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<< गीता दर्शन भाग-3 -
स्वर्ग सपने हैं। स्वर्ग कहीं हैं ही नहीं। भटकना मत। जिसने स्वर्ग पार कैसे पहुंचूंगा? उस पार कैसे पहुंचूंगा? क्या है विधि? क्या है चाहा, वह नरक में पहुंच गया। स्वर्ग की चाह नरक में ले जाने का | | मार्ग? जरा नाव तो खोलो, तुम जरा पाल तो खोलो। हवाएं तत्पर मार्ग है, बुद्ध कहते, यह बात ही मत कर। अर्जुन का तालमेल नहीं | हैं तुम्हें ले जाने को। बैठ सकता था बुद्ध से।
प्रभु तो प्रत्येक को मोक्ष तक ले जाने को तत्पर है। लेकिन हम कृष्ण एक-एक कदम अर्जुन को...इसको कहते हैं, परसुएशन। किनारा इतने जोर से पकड़ते हैं! लोग कहते हैं कि प्रभु जो है, वह अगर गीता में हम कहें कि इस जगत में परसुएशन की, फुसलाने ओम्नीपोटेंट है, सर्वशक्तिशाली है। मुझे नहीं जंचता। हम जैसे की, एक व्यक्ति को इंच-इंच ऊपर उठाने की जैसी मेहनत कृष्ण ने छोटी-छोटी ताकत के लोग भी किनारे को पकड़कर पड़े रहते हैं, की है, वैसी किसी शिक्षक ने कभी नहीं की है। सभी शिक्षक सीधे | | हमको खींच नहीं पाता। हमारी पोटेंसी ज्यादा ही मालूम पड़ती है। अटल होते हैं। वे कहते हैं, ठीक है, यह बात है। खरीदना है? नहीं | नहीं, लेकिन उसका कारण दूसरा है। असल में जो ओम्नीपोटेंट खरीदना, बाहर हो जाओ।
| है, जो सर्वशक्तिशाली है, वह शक्ति का उपयोग कभी नहीं करता। शिक्षक सख्त होते हैं। शिक्षक को मित्र की तरह पाना बड़ा | शक्ति का उपयोग सिर्फ कमजोर ही करते हैं। सिर्फ कमजोर ही मुश्किल है। अर्जुन को शिक्षक मित्र की तरह मिला है, सखा की शक्ति का उपयोग करते हैं। जो पूर्ण शक्तिशाली है, वह उपयोग तरह मिला है। उसके कंधे पर हाथ रखकर बात चल रही है। नहीं करता। वह प्रतीक्षा करता है कि हर्ज क्या है! आज नहीं कल; इसलिए कई दफा वह भूल में भी पड़ जाता है और व्यर्थ के सवाल इस युग में नहीं अगले युग में; इस जन्म में नहीं अगले जन्म में; भी उठाता है।
कभी तो तुम नाव खोलोगे, कभी तो तुम पाल खोलोगे, तब हमारी एक फायदा होता, बुद्ध जैसा आदमी मिलता, अगर बोधिधर्म हवाएं तुम्हें उस पार ले चलेंगी। जल्दी क्या है? जल्दी भी तो जैसा मिलता, तो बोधिधर्म तो हाथ में डंडा रखता था। वह तो अर्जुन | कमजोरी का लक्षण है। इतनी जल्दी क्या है ? समय कोई चुका तो को एकाध डंडा मार देता खोपड़ी पर, कि तू कहां की फिजूल की | नहीं जाता! बकवास कर रहा है!
लेकिन परमात्मा का समय भला न चुके, आपका चुकता है। वह लेकिन कृष्ण उसकी बकवास को सुनते हैं, और प्रेम से उसे अगर जल्दी न करे, चलेगा। उसके लिए कोई भी जल्दी नहीं है, फुसलाते हैं, और एक-एक इंच उसे सरकाते हैं। वे कहते हैं, कोई क्योंकि कोई टाइम की लिमिट नहीं है, कोई सीमा नहीं है। लेकिन फिक्र न कर, अगर नहीं भी मिला वह किनारा, तो बीच में टापू हैं हमारा तो समय सीमित है और बंधा है। हम तो चुकेंगे। वह प्रतीक्षा स्वर्ग नाम के, उन पर तू पहुंच जाएगा। वहां बड़ा सुख है। खूब कर सकता है अनंत तक, लेकिन हमारी तो सीमाएं हैं, हम अनंत सुख भोगकर, नाव में बैठकर वापस लौट आना। अगर तुझे सुख तक प्रतीक्षा नहीं कर सकते हैं। न चाहिए हो, तो.बीच में गुरुजनों के टापू हैं, जिन पर गुरुजन लेकिन बड़ा अदभुत है। हम भी अनंत तक प्रतीक्षा करते हुए निवास करते हैं; उनके गुरुकुल हैं; तू उनमें प्रवेश कर जाना। वहां मालूम पड़ते हैं। हम भी कहते हैं कि बैठे रहेंगे। ठीक है। जब तू ही तू अपनी साधना को आगे बढ़ा लेना।
खोल देगा नाव, जब तू ही पाल को उड़ा देगा, जब तू ही झटका लेकिन एक आकांक्षा कृष्ण की है कि तू यह किनारा तो छोड़, देगा और खींचेगा...। फिर आगे देख लेंगे। नहीं कोई टापू हैं, नहीं कोई बात है। तू किनारा और कई दफे तो ऐसा होता है कि झटका भी आ जाए, तो हम तो छोड़। एक दफे तू किनारा छोड़ दे, किसी भी कारण को मानकर | और जोर से पकड़ लेते हैं, और चीख-पुकार मचाते हैं कि सब
अभी जरा साहस जुट जाए, तू भरोसा कर पाए और यात्रा पर | भाई-बंधु आ जाओ, सम्हालो मुझे। कोई ले जा रहा है! कोई खींचे निकल जाए तो आगे की यात्रा तो प्रभु सम्हाल लेता है। लिए जा रहा है!
रामकृष्ण जगह-जगह कहे हैं, तुम नाव तो खोलो, तुम पाल तो कृष्ण अर्जुन को देखकर ये उत्तर दिए हैं, यह ध्यान में रखना। उडाओ। हवाएं तो ले जाने को खद ही तत्पर हैं। लेकिन तम नाव धीरे-धीरे वे ये उत्तर भी पिघला देंगे, गला देंगे। वह राजी हो जाए ही नहीं खोलते हो, तुम पाल ही नहीं खोलते! तुम किनारे से ही छलांग के लिए, बस इतना ही। जंजीरें बांधे हुए, नाव को बांधे हुए पड़े हो और चिल्ला रहे हो, उस आज इतना। कल सुबह हम बात करेंगे।
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