________________
< गीता दर्शन भाग-3
समता को उपलब्ध होना आसान है, प्रतिकूल के बीच समता को | मन को स्वच्छंद छोड़कर पाया है। जिसने मन को वश में किया है, उपलब्ध होना अति कठिन है।
वह अहिंसावादी युद्ध से दूर भागेगा। वह कहेगा, कहीं कोई मेरी इसलिए कृष्ण कहते हैं, मन को वश में करके, अनुकूल स्थिति | लगाम टूट जाए! युद्ध का उपद्रव, कोई घोड़ा छूट जाए! कोई झंझट बनाकर, शांत हो जाना सरल है।
हो जाए! तो मेरी सारी व्यवस्था बनी बनाई, कभी भी विशृंखल हो __ अगर चारों तरफ हरियाली भरे वृक्ष हों, पक्षियों के मधुर गीत सकती है। हों, सुबह की ताजी हवा हो, सूरज का उठता हुआ, जागता हुआ इसलिए कृष्ण कहते हैं, सरल है। और सरल से ही जाना उचित नया रूप हो, तो उसके बीच बैठकर ध्यान करना आसान है। बाजार | है। सरल का अर्थ ही यही है कि जो अधिकतम लोगों के लिए हो, चारों तरफ उपद्रव चल रहा हो, आग लगी हो, उसके बीच | सुगम पड़ेगा, अनुकूल पड़ेगा, स्वभाव के साथ पड़ेगा। सहज है। बैठकर, प्रतिकूल के बीच ध्यान में उतरना कठिन है।
लेकिन तीसरी बात, और महत्वपूर्ण, कृष्ण कहते हैं, यह मेरा लेकिन असंभव नहीं है। ऐसे लोग हैं, जो मकान में आग लगी | मत है। ऐसा कहने की क्या जरूरत है कृष्ण को कि यह मेरा मत हो, और ध्यान में उतर सकते हैं। ऐसे लोग हैं, जो बीच बाजार में है? कह सकते थे, यह सत्य है। सत्य और मत का थोड़ा फर्क बैठकर ध्यान में उतर सकते हैं।
समझ लें। कृष्ण उन लोगों में से ही हैं। नहीं तो कृष्ण युद्ध के मैदान पर जाने | ट्रथ का मतलब होता है, ऐसा है, मैं कहूं या न कहूं। कोई जाने को राजी न होते। राजी हो जाते हैं, क्योंकि कोई अड़चन नहीं है। न जाने; कोई माने न माने—ऐसा है। मत का अर्थ होता है, जैसा वहां भी चित्त वैसा ही रहेगा। युद्ध होगा, लाशें पट जाएंगी, खून है, उसके बाबत मेरा विचार, ओपीनियन अबाउट दि टूथ, सत्य के की धाराएं बहेंगी—चित्त वैसा ही रहेगा। इसीलिए तो वे अर्जुन को संबंध में मेरा विचार। सत्य नहीं, मेरा विचार। विचार में भूल-चूक कह पाते हैं कि अर्जुन, तू बेफिक्री से काट, कोई कटता ही नहीं। | हो सकती है। विचार में कमी भी हो सकती है। विचार में बस, तू एक खयाल छोड़ दे कि तू काटने वाला है, बस। कटने | | अभिव्यक्ति-दोष भी हो सकता है। विचार में भाषा के कारण, जो वाला कोई भी नहीं है यहां। तेरी भ्रांति भर तू छोड़ दे कि मैं किसी | कहा गया, वह अन्यथा भी समझा जा सकता है। शब्द बोलते ही को मार डालूंगा, कि कोई मेरे द्वारा मार डाला जाएगा, कि मेरे द्वारा आपके हाथ में चला जाता है। मैंने शब्द बोला, तो आपके हाथ में किसी को दुख पहुंच जाएगा।
चला जाता है। व्याख्या आप करेंगे। __ कृष्ण कहते हैं, दुख सदा अपने ही द्वारा पहुंचता है, किसी और इसलिए कृष्ण बहुत ही ठीक बात कह रहे हैं। वे कहते हैं, यह के द्वारा नहीं। तू भर यह खयाल छोड़ दे कि तेरे द्वारा! अन्यथा तेरा | मेरा मत है अर्जुन। मत का अर्थ है कि जैसे ही सत्य को शब्द दिया यह खयाल तुझे दुख पहुंचा जाएगा, और कुछ नहीं होगा। सब | गया, वह मत हो जाता है, सत्य नहीं रह जाता। सत्य जब निःशब्द अपने ही कारण से मरते हैं, निमित्त कुछ भी बन जाए। तू निमित्त होता है, तभी सत्य होता है। से ज्यादा नहीं होगा, कर्ता नहीं होगा। इसलिए तू मारने-काटने की इसलिए जो लोग शब्दों में सत्य का आग्रह करते हैं, उनको सत्य फिक्र छोड़ दे। और फिर कौन कब कटता है! शरीर ही कटता है। | का कोई भी पता नहीं है। शब्दों में जो सत्य का आग्रह करता है, वह जो भीतर है, अनकटा रह जाता है। उसे तो शस्त्र भी नहीं छेद | उसे सत्य का कोई भी पता नहीं है। शब्दों में ज्यादा से ज्यादा, बस पाते; उसे तो कोई काट नहीं पाता। आग जला नहीं पाती, पानी डुबा मत की बात कही जा सकती है, कि मेरा ओपीनियन है अर्जुन। । नहीं पाता।
फर्क है बहुत। अगर कहें कि सत्य है यह, तो मानने का आग्रह यह जो कृष्ण ऐसा कह सकते हैं, ऐसा जानते हैं इसलिए। | वजनी हो जाता है। मत है यह, तो मानो न मानो, स्वतंत्रता कायम इसलिए युद्ध के मैदान पर खड़े हो सके हैं। ये वे थोड़े-से जो लोग रहती है। सत्य को तो मानना ही पड़ेगा। मत को अस्वीकार भी हैं करोड़ों में, उनमें से एक आदमी युद्ध के मैदान पर खड़ा हो | सकता है। नहीं तो अहिंसावादी भागेगा युद्ध के मैदान से। सिर्फ | फिर और भी कारण हैं। जैसे ही सत्य को हम प्रकट करते हैं, वही अहिंसावादी युद्ध के मैदान पर भी खड़ा होकर अहिंसक हो वह मत हो जाता है। इसलिए सभी शास्त्र मत हैं, ओपीनियन का सकता है, जिसने मन को वश में करने की विधि से पार नहीं पाया. | संग्रह हैं। कोई शास्त्र सत्य का संग्रह नहीं है, न हो सकता है।
किया जा
1272