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दरियापुरी संप्रदाय के श्री ताराबाई महासती जी भी वाइज में श्री हिम्मतभाई शामलदास जी के यहाँ विराजमान थे। उनको दर्शन देने के लिए पूज्य गुरुदेव का पधारना हुआ, वे बहुत प्रसन्न हुए। उनकी स्वाध्याय में बहुत रुचि थी, उन्होंने हिम्मतभाई को प्रेरणा दी, उनके यहाँ बहुत बड़ा पुस्तकालय था। उपयोग के लिए पुस्तकें दी व उन्होंने भी अनुयोग के कार्य में बहुत रुचि ली। पीह वाले श्री मेघराज जी बम्ब हैदराबाद से दर्शनार्थ आये। वे बलदेवभाई को साथ लेकर आये, उन्होंने पूज्य गुरुदेव के कार्य को देखा, वे प्रतिदिन दर्शनार्थ आते रहे व कार्य देखते रहे।
पं. दलसुखभाई प्रतिदिन दो घन्टे आते थे, उन्हें पुराना कार्य पर्याप्त नहीं लगा। पुनः विचार किया कि कार्य शीघ्र कैसे हो? इसलिए सुत्तागमे के पाठ लेने का निश्चय किया। उसके अलग-अलग कटिंग हुए विषय छाँटे गये। फिर भी मूल पाठों की व्यवस्था के लिए अंगसुत्ताणि के कटिंग करके पाठ लिए गये और उन पर शीर्षक लगाये गये। चातुर्मास पश्चात् एल. डी. इन्स्टीट्यूट में विराजे। वहाँ संशोधन कार्य किया गया। बाद में लक्ष्मणभाई भोजक आदि ने प्रेस कॉपी तैयार की। फिर पं. अमृतभाई भोजक जो प्राकृत के अच्छे विद्वान् हैं उन्होंने प्राकृत के शीर्षक लगाये, ग्रन्थ मूल पाठ वाला तैयार हो गया। निर्णय हुआ कि एक भाग में मूल व एक भाग में अनुवाद दिया जाए उस अनुसार नई दुनियाँ प्रेस, इन्दौर में छपने दिया, धीमे काम होने के कारण अहमदाबाद भी एक प्रेस में कुछ हिस्सा छपने दिया। नवरंगपुरा उपाश्रय में चातुर्मास हुआ।
चातुर्मास पश्चात् नवरंगपुरा से विहार कर नारायणपुरा बलदेवभाई के बंगले पधारे वहीं पर चर्चा चली और वहीं 'आगम अनुयोग ट्रस्ट' की स्थापना हुई।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इस अनुयोग के कार्य का शुभारम्भ हरमाड़ा से हुआ, श्री चम्पालाल जी चौरड़िया मदनगंज, श्री अमरचन्द जी मारू हरमाड़ा, श्री धर्मीचन्द जी सुराना, श्री छोटमल जी मेहता, श्री नोरतमल जी संचेती आदि ने कार्य को बढ़ाने में योगदान दिया।
पूज्य गुरुदेव की दीक्षा सांडेराव में होने की वजह से उनका इस ओर ध्यान गया और उन्होंने 'आगम अनुयोग प्रकाशन परिषद्' की स्थापना की व अब तक के सभी प्रकाशन इसी के द्वारा हुए। श्री ताराचन्द जी प्रताप जी, श्री हिम्मतमल जी प्रेमचन्द जी, श्री वृद्धिचन्द जी मेघराज जी, श्री नथमल जी निहालचन्द जी, श्री केशरीमल जी सेंसमल जी, श्री चम्पालाल जी हिम्मतमल जी आदि कार्यकर्ताओं ने अपने रिश्तेदारों, मित्रों, उदार ज्ञान प्रेमियों से सहयोग एकत्रित करना व सारी व्यवस्थाएँ सँभालने में बहुत परिश्रम किया। इस प्रकार कार्य होने के ३२ वर्ष पश्चात् अहमदाबाद में यह ट्रस्ट स्थापित हुआ। धर्मकथानुयोग के हिन्दी अनुवाद के लिए पं. देवकुमार जी को दिया गया।
वहाँ से राजस्थान की ओर विहार हुआ, उदयपुर, पाली होते हुए महावीर केन्द्र, आबू के उद्घाटन पर पधारे, आयंबिल ओली हुई। वहाँ से पुनः अहमदाबाद पधारे और राजस्थानी उपाश्रय में चातुर्मास हुआ।
तत्पश्चात् विहार करके बम्बई पधारे। शायन में दरियापुरी संप्रदाय के श्री शांतिलाल जी म., गोंडल संप्रदाय के श्री जसराज जी म. आदि अनेक संतों का मिलना हुआ, पूज्य श्री अमीचन्द जी म. ने अनुयोग के लिए विशेष प्रेरणा दी।
पूज्य गुरुदेव की विचारधारा सम्प्रदायवादी न होकर समन्वय प्रधान रही है, उसी दृष्टिकोण से श्वेताम्बर परम्परा के ४५ आगमों का आधार लेकर कार्य कर रहे थे परन्तु कुछ संकीर्ण विचार वाले श्रावकों ने विशेष जोर दिया इसलिए ३२ आगमों के अनुसार ही अनुयोग का कार्य करने का निर्णय हुआ। ___महासती श्री मुक्तिप्रभा जी का सर्वप्रथम परिचय यहीं हुआ व अनुयोग के कार्य से प्रभावित होकर उन्होंने कार्य में सहयोग देना प्रारम्भ किया।
खार चातुर्मास के लिए पधारे, अनुयोग ट्रस्ट के कार्यकर्ता पहुँचे, श्री लाला शादीलाल जी जैन के नेतृत्व में मीटिंग हुई व निर्णय हुआ कि एक ही पेज पर दो कॉलम रहें जिसमें एक ओर मूल व एक ओर हिन्दी अनुवाद दिया जावे तो ही उपयोगी होगा, तदनुसार एक पेज के दो कॉलमों में मूल अनुवाद व्यवस्थित किया गया। अनुवाद का सरल होना, मूल के अनुसार शब्दानुलक्षी होना इसीलिए पाठों का अनेक जगह विस्तृत को संक्षिप्त व संक्षिप्त को विस्तृत करना पड़ा। प्राकृत के ठीक सामने हिन्दी देने से शब्दों के अर्थ का भी पाठकों को बोध हो जाता है।
आगरा से श्रीचन्द जी सुराना को बुलाया गया और उन्हें धर्मकथानुयोग पुनः छपने को दिया गया। जो मूल मात्र पहले छपा है वह गुजराती संस्करण के साथ देने का तय हुआ।
चातुर्मास बाद प्रोस्टेट के दो ऑपरेशन हुए। स्वास्थ्य के कारण बालकेश्वर बम्बई चातुर्मास हुआ। महासती श्री मुक्तिप्रभा जी का चातुर्मास भी वहीं था। धर्मकथानुयोग भाग १ सानुवाद का शेष कार्य किया गया।
वहाँ से हैदराबाद चातुर्मासार्थ विहार हुआ। वहाँ गणितानुयोग के पुनः संपादन का कार्य चालू हुआ। पाठकों को यह ज्ञात ही है कि इसका पूर्व में संस्करण निकला था परन्तु उसकी प्रतियाँ समाप्त हो गईं। ट्रस्ट ने दुबारा छपाने का तय किया। संशोधन होने लगा, बहुत परिश्रम हुआ व दुबारा लगभग ३०० पेज बढ़े फिर भी कुछ पाठ ध्यान में आये सो द्रव्यानुयोग के तीसरे भाग के परिशिष्ट में दिये जा रहे हैं। ___हैदराबाद में भी स्वास्थ्य बिगड़ गया, दो ऑपरेशन हुए। स्थिति गंभीर होने के कारण प्लेन से बम्बई लाये गये। जैन क्लीनिक में भरती किये गये। तीन छोटे ऑपरेशन हुए परन्तु सफलता नहीं मिली। डॉ. कोलाबा वाले ने बताया कि “स्ट्रिक्चर बनने के कारण स्थिति गंभीर है, बड़ा ऑपरेशन खतरनाक है फिर भी प्रयत्न करते हैं।" सागारी संथारा कर लिया, उस समय पूज्य गुरुदेव ने अपने हृदय की दो-तीन बातें
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