Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 119
________________ * असत्यम् * [ १०३ ] संसारभीरुवितथ - मधोगति - निबन्धनम् । उपरोधाद् भयाद् वापि, न वदेत् कालिकार्यवत् ॥ १०३॥ पदच्छेदः-संसारभीरुः वितथम् अधोगतिनिबन्धनम् उपरोधात् भयाद् वा अपि न वदेत् कालिकार्यवत् । अन्वयः-संसारभीरुः कालिकार्यवत् उपरोधात् भयाद् वा अपि अधोगतिनिबन्धनम् वितथम् न वदेत् । शब्दार्थः-संसारभीरुः संसार से डरने वाला व्यक्ति, कालिकार्यवत् कालिकार्य की तरह, उपरोधात्=किसी के आग्रह करने से, भयात्=भय से, वा=अथवा, अपि भी अधोगतेः निबन्धनम्, अधोगतिनिबन्धनम् अवनति का कारण, वितथम् =असत्य को, न वदेत् नहीं बोलना चाहिए। श्लोकार्थः-संसार से डरने वाला व्यक्ति कालिकार्य की तरह किसी के आग्रह करने से अथवा भय से भी अवनति के मूल कारण असत्य को नहीं बोले । संस्कृतानुवादः-संसारभीरुर्जनः कालिकार्यवत् उपरोधाद् भयाद्वाऽपि अवनतेः कारणभूतमसत्यं कदापि न कथयेत् ।। १०३ ॥ ( १०४ )

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