Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 139
________________ * धर्मः ॐ [ १२३ ] कुशाग्रीयमतिर्धर्म, परीक्ष्यैव समाचरेत् । वृषवाहिवरिणग्वन्न, लोकोक्तौ प्रत्ययो भवेत् ॥ १२३ ॥ पदच्छेदः-कुशाग्रीयमतिः धर्म परीक्ष्य एव समाचरेत्, वृषवाहिवणिग्वत् लोकोक्तौ न प्रत्ययी भवेत् । अन्वयः-कुशाग्रीयमतिः धर्म परीक्ष्य एव समाचरेत् , वृषवाहिवरिणग्वत् लोकोक्तौ न प्रत्ययी भवेत् । शब्दार्थः-कुशाग्रीया मतिर्यस्य सः कुशाग्रीयमतिः= तीव्र बुद्धिवाला मनुष्य, धर्म धर्म को, परीक्ष्य एव परीक्षा करके ही, समाचरेत् पाचरण करना चाहिए । वृषवाहिवरिणग्वत् वृषवाही वणिक् की तरह, न भवेत् नहीं होना चाहिए। लोकोक्तौ लोकोक्ति में, प्रत्ययी = विश्वास करने वाला, न भवेत् नहीं होना चाहिए। श्लोकार्थः-तीव्रबुद्धिवाला मनुष्य धर्म की परीक्षा करके ही आचरण करे। वृषवाही नामक वणिग् की तरह लोकोक्ति में विश्वास करने वाला नहीं होना चाहिए। संस्कृतानुवाद:-कुशाग्रबुद्धिः मानवीधर्म परीक्ष्यैव सदाचरणं कुर्याद् वृषवाहिवरिणग्वत् लोकोक्तौ प्रत्ययी न भवेत् ।। १२३ ॥ ( १२४ )

Loading...

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144