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गीता दर्शन भाग-3 -
नहीं फैलेंगे, और या फैलेंगे भी, तो सभी के आलिंगन में उसे | करते हैं, उस लहू को पानी की तरह हाथ पर फेरा। किसी ने पूछा, परमात्मा का ही आलिंगन होगा। और कोई अगर उससे बिछुड़कर | | मंसूर! यह तुम क्या कर रहे हो? तो मंसूर ने कहा कि मैं प्रभु से जा रहा है, तो उसका कुछ भी नहीं बिछुड़ेगा। क्योंकि जो परम | | मिलने के पहले, आखिरी मिलन हुआ जा रहा है, वजू कर रहा हूं। मिलन हो गया है, उस परम मिलन के आगे अब किसी बिछुड़न तो लोगों ने कहा कि खून से कहीं वजू की जाती है? मंसूर ने कहा, का कोई अर्थ नहीं है।
पानी से भी कोई वजू हो सकती है? पानी से भी कहीं कोई वजू हो अपयश का दुख है जीवन में, अपमान का दुख है जीवन में। सकती है, मंसूर ने कहा। अब तक तो धोखा दिया वजू करने का कि लेकिन जिसे प्रभु ने सम्मानित कर दिया, अब उसे अपमान छू पानी से हाथ धो लेते थे, आज मौका मिला कि अपने जीवन से हाथ सकेगा? जिसे स्वयं प्रभु ने अपने मंदिर में प्रवेश दिया और जिसे | | धो रहे हैं। जीवन से हाथ धोकर प्रभु की यात्रा पर जा रहा हूं। स्वयं प्रभु ने अपने निकट बिठा लिया-यह सिर्फ मैं काव्य की | __ जिसे प्रभु की जरा-सी भी झलक मिल जाए, उसके जीवन में भाषा में बोल रहा हूं, प्रभु कोई व्यक्ति नहीं है जो प्रभु के अनुभव | | चलायमान होने का कोई भी कारण नहीं है। लेकिन हमें कोई झलक को उपलब्ध हुआ, अब कौन-सा अपमान उसके लिए अर्थपूर्ण रह | नहीं है, इसलिए छोटी-सी चीज चलायमान कर जाती है। सच तो . जाएगा? जो बड़े से बड़ा मान संभव था, वह हो गया। यह है कि हम चलायमान ही रहते हैं। जैसा मैंने कहा, हम दुखी ही
तो जीसस जैसा आदमी सूली पर भी शांति से लटक सकता है। रहते हैं। सामान्य धक्के हम झेलते रहते हैं, आदी हो जाते हैं। मंसूर को जब लोगों ने सूली दी, तो मंसूर सिर उठाकर ऊपर असामान्य धक्के आते हैं, हम दिक्कत में पड़ जाते हैं। आकाश की तरफ देखकर हंसने लगा।
और इसीलिए हम असामान्य धक्कों को अपने से रोके रखते हैं, मंसूर एक अदभुत फकीर था, जीसस की हैसियत का। | भुलाए रखते हैं। भुलाए रखते हैं कि मौत है। भुलाए रखते हैं कि मुसलमान फकीर था, सूफी था। जब मंसूर को लोग काटने लगे | | प्रिय बिछुड़ जाएगा। भुलाए रखते हैं कि सब सफलताएं अंत में
और सूली देने लगे, तो मंसूर ने आकाश की तरफ देखा और | | असफलताओं की राख सिद्ध होती हैं। भुलाए रखते हैं कि सब मुस्कुराया। तो एक लाख लोगों की भीड़ थी, जो पत्थर फेंक रहे थे सिंहासन आखिर में कब्रों की सीढ़ियां बन जाते हैं। सबको भुलाए उस पर, गालियां दे रहे थे उसको। कोई उसका पैर काट रहा था, | रखते हैं। और इस तरह जीते हैं भुलावे में कि जैसे कहीं कोई दुख कोई उसका हाथ काट रहा था। कोई उसकी आंखें फोड़ने के लिए | नहीं है। छुरे लिए हुए खड़ा था।
लेकिन हम कितनी देर अपने को भुलावा दे सकते हैं! दुख और जब मंसूर को लोगों ने हंसते देखा, तो किसी ने भीड़ में से | आएगा ही। दुख जीवन का स्वरूप है। अगर आप आनंद को नहीं पूछा कि मंसूर, किसको देखकर हंस रहे हो? मरने के करीब हो! | उपलब्ध कर लेते हैं, तो दुख आपको कंपाता ही रहेगा। तो मंसूर ने कहा कि तुम्हें मौत दिखाई पड़ती है, मुझे महामिलन कृष्ण ठीक कहते हैं, परम लाभ हो जाता है उसे। फिर बड़े से दिखाई पड़ रहा है। यहां से विदा हो जाऊंगा, वहां प्रभु से | बड़ा दुख चलायमान नहीं कर सकता है। महामिलन हो जाएगा। उसकी बांहें मुझे आकाश में फैली हुई। वही कसौटी है। वही कसौटी है कि जब बड़े से बड़ा दुख कंपन दिखाई पड़ रही हैं। तुम मुझे जल्दी विदा कर दो, ताकि उसे और न लाए, तो ही जानना कि वह आदमी प्रभु के दर्शन को उपलब्ध प्रतीक्षा न करनी पड़े!
हुआ। अब यह जो आदमी है, इसको हम काट-काटकर भी दख नहीं बुद्ध के आखिरी छः महीने बहुत पीड़ा में बीते। पीड़ा में उनकी दे सकते। क्योंकि इसको हम काट ही नहीं सकते। यह जिस तल | | तरफ से, जिन्होंने देखा; बुद्ध की तरफ से नहीं। बुद्ध एक गांव में पर जी रहा है, वहां कोई हमारे अस्त्र-शस्त्र काम न करेंगे। जिस | ठहरे हैं। और उस गांव के एक शूद्र ने, एक गरीब आदमी ने बुद्ध जगह यह जी रहा है, उस तल पर, उस आयाम में, हम इसे दुख न | | को निमंत्रण दिया कि मेरे घर भोजन कर लें। तो वह पहला निमंत्रण पहुंचा पाएंगे।
देने वाला था, सुबह-सुबह जल्दी आ गया था पांच बजे, ताकि . जब मंसूर के हाथ काटे, तो उसके हाथ से लहू बहने लगा। उसने गांव का कोई धनपति, गांव का सम्राट निमंत्रण न दे दे। बहुत बार दूसरे हाथ से लहू लेकर, जैसे कि मुसलमान नमाज के पहले वजू आया था, लेकिन कोई निमंत्रण दे चुका था।
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