम सब समझते हो कि मैं अलाल उन्होंने अर्थी बनाई। उस आदमी को अर्थी पर रखा। वे उसको | हूं। और ध्यान रखो, तुम मुझे जिंदा दफना रहे हो। जब तुम दफना लेकर चले। वह आदमी अर्थी में लेट गया। थोड़े वे भी चिंतित हुए। | दिए जाओगे, तब मैं तुम्हें बताऊंगा। तब तुम मुझसे मिलना। और इतना भरोसा न था उसका। तब मैं तुम्हें बताऊंगा कि असली आलसी कौन था। गांव में कोई परदेशी आया हुआ था। उसे यह खबर मिली कि | | पता नहीं, उस गांव के लोग समझे या नहीं समझे, लेकिन गांव में कौन-सी घटना घट रही है कि जिंदा आदमी को लोग ले आपसे मैं कहता हूं, एक कदम भी हम उस दिशा में उठाने की जा रहे हैं दफनाने! उसने बीच रास्ते पर आकर रोका कि भाइयो, हिम्मत नहीं करते हैं। यह क्या कर रहे हो? उन्होंने कहा, हम परेशान हो गए हैं। अब तो कृष्ण कह रहे हैं, सनातन हूं मैं कारण। इसीलिए कह रहे हैं और कोई उपाय नहीं बचा। हम इसे जिंदा ही दफनाने जा रहे हैं। ताकि आपको बस एक ही कदम उठाने को बाकी रह जाए। वह एक 1371

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