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7 मालकियत की घोषणा -
खाया नहीं जाता। आपने कहा, अब तो हमने भोजन पर बिलकुल गया था? कल मैंने नमस्कार भी किया, आपको रोका भी, हिलाया विजय पा ली। दांत न रहे, दांत गिर गए, अब चबाते नहीं बनता। | भी। आप एकदम छूटकर भागे। आपने मुझे देखा भी नहीं! आपको अब आप कहने लगे कि हम तो लिक्विड आहार लेते हैं; कुछ रस | खयाल है? वह आदमी कहेगा, मुझे कुछ खयाल नहीं है। कल मेरे न रहा! ये बिस्तर के नीचे घुसकर आप घोषणाएं कर रहे हैं। घर में आग लग गई थी।
इससे नहीं होगा। इससे अपने को आप फिर धोखा दे रहे हैं। तो जब घर में आग लगी हो, तो सारी चेतना उस तरफ केंद्रित हो इंद्रियों का एनकाउंटर करना पड़ेगा, जब वे सबल हैं। और तब जाती है। आंख की खिड़की से चेतना हट जाती है, कान की खिड़की उनको जीता, तो उसका रहस्य और राज है, उसकी शक्ति है। और | से हट जाती है। फिर आंख में दिखाई पड़ता रहे, फिर भी दिखाई नहीं जब इंद्रियां निर्बल हो गईं और कोई शक्ति न रही, हारने का भी | पड़ता। सुनाई पड़ता रहे कान में, फिर भी सुनाई नहीं पड़ता। उपाय न रहा जब, तब जीतने का कोई अर्थ नहीं रह जाता।
अगर अटेंशन हट गई हो इंद्रिय से, ध्यान हट गया हो, तो इंद्रिय कृष्ण कहते हैं, इंद्रियों का जो मालिक है!
| बिलकुल बेकार हो जाती है। जिस इंद्रिय से ध्यान जुड़ा होता है, वही और इंद्रियों का मालिक कब होता है कोई? इंद्रियों की मालकियत इंद्रिय सार्थक, सफल होती है. सक्रिय होती है. सशक्त होती है। के दो सूत्र आपसे कहूं, तो यह सूत्र आपको पूरा स्पष्ट हो सके। ध्यान किसका है? ध्यान मालिक का है। इंद्रिय तो सिर्फ गुलाम __ पहली बात, इंद्रियों का मालिक वही हो सकता है, जो इंद्रियों से है, इंस्ट्रमेंट है, उपकरण है।
अपने को पृथक जाने। अन्यथा मालिक होगा कैसे? हम उसके ही | लेकिन इसे थोड़ा देखना पड़े। जब आप किसी को देखें, मालिक हो सकते हैं, जिससे हम भिन्न हैं। जिससे हम भिन्न नहीं हैं, | | फिलहाल जैसे मुझे देख रहे हैं, तो थोड़ा खयाल करें, आंख देख उसके हम मालिक कैसे होंगे? पर हम अपने को इंद्रियों से अलग रही है या आप देख रहे हैं? तब आंख सिर्फ बीच का द्वार रह मानते ही नहीं। हम तो अपनी इंद्रियों से इतनी आइडेंटिटी, इतना | जाएगी। उस पार आप हैं; और जिसको आप देख रहे हैं, वह भी तादात्म्य किए हैं कि लगता है, हम इंद्रियां ही हैं, और कुछ भी नहीं। | मैं नहीं हूं; वे भी मेरे द्वार हैं, जिनको आप देख रहे हैं; इस पार मैं
तो जिसे भी इंद्रियों की मालकियत की तरफ जाना हो, उसे हूँ। जब दो आदमी मिलते हैं, तो दो तरफ दो आत्माएं होती है और अपनी इंद्रियों और अपने बीच में थोडा फासला. गैप खडा करना दोनों के बीच में उपकरणों के दो जाल होते हैं। जब मैं हाथ फैलाकर चाहिए। उसे जानना चाहिए कि मैं आंख नहीं हूं; आंख के पीछे | आपके हाथ को अपने हाथ में लेता हं. तो हाथ के द्वारा मैं अपनी कोई हैं। आंख से देखता हं जरूर, लेकिन आंख नहीं देखती. आत्मा से आपको स्पर्श करने की कोशि
रहा है। हाथ तो देखता है कोई और। आंख बिलकुल नहीं देख सकती। आंख में सिर्फ उपकरण है। देखने की कोई क्षमता नहीं है। आंख तो सिर्फ झरोखा है। आंख तो उपकरणों को हम अपनी आत्मा समझ लें, तो फिर यह सिर्फ पैसेज है, मार्ग है, जहां से देखने की सुविधा बनती है। जैसे मालकियत जो कृष्ण चाहते हैं, कभी भी पूरी नहीं होने वाली है। आप खिड़की पर खड़े हों और धीरे-धीरे यह कहने लगे कि खिड़की उपकरणों को समझें उपकरण, अपने को देखें पृथक। चलते आकाश देख रही है, वैसा ही पागलपन है। आंख सिर्फ खिड़की है समय रास्ते पर खयाल रखें कि शरीर चल रहा है, आप नहीं चल आपके शरीर की, जहां से आप बाहर की दुनिया में झांकते हैं। मन | रहे हैं। आप कभी चले ही नहीं; आप चल ही नहीं सकते। आप जो भीतर है, चेतना जो और भीतर है, वही असली देखने वाला है; शरीर के भीतर ऐसे ही बैठे हैं, जैसे चलती हुई कार के भीतर कोई आंख भी नहीं देखती।
आदमी बैठा हो। कार चल रही है और आदमी बैठा हुआ है। यद्यपि कभी आपको अनुभव हुआ होगा ऐसा। रास्ते से भागा चला जा आदमी की भी यात्रा हो जाएगी, लेकिन चलेगा नहीं। ऐसे ही आप रहा है एक आदमी। उसके घर में आग लग गई है। उसको नमस्कार अपने शरीर के भीतर बैठे ही रहे हैं, कभी चले नहीं। यात्रा आपकी करें, उसको कुछ दिखाई नहीं पड़ता। उससे कहें, कहिए कैसे हैं? बहुत हो जाती है, लेकिन चलता शरीर है, आप सदा बैठे हैं। वह कोई जबाब नहीं देता। वह सुनाई भी नहीं पड़ता उसको। वह | वह जो भीतर बैठा है, उसे जरा खयाल करें चलते वक्त; वह भागा जा रहा है।
| तो नहीं चल रहा है, वह कभी नहीं चलता। भोजन करते वक्त दूसरे दिन उसको मिलिए और उससे कहिए, आपको क्या हो खयाल करें कि भोजन शरीर में ही जा रहा है, उसमें नहीं जा रहा
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