Book Title: Dharmopadesh Shloka
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 130
________________ * मन्मथः [कामः] * [ ११४ ] मन्मथव्याकुलः किञ्चि-दपि नो गरणयेन्नरः । ब्रह्मदत्तं यथा माता चुलगी मारणोद्यता ॥ ११४ ॥ पदच्छेदः-मन्मथव्याकुलः किञ्चिद् अपि नो गणयेत् नरः। ब्रह्मदत्तं यथा माता चुलणी मारणोद्यता। अन्वयः-यथा माता चुलणी ब्रह्मदत्तं मारणोद्यता तथा मन्मथव्याकुलः नरः किञ्चिद् अपि न गणयेत् । शब्दार्थः-यथा जैसे, माता=जननी, चुलणी = चुलणी नाम की, ब्रह्मदत्तं ब्रह्मदत्त को, मारणोद्यता=मारने के लिए उद्यत हुई। तथा वैसे ही, मन्मथेन व्याकुलः मन्मथव्याकुलः कामपीड़ित, नरः पुरुष, किञ्चिदपि= कुछ भी, न गरणयेत् नहीं गिनता। श्लोकार्थः-जैसे माता चुलणी ब्रह्मदत्त को मारने के लिए तैयार हुई, वैसे ही काम से पोड़ित पुरुष कुछ भी नहीं गिनता। संस्कृतानुवादः यथा चुलणी माता ब्रह्मदत्तं मारणोद्यता जाता तथैव कामपीडितो नरः किञ्चिदपि न गणयति ॥ ११४ ॥ ( ११५ )

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