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विशेष रूप से कहीं-(१) अनुयोग का प्रकाशन होना, (२) आगमों का शुद्ध आधुनिक ढंग के गुटका साइज में प्रकाशित होना, (३) वृद्ध साधु-साध्वियों का सेवा केन्द्र होना। ये तीन इच्छाएँ बताईं व उसी दिन से मेरा इस ओर लक्ष्य केन्द्रित हुआ। ७ घण्टे ऑपरेशन में लगे, ३ दिन में होश आया, ४ माह हॉस्पीटल में रहे, पश्चात् डॉक्टर के परामर्श से विश्राम हेतु देवलाली पधारे। चातुर्मास हुआ, वहाँ की जलवायु वहुत अनुकूल रही। वहीं पर 'वर्धमान महावीर सेवा केन्द्र' की स्थापना हुई, वहाँ अनेक साधु-साध्वियों की बहुत अच्छी सेवा वर्तमान में भी हो रही है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ऑपरेशनों के समय महासती श्री मुक्तिप्रभा जी ने अपनी शिष्याओं के साथ बहुत सेवा की। सेवा केन्द्र के उद्घाटन के समय ही धर्मकथानुयोग मूल का विमोचन श्री ताराचन्द जी प्रताप जी सांडेराव वालों ने किया।
उद्घाटन पश्चात् विहार कर अहमदाबाद होते हुए सोजत रोड़ पूज्य प्रवर्तक श्री मरुधरकेसरी जी म., स्वामी जी श्री ब्रजलाल जी म. एवं युवाचार्य श्री मधुकर जी म. के अन्तिम दर्शन कर आबू पर्वत पधारे।
दीक्षा अर्ध-शताब्दी समारोह हुआ, धर्मकथानुयोग सानुवाद भाग १ का श्री मेघराज जी मिश्रीमल जी साकरिया सांडेराव वालों ने विमोचन किया. चातुर्मास आबू में ही हुआ, थोड़ा-थोड़ा लेखन कार्य चलता रहा। खंभात सम्प्रदाय के पं. श्री महेन्द्र ऋषि जी म. ने कार्य में सहयोग दिया।
वम्बई से महासती श्री मुक्तिप्रभा जी ठाणा ११ का आबू पर्वत पधारना हुआ। वे दिल्ली की ओर पधार रही थीं। तब पूज्य गुरुदेव ने फरमाया कि “अनुयोग का कार्य व्यवस्थित करवाकर फिर आगे बढ़ें। उन्होंने चरणानुयोग की फाइलें लीं, उनका पाली चातुर्मास हुआ व हमारा सांडेराव चातुर्मास हुआ। चातुर्मास बाद सादड़ी मारवाड़ में एक महीना महासतियाँ जी व पूज्य गुरुदेव का विराजना हुआ। कार्य देखा गया, वर्गीकरण का कार्य पूर्ण रूप से संतोषप्रद नहीं हुआ। फिर सोजत होकर सब आबू पर्वत आये, धर्मकथानुयोग सानुवाद के दूसरे भाग का श्री कांतिलाल जी व श्री माणकचन्द जी गांधी बम्बई वालों ने विमोचन किया। ___सभी चरणानुयोग के काम में संलग्न हो गये। पूज्य गुरुदेव व महासती श्री मुक्तिप्रभा जी, श्री दिव्यप्रभा जी मूल पाठ का संशोधन करते; श्री अनुपमा जी, श्री भव्यसाधना जी लिखते; श्री राजेश जी भंडारी, श्री राजेन्द्र जी मेहता टाइप करते; श्री विरतिसाधना जी मिलान करते; मुझको भी काम में लगने हेतु श्री दिव्यप्रभा जी ने विशेष प्रेरणा दी। मैं भी टाइप किये हुए का निरीक्षण व पाठ मिलाना आदि कार्य करता। विषयों को कॉपी में लिखता, बत्तीस ही आगमों का कौन-सा विषय किस आगम का है व अनुयोग का है इसका विवरण तैयार करता। कार्य में सबके संलग्न होने से कार्य ने तीव्र गति पकड़ी।
धानेरा सभी का चातुर्मास हुआ। हम बाहर वलाणी बाग में काम में लगे रहे, श्री दर्शनप्रभा जी आदि व्याख्यान आदि कार्य सँभालते रहे। आगरा से गणितानुयोग का पुनः मुद्रण होकर आया। वहाँ से सभी अम्बा जी पहुँचे, पुनः काम में लगे, आदिनाथ भवन हेतु जमीन ली गई। वहीं पर श्री तिलोक मुनि जी का पदार्पण हुआ। उनका छेदसूत्रों का अनुभव होने से चरणानुयोग में मार्गदर्शन मिला। फिर ब्यावर आगम समिति के लिए छेदसूत्रों का भी संपादन किया। सर्दी में अम्बा जी ही ठहरकर आबू पर्वत पर पहुँचे, चरणानुयोग का संपादन पूर्ण हुआ और आगरा छपने के लिए भेज दिया। ___द्रव्यानुयोग का कार्य प्रारम्भ हुआ, महासतियाँ जी ने जोधपुर चातुर्मास के लिए विहार किया। हमारा आबू ही चातुर्मास हुआ, फिर सर्दी में अम्बा जी होकर सांडेराव गये। वहाँ से आबू पर्वत आये। वहीं पर महासती श्री मुक्तिप्रभा जी आदि ठाणा भी पधारे, पुनः द्रव्यानुयोग का कार्य प्रगति करने लगा, सादड़ी चातुर्मास स्थगित कर आबू ही १४ ठाणा का चातुर्मास हुआ। कार्य में प्रगति होती रही। फिर साध्वी जी श्री अनुपमा जी व श्री अपूर्वसाधना जी के वर्षीतप का पारणा होने से जोधपुर की ओर विहार हो गया, वहाँ पारणे पर श्री पुखराज जी लूंकड़ बम्बई वालों ने चरणानुयोग भाग १ का विमोचन किया।
महासती जी ने वहाँ से जयपुर चातुर्मास के लिए विहार किया। कार्य की गति मन्द हो गयी। हमारा चातुर्मास आबू ही हुआ। चातुर्मास पश्चात् मदनगंज, पीह आदि संघों का अत्याग्रह होने से उस ओर विहार हुआ। मदनगंज में महावीर कल्याण केन्द्र का उद्घाटन हुआ। हरमाड़ा में श्री संजय मुनि जी की दीक्षा हुई। उस समय महासती जी श्री मुक्तिप्रभा जी आदि का जयपुर से पदार्पण हुआ, उन्होंने वापस दिल्ली की ओर विहार किया। वहीं चातुर्मास किया। चरणानुयोग भाग २ का श्री आर. डी. जैन ने विमोचन किया।
हरमाड़ा दीक्षा देकर पुष्कर पहुंचे, वहाँ चार माह विराजकर द्रव्यानुयोग का कार्य करते रहे व साथ-साथ अनुयोग निर्देशिका का भी कार्य करते रहे। पीह चातुर्मास हुआ। आबू ओली पर पहुँचकर पुनः जोधपुर चातुर्मास के लिए पधारे।
चातुर्मास पूर्ण होते ही रावटी पधारे, वहाँ विशेष बस्ती नहीं थी, सेवा मन्दिर है जिसमें त्यागी विद्वत् पुरुष श्री जौहरीमल जी पारख रहते हैं। वहुत बड़ा पुस्तकालय है। तीन किलोमीटर दूर सूरसागर है जहाँ से प्रतिदिन गोचरी लाते। चार माह वहाँ ठहरे। पं. देवकुमार जी वीकानेर वालों को कार्य में लगाया गया, श्री गजेन्द्र जी राजावत ब्यावर वाले टाइपिस्ट रहे।
श्री पारख जी ने कार्य देखा, उन्होंने कहा-इसमें अभी कमी है, मेरी पद्धति से कार्य करें, उनकी पद्धति से कार्य प्रारम्भ हुआ। दो माह कार्य चला, द्रौपदी के चीर की तरह लम्बा होने लगा, फिर सोचा गया कि इस अनुसार यदि कार्य होगा तो अनुयोग के लगभग १६ भाग हो जायेंगे व कई वर्षों में भी कार्य पूरा नहीं हो सकेगा। पुनः हमारी प्राचीन प्रणाली से ही कार्य चालू किया।
वहाँ से सूरसागर आये फिर कार्य चला, सोजत श्री संजय मुनि जी के वर्षीतप के पारणे पर जाकर एक माह में आये, चातुर्मास सूरसागर ही किया। अनुयोग समापन समारोह हुआ। इस समय तक तीन अनुयोग प्रकाशित हो गये थे व चौथा द्रव्यानुयोग का संपादन कार्य भी पूर्ण हो रहा था। सूरसागर संघ व श्री मोहनलाल जी सांड के अत्याग्रह से यह कार्यक्रम रखा गया, जोधपुर में विराजित सभी सम्प्रदायों
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