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सगीता दर्शन भाग-3
के सामने आ जाए उसकी छवि? एक बार हम स्वाद ले लें उसके कि मुझे भी वह मार्ग बताएं, जिससे मैं ध्यान को उपलब्ध हो सकूँ। आलिंगन का, एक क्षण के लिए-कहां जाएं? कहां खोजें? । उस गुरु ने बहुत बड़े-बड़े साधकों को मार्ग बताया था, इस छोटे
स्वयं के ही अंदर। उसके अतिरिक्त कहीं कोई और उससे मिलन बच्चे को क्या मार्ग बताए! लेकिन विधि उसने पूरी कर दी थी, न होगा। अपने ही भीतर। और अपने भीतर जाना हो, तो जो-जो | इनकार किया नहीं जा सकता था। ठीक व्यवस्था से घंटा बजाया बाहर है. उसके इलीमिनेशन के अतिरिक्त और कोई विधि नहीं है। था। हाथ जोडकर नमस्कार किया था। चरणों में फल रखे थे। जो-जो बाहर है, यह मैं नहीं हूं, यह मैं नहीं हूं, इस बोध के विनम्र भाव से बैठकर प्रार्थना की थी कि आज्ञा दें, मैं क्या करूं कि अतिरिक्त भीतर जाने का कोई उपाय नहीं है।
ध्यान को उपलब्ध हो जाऊं, प्रभु का स्मरण आ जाए। उस छोटे-से सुनी है मैंने एक छोटी-सी कहानी, वह मैं आपसे कहूं, फिर मैं बच्चे के लिए कौन-सी विधि बताई जाए! दूसरा सूत्र लूं।
उस गुरु ने कहा, तू एक काम कर, दोनों हाथ जोर से बजा। एक झेन फकीर हुआ। उसके पास, उसके मंदिर में जहां वह लड़के ने दोनों हाथ की ताली बजाई। गुरु ने कहा कि ठीक। आवाज ठहरता है, उसके वृक्ष के नीचे जहां वह विश्राम करता है, दूर-दूर बिलकुल ठीक बजी। ताली तू बजा लेता है। अब एक हाथ नीचे से साधक आते हैं। दूर-दूर से साधक आते हैं, उससे पूछते हैं, | रख ले। अब एक ही हाथ से ताली बजा। उस बच्चे ने कहा, बहुत ध्यान की कोई विधि। वह उन्हें ध्यान की विधियां बताता है। वह कठिन मालूम पड़ता है। एक हाथ से ताली कैसे बजाऊं? तो उस उन्हें कोई सूत्र देता है कि जाकर इस पर ध्यान करो।
गुरु ने कहा, यही तेरे लिए मंत्र हुआ। अब इस पर तू ध्यान कर। एक छोटा-सा बच्चा भी कभी-कभी उस वक्ष के नीचे आकर और जब तुझे पता चल जाए कि एक हाथ से ताली कैसे बजेगी, बैठ जाता है। कभी उसके मंदिर में आ जाता है। बारह साल उसकी तब तू आकर मुझे बता देना। उम्र होगी। वह भी सुनता है बड़े ध्यान से बैठकर। बड़ी बातें! बच्चा गया। उस दिन उसने खाना भी नहीं खाया। वह वृक्ष के उसकी समझ में नहीं भी पड़ती हैं, पड़ती भी हैं। क्योंकि कुछ नहीं नीचे बैठकर सोचने लगा, एक हाथ की ताली कैसे बजेगी? बहुत कहा जा सकता।
सोचा, बहुत सोचा। कई बार जिनको लगता है कि समझ में पड़ रहा है, उन्हें कुछ भी आप कहेंगे, कहां के पागलपन के सवाल को उसे दे दिया। सभी समझ नहीं पड़ता। और कई बार जिन्हें लगता है कि कुछ समझ में सवाल पागलपन के हैं। कोई भी सवाल कभी सोचा होगा, इससे नहीं पड़ रहा है, उन्हें भी कुछ समझ में पड़ जाता है। बहुत बार ऐसा कम पागलपन का नहीं रहा होगा। ही होता है कि जिसे लगता है, कुछ समझ में नहीं पड़ रहा कोई सोच रहा है, जगत को किसने बनाया? क्या एक हाथ से है-इतना भी समझ में पड़ जाना कोई छोटी समझ नहीं है। ताली बजाने वाले सवाल से कोई बहुत बेहतर सवाल है! कोई सोच
वह छोटा बच्चा आकर बैठता है। कोई साधक, कोई संन्यासी, रहा है कि आत्मा कहां से आई ? एक हाथ से ताली बजाने के कोई योगी आकर झेन फकीर से ध्यान के लिए कोई विषय, कोई सवाल से कोई ज्यादा अर्थपूर्ण सवाल है! आब्जेक्ट मांगता है। वह देखता रहता है। उसने देखा कि जब भी लेकिन उस बच्चे ने बड़े सदभाव से सोचा। सोचा, रात उसे कोई साधक आता है, तो मंदिर का घंटा बजाता है, झुककर तीन । खयाल आया कि ठीक। मेंढक आवाज करते थे। उसने भी मेंढक बार नमस्कार करता है, झुककर विनम्र भाव से बैठता है; आदर से की आवाज मुंह से की। और उसने कहा कि ठीक। यही आवाज प्रश्न पूछता है, मंत्र लेता है, विदा होता है। फिर साधना करके, | होनी चाहिए एक हाथ की। वापस लौटकर खबर देता है।
आकर सुबह घंटा बजाया। विनम्र भाव से बैठकर उसने आवाज एक दिन सुबह वह बच्चा भी उठा, स्नान किया, फूल लिए हाथ | की मुंह से, जैसे मेंढक टर्राते हों। और गुरु से कहा, देखिए, यही है में, आकर जोर से मंदिर का घंटा बजाया। झेन फकीर ने ऊपर आंख | न आवाज, जिसकी आप बात करते थे? गुरु ने कहा कि नहीं, यह उठाकर देखा कि शायद कोई साधक आया। लेकिन देखा, वह | तो पागल मेंढक की आवाज है। एक हाथ की ताली की आवाज! छोटा बच्चा है, जो कभी-कभी आ जाता है। आकर तीन बार दूसरे दिन फिर सोचकर आया; तीसरे दिन फिर सोचकर आया। झुककर नमस्कार किया। फूल चरणों में रखे। हाथ जोड़कर कहा कुछ-कुछ लाया, रोज-रोज लाया। यह है आवाज, यह है आवाज।
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