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< गीता दर्शन भाग-3
कदम, कि आप कर्ता नहीं हैं, परमात्मा कारण है। अगर आप सब करिक्युलम लाया था अपने विश्वविद्यालय का। उसने निशान लगा छोड़ पाएं उस सनातन कारण पर...।
रखे थे कि मैंने क्या-क्या पढ़ा। उसने सब बताया। लेकिन हम सनातन कारण पर नहीं छोड़ते। किसी आदमी ने परीक्षा के लिए बूढ़े ने क्योंकि उसने कहा कि मैं अदृश्य चीजों गाली दे दी, तो हम क्रोध से भर जाते हैं। जरा पैर में चोट लग गई, को भी देख पाता हूं, उनका भी अंदाज लगा पाता हूं, उनका भी तो हम परेशान हो जाते हैं। अगर हम सनातन कारण को देख अनुमान कर पाता हूं-उस बूढ़े ने बातचीत करते-करते अपने हाथ पाएं-जो उस पत्थर के पीछे भी है, और मेरे पीछे भी; और जो || का छल्ला निकालकर अपनी मुट्ठी में अंदर कर लिया। बंद मुट्ठी उस गाली देने वाले के भी पीछे है, और मेरे पीछे भी: और कांटे के लड़के के सामने की और कहा कि मझे बताओ. इस मट्टी के भीतर पीछे है, और मेरे दर्द के पीछे भी; अगर हम उस सनातन कारण क्या है? को देख पाएं, जो सुख के पीछे भी है और दुख के पीछे भी; जन्म उस लड़के ने एक सेकेंड आंख बंद की और कहा कि एक ऐसी में भी और मृत्यु में भी; सम्मान में और अपमान में भी अगर वह चीज है जो गोल है और जिसमें बीच में छेद है। बूढ़ा हैरान हुआ। सनातन हमें दिख जाए, तो हमारी उत्तेजना का जगत तत्काल शांत | बूढ़े ने समझा कि लड़का सचमुच ही बुद्धिमान होकर लौट आया हो जाए। फिर उत्तेजना का कोई कारण नहीं है।
है। सब शास्त्र उसने जान लिए हैं। फिर भी उसने एक सवाल और उत्तेजना के सब कारण तात्कालिक हैं। जिसे अनुत्तेजना के | पूछा कि कृपा करके उस चीज का नाम भी तो बताओ! . जगत में प्रवेश करना है शांति के, उसे सनातन कारण को स्मरण तो उस युवक ने आंखें बंद की, बहुत देर तक नहीं खोलीं। और कर लेना चाहिए।
फिर कहा कि मैंने जो शास्त्रों का अध्ययन किया, उसमें नाम बताने और कृष्ण कहते हैं, बुद्धिमानों की मैं बुद्धि।
का कहीं भी कोई आधार नहीं मिलता है। फिर भी मैं अपने कामन बुद्धिमानों की बुद्धि! सभी बुद्धिमानों में बुद्धि नहीं होती। सेंस से, अपनी बुद्धि से कहता हूं कि आपके हाथ में गाड़ी का चाक अधिक बुद्धिमानों में तो केवल संग्रह होता है सूचनाओं का, शास्त्रों | होना चाहिए। का। जरूरी नहीं कि बुद्धिमान में बुद्धि भी हो।
वह जो बेचारा पहले बताया था, वह शास्त्र था। अब जो बता एक मित्र को कल ही पत्र लिख रहा था। तो उसे मैंने एक कहानी | रहा है, वह खुद है! लिखी है, वह मैं आपसे कहूं।
उस बुद्धिमान ने अपने मन में ही सोचा, उसने अपने मन में ही उसे मैंने लिखा है, एक सम्राट का बेटा था, जो मूढ़ था। और कहा कि यू कैन एजुकेट ए फूल, बट यू कैन नाट मेक हिम सम्राट परेशान हो गया। बुद्धिमानों से सलाह ली, तो उन्होंने कहा वाइज-मूढ़ को भी शिक्षित किया जा सकता है, लेकिन बुद्धिमान कि यहां तो कोई उपाय नहीं है। दूर देश किसी और राजधानी में एक नहीं बनाया जा सकता। विश्वविद्यालय है, वहां भेजो। भेज दिया गया।
सभी बुद्धिमानों में बुद्धि होती है, इस भ्रम में मत पड़ना। अधिक वर्षों की शिक्षा के बाद बेटे ने खबर भेजी कि अब मैं बिलकुल बुद्धिमानों में बुद्धि का सिर्फ धोखा होता है; उधार होता है। निष्णात हो गया, दीक्षित हो गया। सब शिक्षा मैंने पा ली। अब मुझे कृष्ण कहते हैं, बुद्धिमानों में बुद्धि! वापस लौटने की आज्ञा दे दी जाए। सम्राट ने उसे वापस बुला यह जो बुद्धि है, जिसके लिए कृष्ण जोर देते हैं, जिसे विजडम लिया। सम्राट भी खुश हुआ। वह सभी शास्त्रों का ज्ञाता होकर आ कहते हैं, प्रज्ञा। जरूरी नहीं है कि बुद्धिमान बहुत कुछ जानता हो। गया। वह ज्योतिष भी जानता है। वह भविष्यवाणी भी कर सकता यह जरूरी नहीं है। क्योंकि बहुत कुछ जानने वाला जरूरी रूप से है। वह लोगों के पीछे अतीत में भी देख सकता है। उन दिनों जो-जो बुद्धिमान नहीं होता। लेकिन बुद्धिमान जो जानता है, वह उसके विज्ञान था, वह सब जानकर आ गया।
जीवन को एक फूल की तरह खिला जाता है। . सम्राट बहुत खुश हुआ। उसने देश के सभी बुद्धिमानों को स्वागत एक और इस तरह की कहानी आपसे कहूं, जो खयाल में आ के लिए बुलाया। अपने बेटे के स्वागत का समारंभ किया। बड़े-बड़े | जाए। एक वृद्ध बुद्धिमान के संबंध में बड़ी खबर थी। एक बुद्धिमान आए। एक बूढ़ा भी आया। उस बूढ़े ने उस बेटे से कई विश्वविद्यालय के दो युवकों ने सोचा–पिछली कहानी में सवाल पूछे। पूछा कि तुमने क्या-क्या अध्ययन किया? तो वह विश्वविद्यालय के युवक की परीक्षा बूढ़े ने की; इस कहानी में बूढ़े
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