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-योगाभ्यास-गलत को काटने के लिए
निकला है, वह कहेगा, प्रभु तेरा धन्यवाद! आश्चर्य है, जहां इतने और जिस आदमी ने देखा कि कांटे ही कांटे हैं; कहीं एकाध कांटे हैं, वहां भी इतना कोमल फूल खिल सकता है! यह उनके | | फूल खिल जाता है भूल-चूक से, यह एक्सिडेंट मालूम होता है। देखने के ढंग का फर्क होगा।
यह फूल एक्सिडेंट है, कांटे असलियत हैं। बात भी ठीक लगती जब आप किसी आदमी से मिलते हैं, तो उसमें बुरा अगर आप है। कांटे बहुत, फूल एक। वह आदमी बहुत दिन तक फूल में भी खोजते हैं तत्काल, तो आप अभ्यासी हैं अशांति के। उस आदमी | | फूल को नहीं देख पाएगा। बहुत जल्दी उसको फूल में भी कांटे में कुछ तो भला होगा ही, नहीं तो जीना मुश्किल था। बुरे से बुरे | दिखाई पड़ने लगेंगे। आदमी का भी जीना असंभव है, अगर वह एब्सोल्यूट बुरा हो हमारी दृष्टि धीरे-धीरे फैलकर निरपेक्षपूर्ण हो जाती है। लेकिन जाए। चोर भी किन्हीं के साथ तो ईमानदार होते हैं। और डाकू भी | अस्तित्व? अस्तित्व द्वंद्व है; वहां दोनों मौजूद हैं। किन्हीं के साथ वचन निभाते हैं। बेईमान भी बेईमान नहीं हो सकता ___ योगाभ्यासी का अर्थ है, ऐसा व्यक्ति, जो जीवन में शांति की सदा, चौबीस घंटे, किन्हीं के साथ ईमानदारी से जीता है। जो | | खूटियां खोजता है, आनंद की खूटियां खोजता है। फूल खोजता है। आपका दुश्मन है, वह भी किसी का मित्र है; वह भी मित्रता जानता | | आशा खोजता है। सौंदर्य खोजता है। आनंद खोजता है। जो जीवन है। जो आपकी छाती में छुरा भोंकने को तैयार है, वह किसी दिन | | में नृत्य खोजता है, उत्सव खोजता है। जीवन में उदासी बटोरने का किसी के लिए अपनी छाती में भी छुरा भोंकने की तैयारी रखता है। | जिसने ठेका नहीं लिया है। जो जगह-जगह जाकर कांटे और कंकड़
इस जमीन पर, इस अस्तित्व में कोई बिलकुल बुरा है, ऐसा नहीं | नहीं खोजता रहता है। और जिनको इकट्ठा करके छाती पर रखकर है। और कोई बिलकुल भला है, ऐसा भी नहीं है। लेकिन आपके चिल्लाता नहीं है कि जिंदगी बेकार है, अर्थहीन है।
चुनाव पर निर्भर है कि आप क्या चुनते हैं। आपके अभ्यास पर योगाभ्यास का अर्थ है, जीवन को विधायक दृष्टि से देखने का निर्भर है कि आप क्या चुनते हैं। अगर आपने तय कर रखा है कि ढंग। योग जीवन की विधायक कीमिया है, पाजिटिव केमेस्ट्री है। बुरा ही चुनेंगे, तो आपको बुरा मिलता चला जाएगा। जिंदगी में और उसका अभ्यास करना पड़ेगा। क्योंकि आपने अभ्यास किया भरपूर बुरा है। अगर आपने तय कर लिया है कि अंधेरा ही चुनेंगे, हुआ है। अगर आप पुराने अभ्यास को ऐसे ही, बिना अभ्यास के तो दिनभर विश्राम करना आप आंख बंद करके. रात को निकल छोड़ने में समर्थ हों, तो छोड़ दें। तो फिर नए अभ्यास की कोई भी जाना खोजने; मिल जाएगा। मिलेगा वही-वही।
जरूरत नहीं है। . बुरे को खोजना है, बुरा मिल जाएगा। दुख को खोजना है, दुख लेकिन वह पुराना अभ्यास जकड़ा हुआ है, भारी है; वह छूटेगा मिल जाएगा। पीड़ा खोजनी है, पीड़ा मिल जाएगी। शैतान खोजना | नहीं। उसे इंच-इंच जैसे बनाया, वैसे ही काटना भी पड़ेगा। जैसे है, शैतान मिल जाएगा। परमात्मा खोजना है, तो वह भी मौजूद है, | घर बनाया, वैसे अब एक-एक ईंट उसकी गिरानी भी पड़ेगी। भला जस्ट बाई दि कार्नर। वहीं, जहां शैतान खड़ा है। शायद इतना भी | वह ताश का ही घर क्यों न हो, लेकिन ताश के पत्ते भी उतारकर दूर नहीं है। शायद शैतान भी परमात्मा के चेहरे को गलत रूप से रखने पड़ेंगे। भला ही वह कितनी ही झूठी व्यवस्था क्यों न हो, देखने के कारण है।
लेकिन झूठ की भी अपनी व्यवस्था है; उसको भी काटना और जिस आदमी को कांटों के बीच फूल खिला हुआ मालूम पड़ता मिटाना पड़ेगा। है और जो कहता है, धन्य है! लीला है, रहस्य है प्रभु का! इतने योगाभ्यास गलत अभ्यासों को काटने का अभ्यास है। ठीक कांटों के बीच फूल खिलता है! उस आदमी को बहुत दिन कांटे | | विपरीत यात्रा करनी पड़ेगी। जिस व्यक्ति में कल तक देखा था बुरा दिखाई नहीं पड़ेंगे। जो इतने कांटों के बीच फूल को देख लेता है, | | आदमी, उसमें देखना पड़ेगा भला आदमी। जिसमें देखा था शत्रु, वह थोड़े ही दिनों में कांटों को फूल के मित्र की तरह देख ही पाएगा। उसमें खोजना पड़ेगा मित्र। जहां देखा था जहर, वहां अमृत की भी वह, कांटे फूल की रक्षा के लिए हैं, यह भी देख पाएगा। अंततः तलाश करनी पड़ेगी। यह तो हुई एक बहिर्व्यवस्था। वह यह भी देख पाएगा कि कांटों के बिना फूल नहीं हो सकता है, और फिर अपने में भी यही करना पड़ेगा। अपने भीतर भी इसलिए कांटे हैं। और आखिर में कांटों का जो कांटापन है, खो जिन-जिन चीजों को बुरा देखा था, उन-उन में शुभ को खोजना जाएगा; और कांटे भी धीरे-धीरे फूल ही मालूम पड़ने लगेंगे। पड़ेगा। कामवासना में देखा था नरक का मार्ग, अब कामवासना
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