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- अहंकार खोने के दो ढंग -
मिलेगा कैसे!
तो न होगी; मुलाकात ही न होगी। मुलाकात ही तब होगी, जब इसे थोड़ा ऐसा समझें कि अगर निराकार आकार से मिल सके, जलने की तैयारी हो। तो निराकार भी आकार वाला हो जाएगा। क्योंकि निराकार अगर | | जब कोई परमात्मा के साथ खोने को राजी है, मिटने को राजी आकार से मिले, तो उसका अर्थ है कि आकार तो निराकार के बाहर | | है, एकाकार होने को राजी है...। और एकाकार होने को वही राजी होगा, समथिंग आउट साइड। और अगर निराकार के बाहर कोई | | होता है, जिसको अपने निराकार का बोध हो जाता है। नहीं तो आप चीज है, तो जो चीज बाहर है, वह निराकार का आकार बना देगी। अपने आकार को बचाते फिरते हैं कि कहीं नष्ट न हो जाए। क्योंकि
सब आकार दूसरे से बनते हैं। आपके घर की जो बाउंड्री है, वह | | मैं आकार हूं, अगर आकार मिट गया, तो मैं मिट गया। जिस दिन आपके घर से नहीं बनती, आपके पड़ोसी के घर से बनती है। अगर | | आप जानते हैं, मैं निराकार हूं, उस दिन इस शरीर को आप कपड़े इस पृथ्वी पर आपका ही अकेला घर हो, तो आपके घर की कोई | की तरह उतारकर रख देने को राजी हो सकते हैं। उस दिन इन इंद्रियों बाउंड्री न होगी।
को आप चश्मे की तरह उतारकर रख देने को राजी हो सकते हैं। सब सीमाएं दूसरे से बनती हैं। इसलिए जो असीम है, उसके | उस दिन आप निराकार हैं। फिर निराकार और निराकार के बीच लिए दूसरा तो हो ही नहीं सकता, क्योंकि वह सीमित हो जाएगा। | कोई व्यवधान नहीं है। कोई व्यवधान नहीं है। दोनों के बीच फिर __ हम तो उसी दिन उसके लिए हो सकते हैं, जिस दिन हम भी | कोई सीमा नहीं है। दोनों एक हो गए हैं। असीम हों। असीम का असीम से मिलन हो सकता है; असीम का | । जैसे कोई बूंद कहे कि मैं बूंद रहकर सागर से मिल जाऊं, तो न सीमित से मिलन नहीं हो सकता। सीमित का सीमित से मिलन हो | | मिल सकेगी। सागर भी चाहे-बूंद तो समझ लें कि असमर्थ है सकता है। असीम का असीम से मिलन हो सकता है। सीमित का | बेचारी, कमजोर है-अगर सागर भी चाहे कि मैं बूंद को बूंद रहने असीमित से मिलन नहीं हो सकता। असीमित का सीमित से भी | | दूं और मिल जाऊं, तो सागर भी न मिल सकेगा। अगर बूंद को मिलन नहीं हो सकता। यह असंभव है। इसका कोई उपाय नहीं है। सागर से मिलना है, तो सागर में खो जाना पड़ेगा। और अगर सागर
इसलिए कृष्ण ठीक कहते हैं। वे कहते हैं, हम उन्हें तब तक को बूंद में अपने को मिलाना है, तो बूंद को खो देने के सिवाय कोई दिखाई नहीं पड़ेंगे, उनकी दृष्टि में नहीं पड़ेंगे, जब तक कि हम ऐसे | | रास्ता नहीं है। न हो जाएं कि या तो हमें एक में सब दिखाई पड़ने लगे, और या हम परमात्मा के लिए तभी दृश्य होते हैं, जब परमात्मा हमारे सब में एक दिखाई पड़ने लगे।
| लिए दृश्य हो जाता है। जब तक परमात्मा हमारे लिए अदृश्य है, उसी क्षण हम परमात्मा के साक्षात्कार में हो जाएंगे। साक्षात्कार हम भी उसके लिए अदृश्य हैं। जब तक परमात्मा हमें ऐसा है, जैसे में कहना ठीक नहीं, भाषा की गलती है। हम परमात्मा के साथ | | नहीं है, तब तक हम भी परमात्मा के लिए ऐसे हैं, जैसे नहीं हैं। . एकात्म हो जाएंगे, एकाकार हो जाएंगे। उस क्षण हम भी निराकार | | एक कैथोलिक नन के जीवन को मैं पढ़ता था। एक कैथोलिक
होंगे। या ऐसा कहें कि उस क्षण हम भी परमात्मा होंगे। संन्यासिनी का जीवन में पढ़ता था। कैथोलिक मान्यता है कि ___ परमात्मा ही परमात्मा से मिल सकता है, उससे नीचे मिलने का परमात्मा हर वक्त देख रहा है सब जगह। आश्रम में थी वह उपाय नहीं है। मिलना हमेशा समान का हाता है। असमान का काइ
न का कोई संन्यासिनी। वह अपने बाथरूम में भी कपडे पहनकर ही स्नान मिलना नहीं होता। सम्राट से मिलना हो, तो सम्राट हो जाना जरूरी | करती थी! जब लोगों को पता चला, मित्रों को, साथी-संगिनियों है; चपरासी होकर मिलना बहुत कठिन है। परमात्मा से मिलना हो, को पता चला, तो उन्होंने कहा कि तू पागल तो नहीं है! बाथरूम तो परमात्मा हो जाना जरूरी है। वही योग्यता है मिलने की, अन्यथा | बंद करके, कपड़े उतारकर स्नान कर सकती है! कपड़े पहनकर कोई योग्यता नहीं है।
स्नान करने की क्या जरूरत है? वहां तो कोई भी देखने वाला नहीं इसी चेहरे को, इसी स्थिति को लेकर परमात्मा के सामने हम न | | है। उस स्त्री ने कहा-गणित उसका साफ था—उसने कहा कि जा सकेंगे। आग से किसी को मिलना हो, तो जलना सीखना मैंने पढ़ा है किताब में कि परमात्मा सब जगह देखता है। चाहिए: बस. मिल जाएगा। जल जाए. तो आग से एक हो जाएगा। मगर उसकी नासमझी भी गहरी है. क्योंकि जो बाथरूम में लेकिन कोई सोचता हो कि बिना जले आग से मुलाकात हो जाए, घुसकर देख लेगा, वह कपड़े के भीतर घुसकर नहीं देख लेगा!
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