________________
दुखों में अचलायमान -
वह निमंत्रण दे ही रहा था कि तभी गांव के एक बड़े धनपति ने | किसी तरह समझाकर-बुझाकर लौटा दिया। आकर बुद्ध को कहा कि आज मेरे घर निमंत्रण स्वीकार करें। बुद्ध | | बुद्ध के शिष्य कहने लगे, आप यह क्या बातें कह रहे हैं। यह ने कहा, निमंत्रण आ गया। उस अमीर ने उस आदमी की तरफ देखा | आदमी हत्यारा है। बुद्ध ने कहा, भूलकर ऐसी बात मत कहना,
और कहा, इस आदमी का निमंत्रण! इसके पास खिलाने को भी अन्यथा उस आदमी को नाहक लोग परेशान करेंगे! तुम जाओ; कुछ होगा? बुद्ध ने कहा, वह दूसरी बात है। बाकी निमंत्रण उसका गांव में डुंडी पीटकर खबर करो कि यह आदमी सौभाग्यशाली है, ही स्वीकार किया। उसके घर ही जाता हूं।
क्योंकि इसने बुद्ध को अंतिम भोजन का दान दिया है। बद्ध गए। उस आदमी को भरोसा भी न था कि बद्ध कभी उसके | मरने के वक्त लोग उनसे कहते थे कि आप एक दफे भी तो रुक घर भोजन करने आएंगे। उसके पास कुछ भी न था खिलाने को जाते! कह देते कि कड़वा है, तो हम पर यह वज्रपात न गिरता! वस्तुतः। रूखी रोटियां थीं। सब्जी के नाम पर बिहार में गरीब लेकिन बुद्ध कहते थे कि यह वज्रपात रुकने वाला नहीं था। किस किसान, वह जो बरसात के दिनों में कुकुरमुत्ता पैदा हो जाता बहाने गिरेगा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। और जहां तक मेरा है-लकड़ियों पर, गंदी जगह में-उस कुकुरमुत्ते को इकट्ठा कर संबंध है, मुझ पर कोई वज्रपात नहीं गिरा है, नहीं गिर सकता है। लेते हैं, सुखाकर रख लेते हैं और उसी की सब्जी बनाकर खाते हैं। क्योंकि मैंने उसे जान लिया है, जिसकी कोई मृत्यु नहीं है। कभी-कभी ऐसा होता है कि कुकुरमुत्ता पायजनस हो जाता है। कहीं यह अनुभव हो, तो फिर कोई कंपन जीवन के किसी भी दुख का ऐसी जगह पैदा हो गया, जहां जहर मिल गया, तो कुकुरमुत्ते में नहीं होता है। जहर फैल जाता है।
__ हमें तो सब चीजें हिला जाती हैं। हमारे पीछे तो कोई ऐसी चीज बुद्ध के लिए उसने कुकुरमुत्ते बनाए थे, वे जहरीले थे। जहर थे, नहीं है, जिस पर हम बिना हिले खड़े हो जाएं। कोई ऐसा स्तंभ नहीं सख्त कड़वे जहर थे। मुंह में रखना मुश्किल था। लेकिन उसके है, जिस पर हम बिना हिले खड़े हो जाएं। पास एक ही सब्जी थी। तो बुद्ध ने यह सोचकर कि अगर मैं कहूं कबीर ने एक छोटा-सा दोहा लिखा है। जिसका अर्थ है कि कि यह सब्जी कड़वी है, तो वह कठिनाई में पड़ेगा; उसके पास कबीर बहुत रोने लगा यह देखकर कि दो चक्कियों के पाट के बीच कोई दूसरी सब्जी नहीं है। वे उस जहरीली सब्जी को खा गए। उसे | जो भी पड़ गया, वह पिस गया। कबीर घर लौटा। कबीर के घर मुंह में रखना कठिन था। और बड़े आनंद से खा गए, और उससे | एक बेटा पैदा हुआ था। कबीर का बेटा था, तो कबीर की हैसियत कहते रहे कि बहुत आनंदित हुआ हूं।
का बेटा था। उसका नाम था कमाल। कबीर ने घर जाकर यह दोहा जैसे ही बुद्ध वहां से निकले, उस आदमी ने जब सब्जी चखी, | | पढ़ा और कहा कि कमाल, आज रास्ते पर चलती चक्की देखकर तो वह तो हैरान हो गया। वह भागा हुआ आया और उसने कहा मैं रोने लगा. क्योंकि मझे खयाल आया कि जगत की चक्की के दो कि आप क्या कहते हैं? वह तो जहर है। वह छाती पीटकर रोने पाटों के बीच जो भी पड गया. वह बचा नहीं। लगा। लेकिन बुद्ध ने कहा, तू जरा भी चिंता मत कर। क्योंकि जहर कमाल ने दूसरा दोहा कहा और उसने कहा कि नहीं, यह मत मेरा अब कुछ भी न बिगाड़ सकेगा, क्योंकि मैं उसे जानता हूं, जो कहो। मैं भी चलती चक्की देखा हूं। चलती चक्की देखकर कमाल अमृत है। तू जरा भी चिंता मत कर।
हंसने लगा, क्योंकि मैंने देखा कि दो पाटों के बीच में एक छोटी-सी लेकिन फिर भी उस आदमी की चिंता तो हम समझ सकते हैं। कील भी है। जिसने उस कील का सहारा ले लिया, दो पाट उसको बुद्ध ने उसे कहा कि तू धन्यभागी है। तुझे पता नहीं। तू खुश हो। | पीस नहीं पाए। पाट चलते रहे। वह जो छोटी-सी कील है चक्की तू सौभाग्यवान। क्योंकि कभी हजारों वर्षों में बुद्ध जैसा व्यक्ति पैदा के बीच में, उसके सहारे जो गेहूं का दाना चढ़ गया, उसके सहारे होता है। दो ही व्यक्तियों को उसका सौभाग्य मिलता है, पहला जो रह गया, दो चाक चलते रहे, चलते रहे, पीसते रहे, लेकिन वह भोजन कराने का अवसर उसकी मां को मिलता है और अंतिम अनपिसा बच गया! भोजन कराने का अवसर तुझे मिला है। तू सौभाग्यशाली है; तू जो परमात्मा की बीच में कील है, उसके निकट जितना सरक आनंदित हो। ऐसा फिर सैकड़ों-हजारों वर्षों में कभी कोई बुद्ध पैदा जाए, सेंटर के, केंद्र के, उतना ही इस जगत की कोई चीज फिर पीस होगा और ऐसा अवसर फिर किसी को मिलेगा। उस आदमी को नहीं पाती है। अन्यथा तो दो पाट पीसते ही रहेंगे। दुख पीसता ही
169