Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 21
________________ [५] नेयो व्ययाद्यैः सार्थक्यमर्थोऽनर्थकरो यतः । तनयानामिव क्ष्मापामात्यश्रेष्ठिपुरोधसाम् ॥५॥ पदच्छेदः-नेयः व्ययाद्यः सार्थक्यम् अर्थः अनर्थकरः यतः तनयानाम् इव क्ष्मापामात्यश्रेष्ठिपुरोधसाम् । अन्वयः-अर्थः व्ययाद्यैः सार्थक्यम् नेयः यतः (सः) अनर्थकरः । क्ष्मापामात्यश्रेष्ठिपुरोधसाम् तनयानाम् इव । शब्दार्थः-अर्थः द्रव्य, धन। व्ययाद्यैः खर्च के द्वारा, सार्थक्यम् सफलता को, नेयः ले जाना चाहिए । यतः = क्योंकि, अनर्थकरः अनर्थ करने वाला, क्षमापामात्यश्रेष्ठिपुरोधसाम् राजा, मन्त्री, सेठ और पुरोहित के, तनयानामिव पुत्रों की तरह । श्लोकार्थः-मनुष्य को चाहिए कि वह द्रव्य को खर्च कर सफल बनावे। क्योंकि वैसा न करने पर द्रव्य अनर्थ करने वाला होता है। जैसे राजा, मन्त्री, सेठ और पुरोहित के पुत्रों के लिए वह धन अनर्थकारी हुआ। संस्कृतानुवादः-कुशलेन मानवेनार्थः व्ययं कृत्वा साफल्यं नेयः । यतो हि सः संचितोऽर्थः अनर्थकरो भवति । यथा क्षमापामात्यवेष्ठिपुरोहितानां पुत्राणां कृतेऽनर्थकरोऽभूत् ।। ५ ।।

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