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गीता दर्शन भाग - 3 >
नहीं दे पाता । गाली देने के लिए अकड़ा हुआ सिर चाहिए। और कभी आपने खयाल किया हो या न किया हो, लेकिन अब आप खयाल करना। जब किसी को हृदयपूर्वक नमस्कार करके सिर झुकाएं और कल्पना भी कर सकें अगर कि परमात्मा दूसरी तरफ है, तो आप अपने में भी फर्क पाएंगे और उस आदमी में भी फर्क पाएंगे। वह आदमी आपके पास से गुजरा, तो आपने उसको पारस का काम किया, उसके भीतर कुछ आपने सोना बना दिया। और जब आप किसी के लिए पारस का काम करते हैं, तो दूसरा भी आपके लिए पारस बन जाता है।
जीवन संबंध है, रिलेशनशिप है। हम संबंधों में जीते हैं। हम अपने चारों तरफ अगर पारस का काम करते हैं, तो यह असंभव है कि बाकी लोग हमारे लिए पारस न हो जाएं। वे भी हो जाते हैं।
अपना मित्र वही है, जो अपने चारों ओर मंगल का फैलाव करता है, जो अपने चारों ओर शुभ की कामना करता है, जो अपने चारों ओर नमन से भरा हुआ है, जो अपने चारों ओर कृतज्ञता का ज्ञापन करता चलता है।
और जो व्यक्ति दूसरों के लिए मंगल से भरा हो, वह अपने लिए अमंगल से कैसे भर सकता है ! जो दूसरों के लिए भी सुख की कामना से भरा हो, वह अपने लिए दुख की कामना से नहीं भर सकता। अपना मित्र हो जाता है। और अपना मित्र हो जाना बहुत बड़ी घटना है। जो अपना मित्र हो गया, वह धार्मिक हो गया। अब वह ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकता, जिससे स्वयं को दुख मिले।
तो अपना हिसाब रख लेना चाहिए कि मैं ऐसे कौन-कौन से काम करता हूं, जिससे मैं ही दुख पाता हूं। दिन में हम हजार काम कर रहे हैं; जिनसे हम दुख पाते हैं, हजार बार पा चुके हैं। लेकिन कभी हम ठीक से तर्क नहीं समझ पाते हैं जीवन का कि हम इन कामों को करके दुख पाते हैं। वही बात, जो आपको हजार बार मुश्किल में डाल चुकी है, आप फिर कह देते हैं। वही व्यवहार, जो आपको हजार बार पीड़ा में धक्के दे चुका है, आप फिर कर गुजरते हैं। वही सब दोहराए चले जाते हैं यंत्र की भांति ।
जिंदगी एक पुनरुक्ति से ज्यादा नहीं मालूम पड़ती, जैसा हम जीते हैं, एक मैकेनिकल रिपीटीशन । वही भूलें, वही चूकें। नई भूल करने वाले आविष्कारी आदमी भी बहुत कम हैं। बस, पुरानी भूलें ही हम किए चले जाते हैं। इतनी बुद्धि भी नहीं कि एकाध नई भूल करें। पुराना; कल किया था वही; परसों भी किया था वही ! आज फिर वही करेंगे। कल फिर वही करेंगे।
इसके प्रति सजग होंगे, अपनी शत्रुता के प्रति सजग होंगे, तो अपनी मित्रता का आधार बनना शुरू होगा।
कृष्ण या बुद्ध या महावीर या क्राइस्ट जैसे लोग अपने लिए, अपने लिए ही इतने आनंद का रास्ता बनाते हैं, जिसका कोई हिसाब नहीं है। ऊपर से लगता है कि ये लोग बिलकुल त्यागी हैं; | लेकिन मैं आपसे कहता हूं, इनसे ज्यादा परम स्वार्थी और कोई भी नहीं है।
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हम त्यागी कहे जा सकते हैं, क्योंकि हमसे ज्यादा मूढ़ कोई भी | नहीं है। हम, जो भी महत्वपूर्ण है, उसका त्याग कर देते हैं; और जो व्यर्थ है, उस कचरे को इकट्ठा कर लेते हैं। और ये बहुत होशियार लोग हैं। ये, जो व्यर्थ है, उस सबको छोड़ देते हैं; जो सार्थक है, उसको बचा लेते हैं।
जीसस एक गांव के बाहर ठहरे हुए हैं। सांझ का वक्त है। उस गांव के पंडित-पुरोहितों बड़ी तकलीफ है जीसस के आने से । | सदा होती है। जब भी कोई जानने वाला पैदा हो जाता है, तो झूठे जानने वालों को तकलीफ शुरू हो जाती है। जो स्वाभाविक है। उसमें कुछ आश्चर्य नहीं है। पंडित तो जानते हैं किताबों से। जीसस जानते हैं जीवन से। तो किताबों से जानने वाला आदमी, जीवन से जानने वाले आदमी के सामने फीका पड़ जाता है, कठिनाई में पड़ | जाता है, मुश्किल में पड़ जाता है।
गांव के पंडित परेशान हैं। उन्होंने कहा कि जीसस को फंसाने का कोई उपाय खोजना जरूरी है। उन्होंने बड़ा इंतजाम किया और | उपाय खोज लिया । उपाय की कोई कमी नहीं है। वे गांव से एक स्त्री को पकड़ लाए, जो कि व्यभिचार में पकड़ी गई थी । यहूदियों | की पुरानी धर्म की किताब में लिखा है कि जो स्त्री व्यभिचार में पकड़ी जाए, उसको पत्थर मारकर मार डालना चाहिए।
तो उस स्त्री को वे ले आए जीसस के पास और उन्होंने कहा कि यह किताब है हमारी पुरानी, धर्मग्रंथ की। इसमें लिखा है कि जो स्त्री व्यभिचार करे, उसे पत्थर मारकर मार डालना चाहिए। आप क्या कहते हैं ? इस स्त्री ने व्यभिचार किया है। यह पूरा गांव गवाह है।
यह जीसस को दिक्कत में डालने के लिए बड़ा सीधा उपाय था । अगर जीसस कहें कि ठीक है, पुरानी किताब को मानकर पत्थरों से | मार डालो इसे; तो जीसस के उस वचन का क्या होगा, जिसमें जीसस ने कहा है कि जो तुम्हें एक चांटा मारे, तुम उसके सामने | दूसरा गाल कर दो। और जो तुम्हारा कोट छीने, उसे कमीज भी दे दो। और अपने शत्रुओं को भी प्रेम करो। उन सब वचनों का क्या
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