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- तंत्र और योग
और कृष्ण जैसे लोगों की चेष्टा यह है कि हम सपना भी तोड़ेंगे, | जाना ही किनारा है। लेकिन वह उलटबांसी की बात हो गई। विकल्प भी न देंगे, ताकि तुम उसको देख लो, जो सबको देखता | मझधार में डूब जाना ही किनारा है। लेकिन वह उलटबांसी की बात है। देखने को बंद करो। दृश्य को छोड़ो। तुम एक दृश्य की जगह | | हो गई, वह पैराडाक्स हो गया। किनारा तो हम कहते हैं, जो दूसरा दृश्य मांगते हो। अगर कृष्ण की भाषा में मैं आपसे कहूं, तो | मझधार में कभी नहीं होता। किनारा तो किनारे पर होता है। कृष्ण कहेंगे, दूसरा किनारा है ही नहीं। यह किनारा भी झूठ है; और | ___ लेकिन यह किनारा भी छोड़ दो, वह किनारा भी छोड़ दो, बीच झूठ के विकल्प में दूसरा किनारा नहीं होता। अगर यह किनारा सच में कौन रह जाएगा? दोनों किनारे जहां छूट गए–संसार भी नहीं होता, तो दूसरा किनारा सच हो सकता था। एक किनारा झूठ और है, मोक्ष भी नहीं है—फिर वासना की धारा को बहने का उपाय नहीं एक सच नहीं हो सकता। दोनों ही किनारे सच होंगे, या दोनों ही रह जाएगा। वासना की नदी फिर बह न सकेगी, और कामना की झूठ होंगे।
नावें फिर तैर न सकेंगी, और अहंकार के सेतु फिर निर्मित न हो आप समझते हैं। एक नदी का एक किनारा सच और एक झठ | सकेंगे। तब एक तरह की डूब, एक तरह का विसर्जन, एक तरह हो सकता है? या तो दोनों ही झूठ होंगे, या दोनों ही सच होंगे। की मक्ति. एक तरह का मोक्ष. एक तरह की स्वतंत्रता फलित होती अगर दोनों झूठ होंगे, तो नदी भी झूठ होगी। अगर दोनों ही सच | | है। और वही उपलब्धि है। होंगे, तो नदी भी सच होगी। अब ऐसा समझ लें कि तीनों ही सच लेकिन अर्जुन कैसे समझे उसे? कृष्ण कोशिश करेंगे। वे अभी, होंगे, या तीनों ही झूठ होंगे। तीसरा उपाय नहीं है, अन्य कोई उपाय | दूसरा किनारा है, सही है, पहुंचेगा तू, आश्वासन देता हूं मैं इस नहीं है। ऐसा नहीं हो सकता कि नदी सच हो और किनारे झूठे हों। तरह की बातें करेंगे। यह किनारा तो छूटे कम से कम; फिर वह तो नदी बहेगी कैसे? और ऐसा भी नहीं हो सकता कि एक किनारा | | किनारा तो है ही नहीं। और जिसका यह छूट जाता है, उसका वह सच और दूसरा झूठा हो। नहीं तो दूसरे झूठे किनारे का सहारा न | | भी छूट जाता है। मिलेगा। तीनों सच होंगे, या तीनों झूठ होंगे।
कई बार एक झूठ छुड़ाने के लिए दूसरा झूठ निर्मित करना पड़ता अब अर्जुन कहता है, यह किनारा तो झूठ है। कृष्ण, मैं समझ है, इस आशा में कि झूठ छोड़ने का अभ्यास तो हो जाएगा कम से गया, तुम्हारी बातें कहती हैं। तुम पर मैं भरोसा करता हूं। और मेरी | कम। फिर दूसरे को भी छुड़ा लेंगे। जिंदगी का अनुभव भी कहता है, यह किनारा झूठ है। दुख ही पाया | और दो तरह के शिक्षक हैं पृथ्वी पर। एक, जो कहते हैं, जो है इस किनारे पर, कुछ और मिला नहीं। इस वासना में, इस मोह | तुम्हारे हाथ में है, वह झूठ है। और हम तुम्हारे हाथ में कुछ देने को में. इस राग में पीड़ा ही पाई. नर्क ही निर्मित किए। मान लिया, राजी नहीं। क्योंकि कुछ भी हाथ में होगा, झूठ होगा। ऐसे शिक्षक समझ गया। लेकिन दूसरा किनारा सच है न!
सहयोगी नहीं हो पाते। कृष्ण क्या कहेंगे? अगर वे कह दें, दूसरा किनारा भी नहीं है, दूसरे शिक्षक ज्यादा करुणावान हैं। वे कहते हैं, तुम्हारे हाथ में तो अर्जुन कहेगा, इसी को पकड़ लूं। कम से कम जो भी है, जो झूठ है, उसे छोड़ दो। हम तुम्हारे लिए सच्चा हीरा देते हैं। सांत्वना तो है, आशा तो है कि कल कुछ मिलेगा। तुम तो बिलकुल हालांकि कोई सच्चा हीरा नहीं है। हीरा मिलता है उस मुट्ठी को, जो निराश किए देते हो।
खुल जाती है और कुछ भी नहीं पकड़ती, अनक्लिगिंग। खुली मुट्ठी बुद्ध जैसे व्यक्ति ने यही उत्तर दिया कि दूसरा किनारा भी नहीं है, | | कुछ नहीं पकड़ती, उसको हीरा मिलता है। जो कुछ भी पकड़ती है, मोक्ष भी नहीं है। बड़ी कठिन बात हो गई फिर। मोक्ष भी नहीं है! वह पत्थर ही पकड़ती है। पकड़ना ही-पत्थर आता है पकड़ में।
और संसार छोड़ने को कहते हो, और मोक्ष भी नहीं है! धन भी छोड़ने | | हीरा तो खुले हाथ से पकड़ में आता है। अब खुले हाथ की को कहते हो, और धर्म भी नहीं है! तो फिर कहते किसलिए हो? | | पकड़-उलटबांसी हो जाती है। जाग कबीरा जाग, माछी चढ़ गई
इसलिए बुद्ध बिलकुल सही कहे, लेकिन काम नहीं पड़ा वह | | रूख। समुंद लागी आग, नदियां जल भई राख। सत्य। दूसरा किनारा भी नहीं है, तो लोगों ने कहा, फिर हमें पकड़े कृष्ण कबीर की भाषा कभी-कभी बोलते हैं बीच-बीच में, रहने दो।
| जांचने के लिए, कि शायद अर्जुन राजी हो। नहीं तो फिर वे अर्जुन दूसरा किनारा नहीं है, जोर इस बात पर है कि मझधार में डूब की भाषा बोलने लगते हैं।