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< अनन्य निष्ठा >
महासागर के मिलन की तरफ। तो मुझ परमात्मा में आसक्त मन | पागल, तू फिक्र कर रहा है उनकी, जो न ले सकेंगे; और तु अपनी वाला। तो प्रेम कहें, आसक्ति कहें, इससे फर्क नहीं पड़ता। फर्क | फिक्र कब करेगा, जो ले सकता है! इससे पड़ता है कि आप उसका उपयोग क्या कर रहे हैं। तो उस फकीर ने कहा कि जो गूगे हैं, वे तो गूंगे हैं ही; और जो
शब्द अपने आप में अर्थहीन हैं। सब कुछ उपयोग पर निर्भर | | बहरे हैं, वे तो बहरे हैं ही; लेकिन तेरे बहरेपन को हम क्या करें? करता है। शब्दों में खुद कोई अर्थ नहीं है। अर्थ तो हम डालते हैं | तेरे गूंगेपन को हम क्या करें? और हम देते हैं। और अर्थ बदल जाता है तत्काल. जैसे ही शब्द
__ कृष्ण, अर्जुन का गूंगापन, बहरापन टूट जाए, उसकी पीठ मुड़ का आयाम बदलता है, तब अर्थ बदल जाता है।
जाए. वह परमात्मा की तरफ उन्मख हो जाए क्योंकि अभी तक यह शर्त है कृष्ण की कि परमात्मा की तरफ आ रहे मन वाला | | अर्जुन की जो उन्मुखता है, वह युद्ध से बचने की है। किसी तरह अगर तू है, तो मुझे सुन। क्योंकि वे जो कहने जा रहे हैं, वह जो युद्ध से बच जाए। यह हिंसा न हो। बस, इससे ज्यादा उसकी परमात्मा की तरफ पीठ करके चल रहा है, वह न सुन सकेगा; | | उत्सुकता नहीं है। उसके किसी काम का नहीं है। वह बहरे से बात करनी हो जाएगी। | यह बड़े मजे की बात है, अर्जुन किसी ब्रह्मज्ञान को लेने कृष्ण उसका कोई अर्थ नहीं है।
| के पास गया नहीं था। ये कृष्ण जबर्दस्ती उसको ब्रह्मज्ञान दिए देते अभी मैं एक झेन फकीर का जीवन पढ़ता था। एक युवक आया हैं! कारण है। क्योंकि कृष्ण के पास जो है, वही दे सकते हैं। आप है उस फकीर के पास और उस युवक ने कहा कि मैंने सुना है, बुद्ध अगर अमृत के सागर के पास विष लेने भी जाएं, तो भी अमृत का ने कहा है कि मेरी बात सब के उपयोग की है। धर्म सब के लिए सागर क्या कर सकता है? वह आपको अमृत ही दे देगा। भला है। लेकिन, उस युवक ने कहा, इसमें मुझे बड़ी शंका होती है। मुझे. आप पीछे पछताएं कि गलत जगह पहुंच गए। फंस गए! शंका होती है कि बुद्ध के वचन अगर सब के उपयोग के लिए हैं, अर्जुन तो एक बहुत छोटा-सा सवाल लेकर गया था। उसने तो बहरों का क्या होगा? क्योंकि बहरे तो सुन ही न सकेंगे, तो सोचा भी न होगा कि इतनी बड़ी गीता उससे पैदा होगी। उसने सोचा उनके लिए उपयोग कैसे होगा? बुद्ध खड़े भी रहें, अंधे तो देख ही | | भी न होगा कि कृष्ण ज्ञान की इतनी गहराइयों में उसे ले जाएंगे। न सकेंगे, तो सत्संग कैसे होगा?
मगर कृष्ण की भी अपनी मजबूरी है। कृष्ण के पास जो है, वे __ उस फकीर ने क्या किया? उस फकीर ने वही किया, जो फकीरों | वही दे सकते हैं। आगे वे कुछ ऐसी गहन बातें कहने वाले हैं, जो को करना चाहिए। पास में पड़ा था एक डंडा, उसने जोर से उस कि अर्जुन अगर पूरी तरह उन्मुख हो, तो ही समझ पाएगा, इसलिए आदमी के पेट में डंडे का जोर से धक्का दिया। उस आदमी ने चीख | | यह शर्त लगाई है। मारी। उसने कहा, आप यह क्या करते हैं? तो उस फकीर ने कहा, अहा! मैं तो समझता था कि तुम गंगे हो। तो तुम गूंगे नहीं हो, बोलते हो! जरा मेरे पास आओ। तो वह आदमी डरता हआ पास
ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः । आया। उसने कहा, अहा! मैं तो सोचता था कि तुम लंगड़े हो। यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते ।।२।। लेकिन तुम तो चलते हो!
| मैं तेरे लिए इस रहस्यसहित तत्वजान को संपर्णता से कहंगा उस आदमी ने कहा, इन बातों से क्या मतलब जो मैं पूछने आया कि जिसको जानकर संसार में फिर और कुछ भी जानने हूं! तो उस फकीर ने कहा कि तुम इसकी फिक्र छोड़ो, दूसरे अंधे,
योग्य शेष नहीं रहता है। लूले और गूगों की। अगर तुम गूंगे नहीं हो, लूले नहीं हो, अंधे नहीं हो, तो कम से कम तुम लाभ ले लो। और जब कोई अंधे आएंगे, तब उनसे मैं निपट लूंगा। जब कोई गंगे आएंगे, तब उनसे मैं निपट व हुत कुछ है, जो जान लिया जाए, तब भी सब कुछ लूंगा। तुम फिक्र छोड़ो। इतना तय है कि तुम अंधे, लूले, लंगड़े, प जानने को शेष रह जाता है। बहुत कुछ है, जो पूरा का गूंगे नहीं हो। तुमने क्या लाभ लिया बुद्ध के वचनों का? उसने | पूरा जान लिया जाए, तो भी जो जानने जैसी चीज है, कहा, अभी तक तो कुछ नहीं लिया! तो उस फकीर ने कहा कि वह शेष ही रह जाती है।
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