Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 129
________________ * धर्मसमयः * [ ११३ ] प्राप्य धर्मसमयं सुधीधनो, विस्तराय न विलम्बमाचरेत् ।। येन बाहुबलिनाऽपि यामिनी लङ्घनेन वृषभो न वन्दितः ॥ ११३ ॥ पदच्छेदः-प्राप्य धर्मसमयं सुधीधनः, विस्तराय न विलम्बम् आचरेत् । येन बाहुबलिना अपि यामिनीलङ्घनेन वृषभो न वन्दितः ।। अन्वयः-सुधीधनः धर्मसमयं प्राप्य विस्तराय विलम्बम् न आचरेत् । येन बाहुबलिना अपि यामिनीलङ्घनेन वृषभः न वन्दितः । शब्दार्थः-सुधीधनः=सुन्दरबुद्धिरूप धनवाला, धर्मसमयं धर्म के अवसर को, प्राप्य प्राप्तकर, विस्तराय= विस्तार के लिए, विलम्बम् विलम्ब, देरी, न पाचरेत् = नहीं करे । येन कारण कि, बाहुबलिना=बाहुबली के द्वारा, अपि=भी, यामिनीलङ्कनेन रात्रि के उल्लङ्घन द्वारा, वृषभः=ऋषभदेव, न वन्दितः=वन्दना नहीं किये गये। श्लोकार्थः-सुन्दर बुद्धिरूप धनवाला प्राणी धर्म के अवसर को प्राप्त कर विस्तार के लिए विलम्ब न करे । कारण कि बाहुबली भी रात्रि का उल्लङ्घन करने से श्रीऋषभदेव भगवान के चरणों की वन्दना नहीं कर सके । संस्कृतानुवादः-सुधीधनः प्राणी धर्मस्यावसरं लब्ध्वा विस्तराय विलम्बं न कुर्यात् येन श्रीबाहुबलिना यामिनीलङ्घनेन वृषभो न वन्दितः अर्थात् भगवान ऋषभदेवः बाहुबलेरागमनात् पूर्वमेव तत्स्थानात् प्रस्थिता ।। ११३ ।। ( ११४ )

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