Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 393
________________ - आध्यात्मिक बल > उसे पता न चला कि मुर्दा है। उसने समझा कि कोई लकड़ी का | कहती है कि वह सारा का सारा अमृत जहर हो जाएगा, अगर एक टुकड़ा है, इसके सहारे मैं पार हो जाऊं। | बूंद जहर की पड़ गई। क्योंकि जहर से ही हम परिचित हैं; अमृत तलसीदास बरसा की अंधेरी रात में छज्जे से लटके हए सांप को से हम परिचित नहीं है। हमने जहर ही जाना है। हमने अमत जाना रस्सी समझकर ऊपर चढ़ गए! रस्सी दिखाई पड़ी; सांप दिखाई न | नहीं है। सच बात तो यह है कि अमृत की कसौटी और परीक्षा ही पड़ा। आंखें अंधी थीं। वासना ही क्या जो अंधा न कर जाए। यही है कि वह जहर को अमृत बना पाए। अन्यथा उसकी कोई कोई कह सकता है कि बड़े बहादुर रहे होंगे तुलसीदास। सांप कसौटी नहीं, कोई परीक्षा नहीं। को पकड़कर चढ़ गए; कम बहादुर हैं! लेकिन तुलसीदास नहीं चढ़े धर्म की कसौटी ही यही है कि आपके भीतर जो जहर है, वह सांप को पकड़कर। सांप को पकड़कर वासना चढ़ी। और वासना | | अमृत हो जाए। आपके भीतर जो यौन है, जो वासना है, कामना अंधी है। उसमें कोई बहादुरी नहीं होती। तुलसीदास नहीं चढ़े सांप | है, वह भी राम-अर्पित हो जाए, वह भी प्रभु-समर्पित हो जाए। वह को पकड़कर। तुलसीदास को सांप दिख जाता, तो भाग खड़े होते। ऊर्जा भी ब्रह्म की ऊर्जा बन जाए। वह दिखाई नहीं पड़ा। आंखें अंधी थीं। जब आंखें खुलीं, तब पता क्या होता होगा? जब कोई व्यक्ति धर्म से भरता होगा, तो चला कि क्या किया है! उसकी कामवासना की गति क्या होती होगी? उसकी कामवासना तीव्र वासना के क्षण में आप मूर्छित होते हैं, बेहोश होते हैं। की गति आमूल बदल जाती है। बेहोशी में बल का कोई अर्थ नहीं है। पागल होते हैं। पागलपन में अभी आप कामवासना से भरते हैं अचेत होकर, मूर्छित होकर, बल का कोई अर्थ नहीं है। विक्षिप्त होकर। निर्णय करते हैं हजार बार कि कामवासना से इसलिए कृष्ण उसे काट देते हैं। वे कहते हैं, कामवासना को बचूंगा, बचूंगा, बचूंगा! और आप निर्णय करते रहते हैं, और भीतर छोड़कर, बलवानों का मैं बल हूं। वासना संगृहीत होती चली जाती है। और एक क्षण आता है, और भी एक बात कहते हैं, इसी संदर्भ में। यह भी कहते हैं कि आपके निर्णय का पत्थर उठाकर फेंक दिया जाता है और वासना जो धर्म से भरा है, उसकी मैं कामवासना भी हूं। ये उलटे दिखाई | का झरना फूट पड़ता है। फिर कल से आप पछताएंगे और फिर पड़ेंगे वक्तव्य। बलवान के लिए कहा, जो कामवासना से रहित है, पछताकर यही करेंगे कि फिर वासना को दबाकर इकट्ठा करेंगे। उसका मैं बल हूं। लेकिन तब सवाल उठ सकता है कि फिर यह | और फिर वह वक्त आएगा कि आपका संकल्प तोड़कर वासना कामवासना का क्या होगा? कृष्ण कहते हैं, कामवासना भी मैं हूं, पुनः बह उठेगी। की. जो धर्म से भरा है। इसका क्या अर्थ होगा? धर्म से भरी अभी वासना का हम पर हमला होता है. वी आर दि विक्टिम्स। कामवासना का क्या अर्थ होगा? अगर इसे ठीक से समझें, तो हम वासना के मालिक नहीं हैं, जैसे ही व्यक्ति के जीवन में धर्म उतरता है, वैसे ही कामवासना | | शिकार हैं। वासना हमें पकड़ लेती है भूत-प्रेत की भांति; और वासना नहीं रह जाती। वैसे ही काम, सेक्स, यौन, यौन नहीं रह हमसे कुछ करा डालती है, जो कि शायद हमने अपने होश में कभी जाता। इसे थोड़ा समझना जरूरी है। न किया होता। और जब हम होश में आते हैं, तो पछताते हैं, दुखी कुछ ऐसा है कि जिस व्यक्ति के जीवन में धर्म का अवतरण | | और पीड़ित होते हैं कि हमने ऐसा सोचा, ऐसा किया! लेकिन फिर हुआ, उस व्यक्ति के जीवन का सभी कुछ धार्मिक हो जाता है। धर्म | वही होता है। इतना डुबाने वाला है कि सिर्फ आपकी बुद्धि को ही डुबाएगा, ऐसा | हम वासना के हाथ में धागे बंधी हुई गुड्डियों की तरह हैं, जो नहीं; सिर्फ आपके हृदय को ही डुबाएगा, ऐसा नहीं; आपके शरीर | नाचते हैं। प्रकृति हम से काम लेती है। हम प्रकृति के गुलाम हैं। को भी डुबा लेगा। धर्म इतनी बड़ी घटना है कि घटे तो आप पूरे के | प्रकृति आज्ञा देती है, और हम काम में लग जाते हैं। पूरे उसमें डूब जाएंगे। आपकी कामवासना कहां बचेगी! वह भी | धर्म से भरे हुए व्यक्ति को प्रकृति आज्ञा देना बंद कर देती है। उसमें डूब जाएगी। कहना चाहिए कि धर्म का अमृत ऐसा है कि । असल में जो व्यक्ति धर्म को उपलब्ध होता है, प्रकृति की अगर जहर की बूंद भी उसमें पड़ जाए, तो अमृत हो जाएगी। आज्ञा-सीमा के बाहर हो जाता है। प्रकृति उसे कोई भी आज्ञा नहीं हमें समझना बहुत कठिन होगा। हमारी सामान्य समझ तो यह दे सकती। और एक नई घटना घटती है कि धर्म को उपलब्ध व्यक्ति 367

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