Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 121
________________ * नमस्कारः * [ १०५ ] नमस्कारप्रभावेण, जीवाः सद्गतिभागिनः । इव हस्तिपकश्चौर्य-कलङ्की त्रिदिवं गताः ॥ १०५ ॥ पदच्छेदः-नमस्कारप्रभावेण जीवाः सद्गतिभागिनः इव हस्तिपकः चौर्यकलङ्की त्रिदिवं गताः । अन्वयः-सद्गतिभागिनः जीवाः नमस्कारप्रभावेण चौर्यकलङ्की हस्तिपक इव त्रिदिवं गताः । शब्दार्थः-सद्गति भजन्तीति सद्गतिभागिनः श्रेष्ठ गति को पाने वाले, जीवाः प्राणी, नमस्कारप्रभावेण= नमस्कार के प्रभाव से, चौर्यस्य कलङ्कोऽस्यास्तीति चौर्यकलङ्की चोरी के कलंक वाला, हस्तिपकः इव हाथी के महावत की तरह, त्रिदिवं स्वर्ग को, गताः=गये । श्लोकार्थः-सद्गति को पाने वाले प्राणी नमस्कार महामन्त्र के प्रभाव से चोरी के कलङ्क वाले हाथी के महावत की तरह स्वर्ग को गये । ___ संस्कृतानुवादः-श्रेष्ठगतिभागिनः प्राणिनः नमस्कारमहामन्त्रस्य प्रभावेण चौर्यकलङ्की हस्तिपक इव त्रिदिवं प्रयाताः ॥ १०५ ॥

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