Book Title: Gita Darshan Part 03
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 364
________________ गीता दर्शन भाग-3 - के फूल के पास खड़े होकर सिवाय परमात्मा की निंदा के और | भाइयों को संन्यास के जगत में तो मुझे प्रणाम करना पड़ेगा। क्योंकि कुछ न कर पाएगा। क्योंकि वह कहेगा, जहां इतने कांटे हैं, वहां | | वे मुझसे अग्रणी हो गए। उनके संन्यास की यात्रा बड़ी हो गई। मुश्किल से एक फूल खिलता है। फूल बेकार हो गया इतने कांटों अपने से छोटों को और मैं नमस्कार करूं, यह न हो सकेगा! तो की वजह से। अगर हम विधायक चित्त के आदमी से पूछे, तो वह | उसने सोचा, ऐसी भी क्या जरूरत है। मैं खुद ही साधना क्यों न कहेगा, आश्चर्य! प्रभु का धन्यवाद है। वह गुलाब के पास खड़े कर लूं! होकर घुटने टेककर प्रभु की प्रार्थना में लीन हो जाएगा। और वह बलशाली व्यक्ति था। कमजोर तो हारते ही हैं, कभी-कभी कहेगा, अदभुत है तेरी लीला कि जहां इतने कांटे हैं, वहां भी फूल बलशाली बुरी तरह हारते हैं। बल ही उनके हारने का कारण हो पैदा होता है। चमत्कार है, मिरेकल है। जाता है। तो विधायक चित्त जिस व्यक्ति के पास है, वह प्रभु की खोज तो बाहुबली एकांत में जाकर गहन तपश्चर्या में, सघन पर निकलता है। तपश्चर्या में लीन हुए। शायद इस पृथ्वी पर कम ही लोगों ने ऐसी लेकिन कृष्ण फिर एक और बात कहते हैं कि करोड़ लोग प्रयत्न तपश्चर्या की होगी और ऐसी साधना की होगी। सब कुछ दांव पर करें, तो कभी एक मुझे उपलब्ध होता है। लगा दिया। सब कुछ। बस, एक छोटी-सी चीज छोड़कर; वह इसका क्या अर्थ होगा? इसे भी ठीक से समझ लें। मैं पीछे खड़ा रहा। जो लोग भी प्रभु की दिशा में यात्रा शुरू करते हैं, करोड़ में से उनकी तपश्चर्या की ख्याति कोने-कोने तक पहुंच गई। जहां भी एक ही समर्पण करता है। करोड़ में से एक यात्रा करता है। अगर लोग सोचते-समझते थे, वहां तक बाहुबली की खबर पहुंची। और करोड़ यात्रा करें, तो एक समर्पण करता है। बाकी लोग संकल्प | लोग हैरान हए कि इतना पवित्रतम व्यक्ति. इतना शद्धतम व्यक्ति, करते हैं, समर्पण नहीं। बाकी लोग कहते हैं, हम प्रभु को पाकर सब कुछ दांव पर लगाए खड़ा है, फिर भी कोई दर्शन नहीं हो रहा रहेंगे। तू कहां है, हम खोजकर रहेंगे। हम अपनी पूरी ताकत | है सत्य का! क्या बात है? लगाएंगे। जीवन लगा देंगे दांव पर, लेकिन तुझे पाकर रहेंगे। | ऋषभ के पास भी खबर पहुंची। ऋषभ मुस्कुराए और उन्होंने __ कभी एक आदमी ऐसा होता है, जो कहता है कि मेरी क्या | बाहुबली की एक बहन को, जो दीक्षित हो गई थी, बाहुबली के पास सामर्थ्य ! मैं असहाय हूं। मेरी कोई शक्ति नहीं है। मैं तुझे कैसे खोज भेजा और कहा, बस, जरा-सा तिनका अटका हुआ है। लेकिन वह पाऊंगा! अगर तू ही मुझे खोज ले, तो शायद घटना घट जाए। मैं तिनका पहाड़ों से भी भारी है। सब दांव पर लगा दिया है, सिर्फ मैं तुझे कैसे खोज पाऊंगा! मेरी शक्ति बड़ी छोटी है। एक छोटी-सी को बचा लिया है! बूंद हूं। न मालूम किस रेगिस्तान में खो जाऊं! अगर सागर ही मुझ | और आप कुछ भी दांव पर न लगाएं, सिर्फ मैं को दांव पर लगा तक आ जाए, तो ठीक। अन्यथा मैं सागर को खोज पाऊं, इसकी | | दें, तो हल हो जाए। लेकिन सब दांव पर लगा दें–धन, दौलत, कोई संभावना नहीं है। यश, शरीर, मन–लेकिन एक पीछे मैं बच जाए, तो सब बेकार जो लोग प्रभु की खोज पर निकलते हैं, वे भी अस्मिता को, है। वह दांव पर लगाने वाला पीछे बच जाए, तो आप परमात्मा से अहंकार को लेकर निकलते हैं। वे कहते हैं, हम प्रभु को पाकर संघर्ष कर रहे हैं; आप परमात्मा से प्रार्थना नहीं कर रहे हैं। तो आप रहेंगे। साधना करेंगे। योग करेंगे। आसन करेंगे। ध्यान करेंगे। सत्य को भी विजय करने निकले हैं; सत्य के साथ एक होने नहीं लेकिन पीछे वह मैं खड़ा रहेगा। निकले हैं। यह कोई प्रेम की यात्रा नहीं है; यह कोई युद्ध, आक्रामक जैन परंपरा में एक बहुत मीठी कथा है। ऋषभ के सौ पुत्र थे। चित्त की दशा है। अनेक पुत्रों ने ऋषभ से दीक्षा ले ली। वे संन्यास की यात्रा पर | सब दांव पर है बाहुबली का। कुछ बचा नहीं लगाने को। वह निकल गए। बाहुबली भी ऋषभ के एक पुत्र थे। उन्होंने जरा देर की भी चिंता में पड़ा, अब और क्या करने को बचा है? जितने उपवास दीक्षा लेने में; कुछ सोच-विचार किया। लेकिन तब तक बाहुबली | कहे हैं तीर्थंकरों ने, सब पूरे कर डाले। जितने जागरण के लिए कहा से छोटे बेटे दीक्षित हो गए। और जब बाहुबली के मन में दीक्षा का | है, उतनी रातें जागकर बिता दीं। कहा है खड़े रहो, तो महीनों खड़ा खयाल आया, तो उसके अहंकार को बड़ी पीड़ा हुई कि अपने छोटे रहा हूं। कहा है कि चित्त को एकाग्र कर लो, तो चित्त एकाग्र है। 338/

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