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< दुखों में अचलायमान -
था। सालभर में तो उस आदमी की न मालूम कितनी प्रतिमाएं छोड़। समय बाधा है ध्यान में। हेरिगेल के हृदय में अंकित हो गई। सालभर में तो वह आदमी | असल में समय क्या है? हमारा अधैर्य समय है। जो टाइम उसके प्राणों के पोर-पोर तक प्रवेश कर गया। भरोसा करना ही कांशसनेस है, वह समय का जो बोध है, वह अधैर्य के कारण है। पड़ेगा, और आदमी बिलकुल पागल मालूम होता है। इसलिए जो समाज जितना अधैर्यवान हो जाता है, उतना टाइम
उस फकीर ने कहा, तू जल्दी मत कर। जरूर वह वक्त आ | | कांशस हो जाता है। जो समाज जितना धीरज से बहता है, उतना जाएगा, जब तू मौजूद नहीं रहेगा और तीर चलेगा। और जिस दिन समय का बोध नहीं होता। तू मौजूद नहीं है और तीर चलता है, उसी दिन ध्यान आ जाएगा। अभी पश्चिम बहुत टाइम कांशस हो गया है। एक-एक सेकेंड, क्योंकि स्वयं को पूरी तरह अनुपस्थित कर लेने की कला ही ध्यान | एक-एक सेकेंड आदमी बचा रहा है; बिना यह जाने कि बचाकर है, टु बी एब्सेंट टोटली।
करिएगा क्या? बचाकर करिएगा क्या? माना कि एक सेकेंड और जिस क्षण कोई स्वयं को पूरी तरह अनुपस्थित कर लेता आपने बचा लिया और कार एक सौ बीस मील की रफ्तार से चलाई है, परमात्मा प्रवेश कर जाता है। परमात्मा के लिए भी जगह तो और जान जोखम में डाली और दो-चार सेकेंड आपने बचा लिए, खाली करिएगा अपने घर के भीतर! आप इतने भरे हुए हैं कि फिर करिएगा क्या? फिर उन दो-चार सेकेंड से और कार परमात्मा आना भी चाहे, तो कहां से आए? उसको ठहरने लायक दौड़ाइएगा! और करिएगा क्या? जगह भी भीतर चाहिए; उतनी जगह भी भीतर नहीं है! हम इतने | लेकिन समय का बोध आता है भीतर के तनावग्रस्त चित्त से। ज्यादा अपने भीतर हैं, टू मच, कि वहां कोई रत्तीभर भी स्थान नहीं | | इसलिए बड़े मजे की बात है कि आप जितने ज्यादा दुखी होंगे, है, स्पेस नहीं है।
| समय उतना बड़ा मालूम पड़ेगा। घर में कोई मर रहा है और खाट उस फकीर ने कहा, तू जल्दी मत कर। तू कुछ वक्त लगा और के पास आप बैठे हैं, तब आपको पता चलेगा कि रात कितनी लंबी यह तीर निशान पर लगाने की बात न कर। निशान न भी लगा, तो होती है। बारह घंटे की नहीं होती, बारह साल की हो जाती है। दुख चलेगा। उस तरफ निशान चूक जाए, चूक जाए; इस तरफ निशान | का क्षण एकदम लंबा मालूम पड़ने लगता है, क्योंकि चित्त बहुत न चूके। उसने कहा, इस तरफ के निशान का मतलब? कि इस | तनाव से भर जाता है। सुख का क्षण बिलकुल छोटा मालूम पड़ने तरफ करने वाला मौजूद न रहे, खाली हो जाए। तीर उठे और चले, | | लगता है। प्रियजन से मिले हैं और विदा का वक्त आ गया, और और तू न रहे।
लगता है, अभी तो घड़ी भी नहीं बीती थी और जाने का समय आ एक साल और उसने मेहनत की। पागलपन साफ मालूम होने | | गया! समय बहुत छोटा हो जाता है। लगा। रोज उठाता धनुष और रोज गुरु कहता कि नहीं; अभी वह | __ हेरिगेल का वह गुरु कहने लगा कि समय की बात बंद कर, नहीं बात नहीं आई। निशान ठीक लगते जाते, और वह बात न आती। तो ध्यान में कभी नहीं पहुंच पाएगा। एक साल बीत गया। भागना चाहा, लेकिन भागना और मुश्किल | ध्यान का अर्थ ही है, समय के बाहर निकल जाना। हो गया। वह आदमी और भरोसे के योग्य मालूम होने लगा। इन | रुक गया। अब इस आदमी से भाग भी नहीं सकता। यही ट्रस्ट, दो सालों में कभी उस आदमी की आंख में रंचमात्र चिंता न देखी। | श्रद्धा का मैं अर्थ कह रहा हूं आपसे। श्रद्धा का अर्थ है कि आदमी कभी उसे विचलित होते न देखा। सुख में, दुख में, सब स्थितियों | | की बात भरोसे योग्य नहीं मालूम पड़ती, पर आदमी भरोसे योग्य में उस आदमी को समान पाया। वर्षा हो कि धूप, रात हो कि दिन, | | मालूम पड़ता है। श्रद्धा का अर्थ है, बात भरोसे योग्य नहीं मालूम पाया कि वह आदमी कोई अडिग स्थान पर खड़ा है, जहां कोई | | पड़ती, लेकिन आदमी भरोसे योग्य मालूम पड़ता है। बात तो ऐसी कंपन नहीं आता।
लगती है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन आदमी ऐसा लगता है कि __ भागना मुश्किल है। लेकिन बात पागलपन की हुई जाती है। दो इससे ठीक आदमी कहां मिलेगा! तब श्रद्धा पैदा होती है। साल खराब हो गए! गुरु से फिर एक दिन कहा कि दो साल बीत, अब कृष्ण जो कह रहे हैं अर्जुन से, वह बात तो बिलकुल ऐसी गए! उसके गुरु ने कहा कि समय का खयाल जब तक तू रखेगा, लगती है कि जब कोई दुख विचलित न कर सकेगा, संसार से सब तब तक खुद को भूलना बहुत मुश्किल है। समय का जरा खयाल संसर्ग टूट जाएगा; पीड़ा-दुख, सबके पार उठ जाएगा मन। ऐसा
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