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पं. देवकुमार जी जैन प्राकृत, संस्कृत के अच्छे विद्वान् हैं उनका भी बहुत योगदान मिला जिससे यह कार्य पूर्ण हो सका। चारों अनुयोग के मुद्रण, प्रूफ संशोधन आदि में श्रीचन्द जी सुराना आगरा का पूर्ण सहयोग रहा।
डॉ. धर्मीचन्द जी जैन ने अपना अमूल्य समय निकालकर प्रत्येक अध्ययन के आमुख व विस्तृत भूमिका लिखी है। श्री राजेश भंडारी जोधपुर वाले टाइप कार्य में व श्री मांगीलाल जी शर्मा ने प्रूफ रीडिंग में सबसे अधिक श्रम किया है।
इस युग में अर्थव्यवस्था बिना कुछ नहीं होता जिसमें संपादन, प्रकाशन में लगभग ३० लाख से ऊपर राशि का व्यय होना। यह सब श्रेय सांडेराव के कार्यकर्ताओं, ट्रस्ट के कार्यकर्ताओं व मन्त्री श्री जयन्तिभाई संघवी, सहमन्त्री डॉ. सोहनलाल जी संचेती को है। जिन्होंने बहुत श्रम किया। दिल्ली निवासी श्री गुलशनराय जी जैन, श्रीचन्द जी जैन 'जैन बंधु', श्री प्रभुदासभाई वोरा बम्बई आदि के योगदान को भी नहीं भुलाया जा सकता। __जहाँ-जहाँ पूज्य गुरुदेव का पदार्पण हुआ, चातुर्मास हुए, उन संघों का व श्रद्धाशील ज्ञानानुरागी श्रावकों का भी पंडितों के पारिश्रमिक आदि में योगदान प्राप्त हुआ है।
आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि जी द्वारा प्राक्कथन लेखन मार्गदर्शन, प्रवर्तक श्री रूपचन्द जी म. एवं उपप्रवर्तक श्री सुकन मुनि जी म. का भी समय-समय पर मार्गदर्शन मिला।
मेरे सहयोगी पं. श्री मिश्रीमल जी म. 'मुमुक्षु', सेवाभावी श्री चाँदमल जी म., पं. श्री रोशनलाल जी म. 'शास्त्री', श्री मिलन मुनि जी म., तपस्वी श्री संजय मुनि जी म. 'सरल' द्वारा गोचरी आदि वैयावच्च सेवाएँ तथा श्री गौतम मुनि जी म. की व्याख्यान सेवाएँ भुलायी नहीं जा सकतीं।
इस प्रकार सभी के योगदान से ही यह कार्य पूर्ण हो सका है जिनका भी प्रत्यक्ष व परोक्ष में सहयोग प्राप्त हुआ है उन सभी का मैं हृदय से आभारी हूँ।
लिम्बडी संप्रदाय के श्री भाष्कर मुनि जी म. का यहाँ गत वर्ष ओली पर पधारना हुआ। उनकी अनुयोग के प्रति विशेष रुचि रही, उन्होंने सौराष्ट्र कच्छ की अनेक लाइब्रेरियों में सेट भिजवाये। अनुयोग संपादन की प्रारम्भ से जानकारी ली। जो कुछ जानकारी थी वह उन्हें बताई, उनके प्रेम भरे आग्रह से ही मैंने अनुयोग की यात्रा लिखी है। ____ मुझे भी पूज्य गुरुदेव की सेवा व इस भावना को पूर्ण करने का अवसर प्राप्त हुआ यह मेरा सौभाग्य है। इस कार्य से मुझे असीम आनन्द प्राप्त हुआ। मन एकाग्र हुआ, अनेक बार मैंने स्वयं ने अनुभव किया कि सिरदर्द आदि अनेक व्याधियाँ उत्पन्न हुई, थकावट महसूस हुई किन्तु कार्य में संलग्न होते ही शांति का अनुभव हुआ।
इस अनुयोग के कार्य में लगे रहने के कारण प्रवचन कला में प्रवीण नहीं हो सका जो सामाजिक दृष्टिकोण से आवश्यक है। क्योंकि आगम की सेवा से तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन होता है अतः मैंने अनुयोग के कार्य को प्राथमिकता दी। अब प्रवचन की प्रगति में संलग्न होना है पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से मैं अवश्य सफलता प्राप्त कर सकूँगा।
अनुयोगों का गुजराती भाषान्तर का प्रकाशन व आगमों का शुद्ध संस्करण गुटका साइज में प्रकाशन यह भावना भी गुरुदेव की पूर्ण करनी है। इसी आशा के साथ। श्री वर्धमान महावीर केन्द्र आबू पर्वत
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