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आगमों के विषयों का सर्वप्रथम कागज की छोटी चिटों पर संकलन किया गया, गहराई से एक-एक विषय की परिश्रमपूर्वक शोध की गई, फिर विचार किया कि किसी योग्य श्रुतधर से परामर्श किया जाए, तब आपश्री उपाध्याय कवि श्री अमरचन्द जी म. से मिले व उनके साथ संवत् २०१२ में जयपुर चातुर्मास किया। परन्तु कविश्री जी का स्वास्थ्य अनुकूल न होने के कारण यथेष्ट मार्गदर्शन नहीं मिला। वहीं पर धानेरा निवासी श्री रमणिकभाई मोहनलाल शाह से जो जयपुर में ही उस समय व्यापार करते थे, वे आये। वे इस कार्य से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने यथेष्ट योगदान भी दिया।
चातुर्मास पश्चात् हरमाड़ा में चाँदमल जी म. की दीक्षा हुई। पं. मिश्रीलाल जी म. 'मुमुक्षु' को सेवा में छोड़कर पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद लेकर आप पुनः कविश्री जी की सेवा में अनुयोग सम्पादन में मार्गदर्शन के लिए आगरा पधारे। वहाँ कविश्री जी के मन में निशीथभाष्य के सम्पादन का विचार बना हुआ था क्योंकि इसकी एक-दो हस्तलिखित प्रति ही मिलती थी वह भी बहुत जीर्णशीर्ण अशुद्ध स्थिति में देखकर तो पढ़ने का साहस ही नहीं होता। कविश्री जी के निर्देश से पूज्य गुरुदेव ने १४ माह के अल्प समय में अत्यधिक श्रम करके संपादन किया, प्रूफ रीडिंग आदि कार्य किये, २०१५ का चातुर्मास आगरा में ही किया।
वहीं पर पं. दलसुखभाई मालवणिया जी का आना हुआ, वे आपश्री की निष्ठा व कार्य-शैली देखकर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा"मेरे पास अभी समय नहीं है फिर कभी आकर ही अनुयोग के कार्य को देख सकूँगा।"
हरमाड़ा से बार-बार समाचार आने के कारण वहाँ से विहार हो गया, पूज्य गुरुदेव की सेवा में पहुँचे। पथरी का ऑपरेशन होने के कारण नव माह अजमेर हॉस्पीटल में सेवा में रहे, वहीं पर पुनः पं. दलसुखभाई मालवणिया पधारे। वे एक माह रुके। उन्होंने उदारतापूर्वक अपने स्वयं के खर्च से सारा काम देखा और कहा-“यह बहुत ही श्रम-साध्य व लम्बे समय का काम है अतः आप अहमदाबाद आवें। मैं इस काम के लिए समय दे दूंगा।" । ___ डॉक्टरों की सलाह से पूज्यश्री को हरमाड़ा ठाणापति बिठाया गया। वहाँ पर श्री शान्तिलाल जी देशरला व कुमार सत्यदर्शी आदि से आगमों को टाइप करवाया, संशोधन किया, फाइलें बनाईं। उन्हें लेकर पुनः पूज्य श्री घासीलाल जी म. के पास अहमदाबाद सरसपुर में मार्गदर्शन हेतु पधारे। उन्होंने कुछ सुझाव दिये व उनका आशीर्वाद लिया। वहाँ चार माह रुककर पुनः हरमाड़ा गुरुदेव की सेवा में पधारे। पुनः टाइप आदि कार्य करवाया। २०१९ कार्तिक वदी ७ को पूज्य गुरुदेव श्री फतेहचन्द जी म. का देहावसान हो गया।
पश्चात् विहार यात्राएँ प्रारम्भ हो गईं, चातुर्मास करना, व्याख्यान देना, फिर आने-जाने वालों का तांता लगा रहने के कारण कार्य कैसे संभव हो? सामाजिक व्यवस्थाओं के कारण समय नहीं मिल पाया। फिर भी जो समय मिलता उसी में लेखन करना व करवाना।
जोधपुर व सोजत चातुर्मास कर, फिर संवत् २०२२ में दिल्ली पधारे। सब्जी मंडी में आचार्य श्री आत्माराम जी म. के सुशिष्य पं. श्री फूलचन्द जी म. 'श्रमण', श्री रतन मुनि जी म., श्री कान्ति मुनि जी म. के साथ चातुर्मास किया। फिर कार्य को वेग देने के लिए एकान्त में किग्ज्चे केंप में विराजे। वहाँ पर श्री शान्तिलाल जी वनमाली शेठ प्रबन्धक थे। जहाँ पर कागजों के चिटों पर प्रारम्भ में जो विषय-सूची तैयार की थी वह उद्योगशाला प्रेस में छपने दी। ग्रन्थ का नाम 'जैनागम निर्देशिका' रखा गया। यह ४५ आगमों की विषय-निर्देशिका तैयार हुई। विषय देखने के लिए बहुत उपयोगी ग्रन्थ सिद्ध हुआ वह अब अनुपलब्ध है। उसी समय समवायांग सानुवाद का भी प्रकाशन हुआ। स्थानांग सानुवाद का प्रकाशन भी प्रारम्भ हुआ। कुछ दिन केंप में ठहरकर फिर शोरा कोठी सब्जी मण्डी में विराजे व चरणानुयोग का संपादन प्रारम्भ किया। छपाई भी साथ-साथ चल रही थी, लगभग २५० पेज छप गये थे। उसी समय फाइलों के कागजात किसी ने अस्त-व्यस्त कर दिये, वह । खो गये। मुनिश्री का मन थोड़ा उदास हो गया। इस समय श्री बनारसीदास जी ओसवाल ने उत्साहित किया। फिर तिमारपुर निवासी उदार भावनाशील श्रावक श्री गुलशनराय जी जैन के यहाँ चातुर्मास हुआ। उन्होंने बहुत सेवा की, पुनः प्रयल किया किन्तु फाइलें व्यवस्थित न होने के कारण चरणानुयोग के कार्य को स्थगित करना पड़ा।
पूज्य मरुधरकेसरी जी म. का मारवाड़ आने के लिए आग्रह हुआ, अतः वहाँ से विहार कर उनके अर्ध-शताब्दी समारोह में सोजत सिटी आना पड़ा फिर सांडेराव चातुर्मास हुआ। पं. शोभाचन्द जी भारिल्ल आये, उनको गणितानुयोग की फाइलें दी, उन्होंने उसका संपादन किया, फिर माह सुदी १५, संवत् २०२५ में मेरी दीक्षा हुई। उस समय पूज्य मरुधरकेसरी जी महाराज भी पधारे। पश्चात् अजमेर पधारे। वहाँ चार माह विराजे, गणितानुयोग का वैदिक यंत्रालय में मुद्रण हुआ। जिसे शीघ्र करवाने का श्रेय गुरुभक्त श्री रूपराज जी कोठारी को है। मदनगंज, और रिड़ के चातुर्मास के बाद सादड़ी-मारवाड़ में संवत् २०२८ का चातुर्मास हुआ। दो वर्षों में छेदसूत्रों का संपादन हुआ।
सादड़ी वर्षावास में श्रीचन्द जी सुराना आगरा से आये, उनको कार्य सौंपा, वे दो लिपिक लाये, चौमासे में उन्होंने प्रेस कॉपी की। फिर सांडेराव में राजस्थान प्रांतीय साधु-सम्मेलन हुआ। तत्पश्चात् फूलिया कलाँ, जोधपुर, कुचेरा, विजयनगर आदि स्थानों पर वर्षावास हुए।
वहाँ से सादड़ी-मारवाड़ महावीर भवन के उद्घाटन पर पधारे। तत्पश्चात् पूज्य मरुधरकेसरी जी म. का आशीर्वाद लेकर अहमदाबाद की ओर विहार किया। उस समय विजयराज जी सा. बोहरा को पूज्य मरुधरकेसरी जी म. ने प्रेरणा दी कि “अनुयोग का कार्य कराने का ध्यान रखना।" पूज्य गुरुदेव आबू पर्वत पधारे। महावीर केन्द्र के स्थान का चयन किया। वहाँ से अहमदाबाद पधारे, पं. दलसुखभाई मालवणिया जी उस समय एल. डी. इन्स्टीट्यूट में निर्देशक थे, उनके समीप ही चातुर्मास करना आवश्यक था। नवरंगपुरा में उपाश्रय नहीं वना था, ऐसी स्थिति में माणसा (पंजाब) के लाला देशराज जी अग्रवाल दर्शनार्थ आये। उनसे रोशनलाल जी म. का परिचय था। उन्होंने कहा-"यहाँ हमारे बंगले में गेस्ट हाउस है वहाँ आपको चातुर्मास के लिए स्थान अनुकूल देख लीजिए। स्थान अनुकूल लगा, वहीं पर चातुर्मास हुआ, लाला जी ने सेवा का बहुत लाभ लिया।
समय श्री बनारसीदासा समय फाइलों के कागजात किरणानुयोग का संपादन प्रारम्भ
उन्होंने बहुत सेवा की, उत्साहित किया। फिर मत-व्यस्त कर दिये, वह
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