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4 गीता दर्शन भाग-3
उठाया जा सकता है। धीरे-धीरे अभ्यास किया जा सकता है। कोई जिम्मा नहीं है। छलांग लगाने वाला मामला बहुत उलटा है। कभी-कभी कोई | लेकिन बुद्ध आगे बढ़े चले जाते हैं। अंगुलिमाल और हैरान आदमी छलांग लगा पाता है।
होता है। ठिठके भी नहीं वे। एक दफे उसकी बात के लिए रुककर बुद्ध के जीवन में उल्लेख है कि बुद्ध एक गांव से गुजरते हैं। सोचा भी नहीं कि विचार कर लें। वे आगे ही बढ़ते चले आते हैं। लोग कहते हैं, मत जाओ, आगे एक डाकू है, वह हत्या कर रहा है | अंगुलिमाल कहता है कि देखो, सुना? समझे कि नहीं? बहरे तो लोगों की। रास्ता निर्जन हो गया है। वह अंगुलिमाल किसी को भी नहीं हो! मार देता है। तुम मत जाओ इस रास्ते से। बुद्ध कहते हैं, अगर मुझे | बुद्ध कहते हैं, भलीभांति सुनता हूं, समझता हूं। अंगुलिमाल पता न होता, तो शायद मैं दूसरे रास्ते से भी चला जाता। लेकिन कहता है, रुक जाओ। मत बढ़ो! बुद्ध कहते हैं, अंगुलिमाल, मैं अब जब कि मुझे पता है, इसी रास्ते से जाना होगा। लोग कहते हैं, बहुत पहले रुक गया। तब से मैं चल ही नहीं रहा हूं। मैं तुझसे लेकिन किसलिए? बुद्ध कहते हैं, इसलिए कि वह बेचारा प्रतीक्षा कहता हूं, अंगुलिमाल, तू रुक जा, मत चल। अंगुलिमाल बोला करता होगा। लोग मिल न रहे होंगे; उसको बड़ी तकलीफ होती | कि बहरे तो नहीं हो, लेकिन पागल मालूम होते हो। मैं खड़ा हुआ होगी। कोई गर्दन तो मिलनी चाहिए गर्दन काटने वाले को! और | | हूं। मुझ खड़े हुए को कहते हो कि रुक जाओ! तुम चल रहे हो। अपनी गर्दन का इतना भी उपयोग हो जाए कि किसी को थोड़ी शांति | चलते हुए को कहते हो कि खड़े हो! मिल जाए, तो बुरा क्या है! बुद्ध आगे बढ़ जाते हैं।
तो बुद्ध ने कहा, मैंने जब से जाना कि मन ही चलता है, और अंगुलिमाल देखता है, कोई आ रहा है दूर से, तो अपने पत्थर | जब मन रुक जाता है, तो सब रुक जाता है। तेरा मन बहुत चल पर, अपने फरसे पर धार रखने लगता है। बहुत दिन हो गए, जंग रहा है। इतनी दूर से तू मुझे देख रहा है, और तेरा मन चल रहा है। खा गया फरसा। कोई निकलता ही नहीं रास्ते से। उसने कसम खा फरसे पर धार रख रहा है, तेरा मन चल रहा है। अभी तू सोच रहा ली है कि एक हजार लोगों की गर्दन काटकर, उनकी अंगुलियों का | है, तेरा मन चल रहा है। मारूं, न मारूं। यह आदमी लौट जाए, हार बनाना है, इसलिए वह अंगुलिमाल उसका नाम पड़ गया। आए। तेरा मन चल रहा है। तेरे मन के चलने को मैं कहता हूं,. उसने नौ सौ निन्यानबे आदमी मार दिए, एक की ही दिक्कत है। अंगुलिमाल, तू रुक जा। उसी में वह अटका हुआ है। कोई निकलता ही नहीं! रास्ता ___ अंगुलिमाल ने कहा, मेरी किसी की बात मानने की आदत नहीं करीब-करीब बंद हो गया है। किसी को आते देखकर, अति प्रसन्न है। तो ठीक है। तुम आगे बढ़ो, मैं भी फरसे पर धार रखता हूं। वह होकर वह अपने फरसे पर धार रखता है।
फरसे पर धार रखता है; बुद्ध आगे आ जाते हैं। बुद्ध सामने खड़े लेकिन जैसे-जैसे बुद्ध करीब आते हैं, और जैसे-जैसे वह साफ हो जाते हैं। वह अपना फरसा उठाता है। देख पाता है, उसको थोड़ा लगता है कि निरीह आदमी, सीधा-सादा बुद्ध कहते हैं, लेकिन मरते हुए आदमी की एक बात पूरी कर आदमी, शांत आदमी! इस बेचारे को शायद पता नहीं है कि यहां सकोगे? अंगुलिमाल ने कहा, बोलो। कोई बात पूरी करने के लिए अंगुलिमाल है और रास्ता निर्जन हो गया है। इसको एक चेतावनी तो हजार आदमी मैंने काटे! तुम बोलो; बात पूरी करूंगा। मेरे वचन दे देनी चाहिए। इसको एक दफा कह देना चाहिए कि तू खतरनाक का भरोसा कर सकते हो। बुद्ध ने कहा, वह मैं जानता हूं। कोई रास्ते पर आ रहा है।
दिया गया वचन ही हजार आदमी मारने के लिए उसको मजबूर __ अंगुलिमाल के पास जब बुद्ध पहुंच जाते हैं, तो वह चिल्लाता किया है। तो बुद्ध ने कहा, इसके पहले कि मैं मरूं, एक छोटी-सी है कि हे भिक्षु! लौट जा वापस। शायद तुझे पता नहीं, तू भूल से बात जानना चाहता हूं। यह सामने जो वृक्ष लगा है, इसके दो-चार
आ गया है। इस मार्ग पर कोई आता नहीं। और तेरी शांत मुद्रा को पत्ते मुझे काटकर दे दो। देखकर, तेरी धीमी गति को देखकर, तेरे संगीतपूर्ण चलने को । उसने फरसा वृक्ष में मारा। दो-चार पत्ते क्या, दो-चार शाखाएं देखकर मुझे लगता है कि तुझे माफ कर दूं। तू लौट जा। एक शर्त, कटकर नीचे गिर गईं। बुद्ध ने कहा, यह आधी बात तुमने पूरी कर अगर तू लौट जाए, तो मैं फरसा न उठाऊं। लेकिन अगर एक कदम दी। अब इनको वापस जोड़ दो। उस अंगुलिमाल ने कहा, तुम भी आगे बढ़ाया, तो तू अपने हाथ से मरने जा रहा है। फिर मेरा निश्चित पागल हो। तोड़ना संभव था, जोड़ना संभव नहीं है।
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