Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 387
________________ अदृश्य की खोज > उसके घर में रखी है, और फूल चढ़े हैं! फिर मैं वहीं बैठा रहा। उस ओंकार, सिर्फ ओम। बस, उतना हूं मैं। बाकी मैं नहीं हूं। बाकी तो आदमी ने आकर दरवाजा खोला। मुझे भीतर देखकर तो एकदम सब जगत है। सिर्फ ओम! पागल हो गया। उसने कहा, भीतर कैसे आए? क्योंकि मेरे घर में | अगर कष्ण से पछा जाए, तो वे कहेंगे. सब शास्त्र नष्ट हो जाएं, कभी मैंने किसी को प्रवेश नहीं करने दिया। मैंने उससे कहा कि अकेला ओम बच जाए, तो सब शास्त्र बच गए। और सब शास्त्र अब तो मैं भीतर आ गया। और अब चाहें तो बाहर निकाल दें। बच जाएं, अकेला ओम खो जाए, तो सब शास्त्र खो गए। लेकिन राज मेरे हाथ में आ गया है। और बड़े मजे की बात है, यह ओम बिलकुल ही अर्थहीन शब्द उस आदमी की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, इस गांव | है, मीनिंगलेस। इसमें कोई अर्थ नहीं है। इसमें कोई फिलासफी, में इतने लोग हैं, लेकिन किसी ने कभी मेरे हृदय में भीतर प्रवेश | कोई दर्शन नहीं है। यह शब्द एक अर्थ में बिलकुल एब्सर्ड है; इसमें करके नहीं देखा। मैं सिर्फ इसीलिए नाराज होता हूं कि लोग कुछ अर्थ नहीं है। और कृष्ण इतना मोह दिखलाते हैं कि वेदों में राधेश्याम का नाम ही ले लें। मेरी जिंदगी इसी में बीत रही है। ओंकार! बस, वेद में मैं ओम हूं! क्यों? बहुत पूरी प्रक्रिया है। लेकिन मैं प्रसन्न हूं। क्योंकि मैं जानता हूं कि शब्द के जगत में मैंने थोड़ी-सी बात आपसे कह दूं। बहुत-से राधेश्याम की ध्वनियों को संगृहीत करवा दिया है। और | - इस एक छोटे-से शब्द में, ओम में, भारत ने समस्त मंत्र-योग कोई मुझे चिढ़ाने को ही नाम लेता होगा राधेश्याम का, तो भी लेता | की साधना को बीज की तरह बंद कर दिया। जैसे आइंस्टीन का तो राधेश्याम का ही नाम है। अभी चिढ़ाता रहेगा, चिढ़ाता रहेगा, | रिलेटिविटी का फार्मूला है, छोटा-सा, दो-तीन शब्द, दो-तीन चिढ़ाता रहेगा; किसी दिन...! आखिर तुम भी तो चिढ़ाते-चिढ़ाते | अक्षर-पूरा हो जाता है। ऐसे भारत ने जो भी अंतर-जीवन में नदी छोड़कर-छोड़कर एक दिन मेरे घर के भीतर आ गए हो। अनुभव किया है, और जितनी विधियां मनुष्य ने विकसित की हैं 'वह आदमी जिस दिन मरा, उसी दिन गांव को पता चला। | सत्य की तरफ यात्रा करने की, वे सब की सब बीज-मंत्र की तरह लेकिन उसने मुझसे प्रार्थना की, और मेरे पैर पकड़कर प्रार्थना की। ओम में रख दी हैं। मैं तो बहुत छोटा था, वह तो बूढ़ा था। उसने पैर पकड़कर प्रार्थना | यह ओम अ, उ और म, इन तीन मूल ध्वनियों का जोड़ है। सारे की कि तम आ गए, सो ठीक। जब भी आना हो, दीवाल कदकर शब्दों का विस्तार ओम का विस्तार है। सब वेदों में ओम। ओम आ जाना। लेकिन किसी को बताना मत कि मेरे घर में राधेश्याम होगा. तो सब वेद पनः निर्मित हो सकते हैं। सीक्रेट-की आपके की प्रतिमा हैं। नहीं तो गांव में खबर हो गई, तो मुझे कोई चिढ़ाएगा हाथ में है। ये तीन अ, उ और म, अगर ये तीन हों, तो जगत के नहीं। बात ही समाप्त हो जाएगी। इस राज को राज ही रहने देना, सब शास्त्र निर्मित हो सकते हैं। लेकिन सब शास्त्र बच जाएं और जब तक मैं मर न जाऊं! कुंजी खो जाए, तो सब शास्त्र बेकार हो जाएंगे। ताले रह जाएंगे, बुद्ध कहते थे अपने भिक्षुओं से कि प्रार्थना शुरू करना, जगत चाबी खो गई। के मंगल की कामना के साथ। प्रार्थना पूरी करना, जगत के मंगल विज्ञान भैरव में शिव ने पार्वती को कहा है कि तू ज्यादा न पूछ। की कामना के साथ। शायद प्रार्थना तो बेकार चली जाए, लेकिन ज्यादा में तुझे अड़चन होगी। थोड़े में तुझे कह दूं। अउ म—यह मंगल का जो उदघोष है, वह रिकार्ड हो जाएगा। क्योंकि प्रार्थना तो जो ओम है, इसमें तू अ को भी भूल जा; इसमें तू म को भी भूल बेकार जा सकती है, उसको तो करने वाले की सामर्थ्य चाहिए, जा; वह जो बीच में बचता है, ओम के बीच में; अभी छूट जाए, लेकिन मंगल का उदघोष तो कोई भी कर सकता है। म भी छूट जाए, वह जो बीच में बचता है उ, उस उ में तू डूब जा। आकाश में मैं शब्द। सूक्ष्मतम जो आकाश में संगृहीत होता है | तो मैं तुझे उपलब्ध हो जाऊंगा। रूप-अदृश्य, अरूप कहना चाहिए-वह है शब्द, वह मैं हूं। | यह तो टेक्नीक की बात है। अगर आप उ में डूब सकें...। आप वेदों में ओंकार। कभी जोर से कहें उ, तो आपको पता चलेगा कि पूरी नाभि भीतर वेद में कितना क्या है! कहा जाए, करीब-करीब सब कुछ है।। । सिकुड़ गई। जितने जोर से उ कहेंगे, उतने ही जोर से नाभि पर जोर जो जगत में धर्म की दिशा में जो भी खोजा गया है, करीब-करीब पड़ेगा। और नाभि जीवन का मूल ऊर्जा-स्रोत है। उसको ठीक टैप सब है। लेकिन उस सबको छोड़कर कृष्ण कहते हैं, वेदों में करना जिसको आ जाए...। ओम, उसको ही हैमर, उसको ही चोट 361]

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